रामकृष्ण उपाध्याय
JD (S)-BJP Alliance: इस मुलाक़ात ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों को आश्वस्त कर दिया कि मई 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा-जेडी (एस) का गठबंधन दोनों पार्टियों के लिए “फ़ायदेमंद गठबंधन” होगा। बताया जा रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री और जेडी (एस) सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा ख़ुद कथित तौर पर “आख़िरी बार” संसद में प्रवेश करने के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
सूत्रों ने इंडिया नैरेटिव को बताया कि देवेगौड़ा इस साल 1 मई को 91 वर्ष के हो गए हैं। 1999 में स्थापित उनके परिवार की प्रभुत्व वाली पार्टी को हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था,लेकिन देवेगौड़ा राजनीति से बाहर होने के पहले अपनी पार्टी को पटरी पर लाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
गौड़ा फिर सक्रिय
देवेगौड़ा के एक क़रीबी सहयोगी ने कहा, “तीन महीने पहले विधानसभा चुनावों के दौरान उनके ख़राब स्वास्थ्य ने उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बाहर जाने से रोक दिया था, जिसे उन्होंने छह दशकों से अधिक समय से सावधानीपूर्वक अंजाम दिया था। जब जेडी (एस) केवल 19 सीटें जीतने में कामयाब रही और उनके पोते, निखिल कुमारस्वामी विधानसभा में पहुंचने में असफल रहे, तो उन्हें बेहद दुख हुआ, जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद का दूसरा झटका था। वह फिर से इसलिए सक्रिय हो गये हैं, क्योंकि वह अपनी पार्टी को अपनी आंखों के सामने ख़त्म होते नहीं देखना चाहते।”
उनके परिवार को एक और झटका तब लगा था, जब उनके एक और पोते, प्रज्वल रेवन्ना, जो 2019 में हासन से चुने गए एकमात्र जेडी (एस) सांसद थे,उन्हें पिछले महीने के आख़िर में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उनकी संपत्ति के “अपर्याप्त खुलासे” के आधार पर पद से हटा दिया था। सजा को निलंबित करने के लिए प्रज्वल की अर्ज़ी अदालत में है, लेकिन अगर उनकी अयोग्यता इसी तरह बरक़रार रखी जाती है, तो उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है।
गठबंधन के लिए बीजेपी
इन्हीं अनिश्चितताओं से परेशान होकर देवेगौड़ा भाजपा को संदेश दिए जा रहे थे,लेकिन कुछ दिन पहले मोदी के बुलावे पर तुरंत वह दिल्ली की ओर चल पड़े, दिल्ली में मुलाक़ात हुई और भाजपा के साथ सीट-बंटवारे के फॉर्मूले पर सहमत होने में उन्हें कोई हिचकिचाहट भी नहीं हुई। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की निर्णायक हार ने भाजपा को भी जेडी (एस) के साथ गठबंधन के विचार पर मजबूर कर दिया।
रविवार को बेंगलुरु में जेडी (एस) की रैली में देवेगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी दोनों ने इस गठबंधन की पुष्टि की। कुमारस्वामी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वह जेडी (एस) के पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं और भाजपा के साथ मिलकर सिद्धारमैया सरकार के ‘कुकर्मों’ को उजागर करेंगे। उन्होंने राज्य कांग्रेस नेताओं पर बिल्डरों पर “पार्टी के चुनाव कोष” में 2,000 करोड़ रुपये का योगदान देने का दबाव डालने का आरोप लगाया।
2019 में भाजपा ने 28 में से 25 सीटों पर अभूतपूर्व जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस, जेडी (एस) और भाजपा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार-सुमालता के पास सिर्फ़ एक-एक सीट बच गयी थी। हालांकि,जेडी (एस) सात से आठ सीटों के लिए दबाव बना रही है, लेकिन अंत में लगभग पांच सीटों पर समझौता कर सकती है। यह देखते हुए कि उसने पुराने मैसूर क्षेत्र में ख़राब प्रदर्शन किया है, जो कि वोक्कालिगा बहुल क्षेत्र है, भाजपा हसन, कोलार, बेंगलुरु ग्रामीण, चिक्कबल्लापुर और तुमकुरु को जेडी (एस) को सौंपने के लिए तैयार दिख रही है। मांड्या पर काफी चर्चा होने की संभावना है, जिसका प्रतिनिधित्व इस समय सुमालता करती हैं, लेकिन जेडी (एस) इसे हथियाने के लिए बहुत उत्सुक है।
सुमालता ने अमित शाह के साथ कई दौर की चर्चा की है और उन्होंने भाजपा में शामिल होने की इच्छा का संकेत दिया है। यदि ज़ोर दिया गया, तो उन्हें पूर्व मंत्री सदानंद गौड़ा को टिकट देने से इनकार करते हुए बेंगलुरु उत्तर में स्थानांतरित किया जा सकता है, क्योंकि माना जा रहा है कि सदानंद गौड़ा के प्रभाव में गिरावट आयी है।
गौड़ा की आख़िरी इच्छा
अगर प्रज्वल इसे दोबारा हासिल करने में असमर्थ रहता है, तो देवेगौड़ा हसन से चुनाव लड़ना चुन सकते हैं, जिसका वे चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और जहां से वे दो बार हार चुके हैं। गौड़ा हसन से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं, जहां उन्होंने अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था, और कथित तौर पर उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा है कि, “मेरी आख़िरी इच्छा हसन के मन्निना मागा (भूमि-पूत्र) के रूप में मरना है।”
कांग्रेस ने इसे “अवसरवाद” कहा है, जिसका चुनावी नतीजे पर कोई असर नहीं होगा। उपमुख्यमंत्री और केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने अपनी पार्टी के क्षत्रपों से वादा किया है कि वह “कर्नाटक से कम से कम 20 सीटें” दिलायेंगे। लेकिन, भाजपा-जेडी(एस) गठबंधन से उनकी योजनाओं पर पानी फिरना इसलिए तय है, क्योंकि कर्नाटक में प्रधानमंत्री के बहुत बड़े समर्थक हैं। इसके अलावा, लोगों में निराशा भी है, क्योंकि बहुप्रचारित “गारंटी” लड़खड़ा रही है और विकास गतिविधियां रुक गयी हैं।