चंडीगढ़: मोहाली ट्रायल कोर्ट में पुलिस उपाधीक्षक (रिटायर्ड) जसवंत सिंह के इक़बालिया बयान से लगता है कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पास बंद ड्रग रिपोर्ट की बहुचर्चित सामग्री का खुलासा हो गया है।
12 जून, 2017 को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (रोकथाम) अधिनियम (एनडीपीएस अधिनियम) मामले में इंस्पेक्टर (प्रमुख रैंक हेड कांस्टेबल) इंद्रजीत सिंह के ख़िलाफ़ दर्ज मामले में डीएसपी का यह बयान पंजाब में मादक पदार्थों की तस्करी को लेकर पुलिस-तस्कर सांठगांठ को उजागर करता है।
इस बयान का एसआईटी द्वारा सौंपी गई तीन ड्रग रिपोर्ट पर सीधा असर पड़ना लाज़िमी है, जिसे हाल ही में सामने लाकर पंजाब सरकार को कार्रवाई के लिए भेज दिया गया था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे), मोहाली, संदीप सिंगला की अदालत में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज जसवंत सिंह के इकबालिया बयान को खोलने से रोकने के लिए एक मज़बूत प्रयास चल रहा है। जेल में बंद आरोपी इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह के वकील एडवोकेट टरमिंदर सिंह और ज़मानत पर रिहा आरोपी एएसआई अजायब सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट अमरजीत सिंह सुखीजा ने मई 2022 में एक अर्ज़ी दाखिल की थी। उन्होंने प्रार्थना की थी कि सरकारी गवाह का बयान सरेआम न किया जाए।
सुनवाई की अगली तारीख़ पर एएसजे इस मुद्दे पर अपना फ़ैसला देने से पहले डीएसपी जसवंत सिंह ने indianarrative.com से विशेष रूप से बात की और इस बात का ख़ुलासा किया कि तत्कालीन एसएसपी तरनतारन, रज्जित सिंह हुंदल (अब एआईजी एनआरआई सेल) और मुख्य आरोपी निरीक्षक कथित तौर पर किस तरह अवैध ड्रग रैकेट में एक साथ जुड़े हुए थे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हवलदार (हेड कांस्टेबल) के सक्षम पद के साथ तदर्थ निरीक्षक इंद्रजीत सिंह एनडीपीएस अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने या मामले की जांच करने के पात्र नहीं थे। अधिनियम के अनुसार, वह अधिकारी, जो नियमित सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) के पद से नीचे का न हो, वह ड्रग मामले को पंजीकृत या जांच कर सकता है। लेकिन, एसएसपी रंजीत सिंह ने अपने दोस्त इंद्रजीत को सीआईए थाने तरनतारन के एसएचओ के पद पर तैनात कर दिया और उसे एनडीपीएस एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी।
उन्होंने इस बात को याद करते हुए कहा,”मैंने एसएसपी को बताया था कि यह अवैध था और अभियोजन पक्ष अदालतों में मामले हार जायेगा क्योंकि इंद्रजीत एक नियमित एएसआई भी नहीं था, लेकिन रज्जित ने मुझे बुलाया और मुझसे कहा कि ‘अपने काम पर ध्यान दो।”
डीएसपी ने कहा कि तरनतारन पुलिस इस ज़िले के तहत आने वाले सरहाली पुलिस स्टेशन में दर्ज ड्रग तस्करी के तीन मामले ट्रायल कोर्ट में औंधे मुंह गिर गए और जजों ने पाया कि आईओ (जांच अधिकारी यानी इंद्रजीत सिंह) प्राथमिकी दर्ज करने या किसी मामले की जांच करने में सक्षम नहीं थे। एनडीपीएस एक्ट के तहत आने वाले इस ड्रग केस में जिन तस्करों के पास से बड़ी मात्रा में (वाणिज्यिक मात्रा) हेरोइन (‘चिट्टा’) बरामद की गई, उन्हें अदालतों ने बरी कर दिया।
“एसएसपी के निर्देश पर मैं राजपत्रित अधिकारी की हैसियत से नशीली दवाओं की ज़ब्ती के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करता था, जैसा कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत आवश्यक है। इसने मुझे मुश्किल में डाल दिया था, क्योंकि मुझे 2017 की एफ़आईआर नंबर 1 में भी सह-आरोपी बनाया गया था, जो कि स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएफ) पुलिस स्टेशन, मोहाली में दर्ज है।
एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू ने पंजाब एसटीएफ़ प्रमुख का पद संभालने के बाद पुलिस के प्रदर्शन और अदालतों में एनडीपीएस मामलों की सफलता दर की समीक्षा करने का फ़ैसला किया। उन्होंने पाया कि तरनतारन के एसएसपी रंजीत सिंह हुंदल एनडीपीएस एक्ट का उल्लंघन कर नशे के मामलों की जांच एक हेड कांस्टेबल इंद्रजीत से करवा रहे थे। इंद्रजीत को गिरफ़्तार कर लिया गया। उसके घर से 4 किलो चिट्टा, 3 किलो स्मैक, 2 एके 47 राइफ़ल, एक रिवॉल्वर, एक पिस्टल और बड़ी मात्रा में ज़िंदा कारतूस बरामद किए गए हैं।
एसटीएफ़ सूत्रों ने खुलासा किया कि पूछताछ के दौरान आरोपी इंद्रजीत ने आरोप लगाया था कि एसएसपी राजजीत सिंह हुंदल इस अपराध में उसका साथी है। पता चला कि वह गिरफ़्तार तस्करों से समझौता कराकर ट्रायल कोर्ट में चालान पेश करने से पहले हेराफेरी करता था। असल सबूतों से छेड़छाड़ होती थी। ‘चिट्टा’ की जगह कोई और नशीला पदार्थ फोरेंसिक लैब जांच के लिए भेजा जाता था और मामले को कमज़ोर करने और आरोपियों की मदद करने के लिए तस्करों के वाहनों के रजिस्ट्रेशन नंबर ग़लत लिखे जाते थे।
सूत्रों ने यह भी ख़ुलासा किया कि इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह जब बड़ी मात्रा में हेरोइन के साथ एक तस्कर को गिरफ़्तार करते थे, तो वह बरामद ड्रग्स की मात्रा को काफ़ी कम दिखाते थे। ड्रग्स की इस बड़ी मात्रा को फिर पूरे पंजाब में फैले किराए के पेडलर्स की एक टीम के माध्यम से खुले बाज़ार में बेचा जाता था।
एक सवाल के जवाब में डीएसपी जसवंत सिंह ने कहा कि उन्होंने उसके आचरण के बारे में समझाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाक़ात की और अभियोजन पक्ष की मदद के लिए सरकारी गवाह बनने की पेशकश की थी। एनडीपीएस अधिनियम के तहत, किसी अभियुक्त को स्वीकार करने और सरकारी गवाह बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि न्यायालय के पास।
एएसजे संदीप सिंगला ने 21 मार्च, 2023 को डीएसपी जसवंत सिंह के इस सीलबंद इक़बालिया बयान को खोलने का विरोध करने वाले अभियुक्तों के वकील की दलीलें सुनीं और उम्मीद की जाती है कि अगली तारीख़ पर एक आदेश जारी कर दिया जाए।
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