किसानों के नाम पर किए जा रहे आंदोलन को खत्म कराने के लिए नानकसर गुरुद्वारे के प्रधान बाबा लक्खा सिंह की सारी मेहनत बेकार गई। गुरुवार की शाम कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिल कर आए बाबा लक्खा सिंह काफी आशावान थे कि किसान नेता नए प्रस्ताव के साथ सरकार के पास जाएंगे और सरकार किसानों के संशोधित प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगी। इसी के साथ डेढ़ महीने से चले आ रहा गतिरोध खत्म हो जाएगा। लेकिन जब किसान नेता सरकार से वार्ता के लिए विज्ञान भवन पहुंचे तो उन्होंने वही पुरानी रट लगाए रखी। कृषि कानूनों में कमी बताने के बजाए रद्द करने की जिद पर अड़े किसान नेताओं ने सरकार के प्रतिनिधियों के साथ लंच भी नहीं किया। हालांकि किसान नेताओं की ओर से केवल एक ही बात कही गई कि सरकार कानून वापस नहीं लेगी तो वो घर वापस नहीं जाएंगे।
हालांकि, किसान नेताओं की ओर से यह भी कहा है कि शनिवार की सुबह 11 बजे आंदोलन में शामिल किसानों के सभी दलों के नेता एक साथ बैठकर कोई फैसला करेंगे। 11 जनवरी को किसानों के आंदोलन को लेकर उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाओं पर एक साथ निर्धारित सुनवाई के बाद ही वार्ता का अगला रुख स्पष्ट होगा। हालांकि कई किसान नेताओं ने कहा कि उन्हें अगली बैठक में भी कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है। विज्ञान भवन में हुई बैठक सिर्फ दो घंटे चली और इसमें भी चर्चा सिर्फ एक घंटे ही हो सकी। इसके बाद किसान नेताओं ने हाथों में ‘‘जीतेंगे या मरेंगे’’ लिखी तख्तियां लेकर मौन धारण कर लिया। किसान नेताओं ने दोपहर के भोजन के लिए ब्रेक भी नहीं लिया तो उधर वार्ता में शामिल तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए चले गए। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि वार्ता के दौरान किसान संगठनों द्वारा तीनों कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग के अतिरिक्त कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किए जाने के कारण कोई फैसला नहीं हो सका।
बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में तोमर ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि अगली वार्ता में किसान संगठन के प्रतिनिधि वार्ता में कोई विकल्प लेकर आएंगे और कोई समाधान निकलेगा। किसान नेताओं ने जोर दिया कि कानूनों को निरस्त करने से कम पर वह पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे फसलों के त्योहार लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर कड़ाके की इस ठंड में भी आंदोलन कर रहे किसान पूर्व की योजना के मुताबिक 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालेंगे।
किसान नेताओं ने कहा कि इस बार की बैठक सौहार्दपूर्ण वातारण में नहीं हुई और संवाद कुछ तीखा रहा। बैठक के बाद किसानों की संवेदनाएं भी झलकीं जब ‘जय किसान आंदोलन’ की नेता रवीन्दर कौर की आंखों में आंसू छलक पड़े। उनका कहना था कि कई माताओं ने अपने पुत्र और कई बेटियों ने अपने पिता खो दिया लेकिन इसके बावजूद भी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। बैठक के बाद किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि बैठक बेनतीजा रही और अगली वार्ता में कोई नतीजा निकलेगा, इसकी संभावना भी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘हम तीनों कानूनों को निरस्त करने के अलावा कुछ और नहीं चाहते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सरकार हमारी ताकत की परीक्षा ले रही है लेकिन हम झुकने वाले नहीं हैं। ऐसा लगता है कि हमें लोहड़ी और बैशाखी भी प्रदर्शन स्थलों पर मनानी पड़ेगी।’
वामपंथी किसान नेता हन्नान मुल्ला ने कि किसान जीवन के अंतिम क्षण तक लड़ने को तैयार है। उन्होंने अदालत का रुख करने के विकल्प को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि किसान संगठन 11 जनवरी को आपस में बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे। कुछ किसान नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार की तरफ से किसानों को उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई में पक्षकार बनने को कहा गया। हालांकि तोमर ने इससे इंकार किया। उन्होंने कहा कि चूंकि सर्वोच्च अदालत में 11 जनवरी को इस मामले की सुनवाई होनी है, इसलिए यह मामला जरूर सामने आया। उन्होंने कहा, ‘‘हम लोकतांत्रिक देश हैं। जब कोई कानून बनता है तो उच्चतम न्यायालय को इसकी समीक्षा करने का अधिकार है। हर कोई शीर्ष अदालत के प्रति प्रतिबद्ध है।
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