#Maharashtra महाविकास अघाड़ी के सीएम उद्धव ठाकरे ने दिया इस्तीफा, फ्लोर टेस्ट से पहले मानी हार!

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<strong>रात 9 बज कर 7 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट से आखिरी उम्मीद खत्म कर दी। इसके  लगभग 23 मिनट बाद  उद्धव ठाकरे  फेसबुक लाइव आए और उन्होंने  मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने महाराष्ट्र विधान परिषद सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। अब देवेंद्र फड़नवीस अगले मुख्यमंत्री बनने कादावा पेश करेंगे। संभवतः उनका शपथ ग्रहण गुरुवार को ही होगा। नीचे पढिए इससे पहले की कहानी-</strong></p>
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<em><strong>मराठी सियासत के पप्लू  बने उद्धव! फड़नवीस राजा और शिंदे तुरुप का इक्का!</strong></em></h2>
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महाराष्ट्रसियासी संकट के बीच उद्धव ठाकरे की स्थिति लगभग वैसी हो गई है जैसे ताश के पत्तों में ‘चौथे पत्ते’ की होती है।बीजेपी नेता देवेंद्र फड़नवीस की मांग पर राज्यपाल भगत सिहं कोशियारी ने बहुमत परीक्षण का आदेश दे दिया। इस आदेश को बिना किसी एप्लीकेशन के ही शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया तो शिवसेना की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने समय कम होने का हवाला दिया और तीन बजे तक पूरी याचिका पेश करने का समय मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी शाम पांच बजे सुनवाई का आदेश दिया। </p>
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ऐसे में सवाल होता है कि जब बागी विधायकों की सदस्यता का फैसला नहीं हुआ तो फिर बहुमत परीक्षण कैसे हो सकता है? जाहिर है कि बीजेपी ने इस मुद्दे पर भी दिमाग के घोड़े दौड़ाए होंगे। क्यों कि मंगलवार को मुंबई से दिल्ली आने वालों में उनके साथ वकील महेश जेठमलानी भी थे। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह के साथ देवेंद्र फड़नवीस की मीटिंग में महेश जेठमलानी भी रहे थे। निश्चित तौर पर सभी वैधानिक बाधा और पहलुओं पर चर्चा के बाद ही राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी से मिलने और फ्लोर टेस्ट की मांग का फैसला किया गया होगा। सियासी पंडितों का कहना है कि देवेंद्र फड़नवीस महाराष्ट्र के अगले राजा दिखाई पड़ते हैं क्यों कि एकनाथ शिंदे नाम का तुरुप का इक्का उनके पास है। उद्धव की भूमिका पप्लू सरीखी ही बची है। </p>
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विधायीका और न्यायपालिका के अधिकारों और महाराष्ट्र सरकार मुद्दे पर विधि वेत्ताओँ का कहना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन तो अवश्य है लेकिन राज्यपाल इसके बावजूद सदन बुलाने का आदेश दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक नहीं लगा सकती। क्यों कि राज्यपाल पार्टी नहीं है। दूसरी बात यह कि उद्धव की शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट इतना कह सकती है कि जो मामला उनके विचाराधीन है वो उसी पर सुनवाई कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में जिन विधायकों को महाराष्ट्र के डिप्टी स्पीकर ने नोटिस जारी किया था, सुप्रीम कोर्ट उन विधायकों को फ्लोर टेस्ट में हिस्सा लेने से रोक सकती है। मतलब यह कि सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के उद्धव ठाकरे को दिए सरकार को कल विधानसभा में बहुमत साबित करने के निर्देश पर रोक नहीं लगा सकती।</p>
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यदि ऐसा ही होता है तो 30 जून यानी आने वाले कल महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र भी आहूत होगा और उद्धव सरकार को बहुमत भी साबित करना होगा। महाराष्ट्र में इस समय सदन की संख्या 287 है। इसमें 106 बीजेपी के सदस्य हैं। शिवसेना के 55 सदस्यों में से 39 घोषित तौर बागी हो चुके हैं। जिसमें से 16 को डिप्टी स्पीकर ने नोटिस दे दिया है। यदि सुप्रीम कोर्ट इन 16 विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से रोकती भी है तो सदन की संख्या 271 रह जाएगी। महा विकास अघाड़ी सरकार को कम से कम 136 सदस्यों के मतों की आवश्यकता है। मौजूदा हालात में शिवसेना के पास 55 में से मात्र 15 सदस्य हैं। एनसीपी के 53, कांग्रेस के 44 और 3 निर्दलीयों समेत सभी छोटे अन्य दलों के 10 सदस्यों के वोट मान भी लिए जाएं तो भी महा विकास अघाड़ी के पक्ष में मात्र 123 मत ही मिलने की संभावना है। क्यों कि कांग्रेस के अनिल देशमुख और एनसीपी के नवाब मलिक जेल में है। इस तरह सरकार बचाने के लिए जरूरी 136 सदस्यों से 13 कम है।</p>
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कहने का मतलब यह कि सुप्रीम कोर्ट जाने और 16 विधायकों को वोट देने से रोक लेने के बाद भी महा विकास अघाड़ी की सरकार बचने की संभावना नहीं हैं। तो फिर सवाल उठता है कि महाविकास अघाड़ी सरकार के मुखिया और शिव सेना मुखिया उद्धव ठाकरे पपलू क्यों बन रहे हैं। इसका जवाब यह है कि राजनीति में उद्धव ठाकरे ‘पपलू’ही हैं। उद्धव ठाकरे, आदित्य को चीफ मिनिस्टर बनाना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने अपने स्वभाविक पार्टनर बीजेपी से नाता तोड़ लिया। बीजेपी और शिव सेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। बीजेपी को शिवसेना की अपेक्षा सफलता ज्यादा भी मिली थी। बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे आदित्य ने सिलवर ओक से लेकर 10 जनपथ तक हर चौखट पर सिर झुकाया। लेकिन आदित्य के नाम पर कोई तैयार नही हुआ तो उद्धव खुद मुख्यमंत्री बने और आदित्य को कैबिनेट मंत्री बना दिया। पहली बार चुनाव में जीते और पहली ही बार कैबिनेट में शामिल। शिवसेना में दरारें तो उसी दिन पड़ गईं थीं। हालांकि इससे पहले देवेंद्र फड़नवीस ने एनसीपी से अजित पवार को तोड़कर सरकार बना ली लेकिन अजित पवार ने उस समय देवेंद्र फड़नवीस को पपलू बना दिया था।</p>
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इस समय एकनाथ शिंदे के तौर पर बीजेपी के पास तुरुप का इक्का है। देवेंद्र फड़नवीस महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री और उद्धव पप्लू हैं।</p>
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एक सवाल उठता है कि सिलवर ओक और 10 जनपद उद्धव को ही मुख्यमंत्री क्यों बनाए रखना चाहते थे? इसका सीधा सा जवाब है कि बिना कोई आरोप मलाई कूटने का मौका किसी पप्लू मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ही मिल सकता है! नबाब मलिक और अनिल देशमुख तो संघीय सरकार (यूनियन गवर्नमेंट) की चालों में फंस कर शिकार हो गए। सिलवर ओक और 10 जनपथ को उद्धव की स्वामीभक्ति पर कोई संदेह नहीं है!बाला साहेब के जमाने में शिव सेनिक टाइगर थे और उद्धव जमाने शिव सेनिकसिलवर ओक और 10 जनपथ के… बनकर रह गए?</p>

Rajeev Sharma

Rajeev Sharma, writes on National-International issues, Radicalization, Pakistan-China & Indian Socio- Politics.

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