(रग-रग हिंदू rag-rag hindu) अटल जी एक्सटम्पोर बोलते थे। उनके भाषणों की दीवानगी सड़क से लेकर संसद तक देखी जाती थी। हाड़ कंपकपाती सर्दी हो या चिलचिलाती धूप, अगर अटल जी आए हैं तो कोसों दूर से चल कर लोग उनका भाषण सुनने पहुंचते थे। अटल जी का संवाद का तरीका ऐसा था कि हजारों-लाखों की भीड़ में शामिल हर एक आदमी यह अहसास करता था कि अटल जी उसी एक खास आदमी से सीधी बात कर रहे हैं।
जफर इरशाद और अटल जी
मेरा एक दोस्त है, नाम है जफर इरशाद। करियर के शुरुआती दौर में बीजेपी से भी जुड़ा रहा। यह बात आज की बीजेपी की नहीं, 1990 के दशक के बीजेपी की है। उस समय किसी मुस्लिम यूथ का बीजेपी में होना एक अजूबा था। उस कठिन दौर में लखनऊ-बाराबंकी का कोई मुस्लिम लड़का बीजेपी या उसके अनुषांगिक संगठन से जुड़ा हो तो मतलब उसका हुक्का-पानी बंद। जफर इन सब बातों से अलग-बेपरवाह। बहरहाल, बाकी लाखों-करोड़ों लोगों की तरह जफर आज भी अटल जी के भाषणों का दीवाना है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जी के भाषणों में शब्दों की औपचारिकता बढने लगी थी। वो लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट पढ़ने के आदी नहीं थे। वो तो ह्रदय से उत्पन्न शब्दों को मस्तिष्क में मथ कर जुबान से निकालते थे। 15 अगस्त का दिन था। लालकिले पर लाखों लोग अटल जी का भाषण सुनने के लिए इकट्ठा थे। टीवी और रेडियो पर भी करोड़ों लोग नजर गड़ाए और कान लगाए बैठे सुन रहे थे। इस बार अटल जी के भाषण में सरलता नहीं थी। सरकारी औपचारिक शब्दों में लिखा भाषण अटल जी दोहरा रहे थे।
अटल जी अपनी शैली कैसे बदल सकते हैं
स्वतंत्रता दिवस की वजह से ऑफिस में भी स्पेशल शिफ्ट लगाई गई थी। अटल जी का भाषण जैसे ही खत्म हुआ वैसे ही जफर भागता-हांफता हुआ आया और बोला, ‘अटल जी ने निराश कर दिया! लग ही नहीं रहा था कि अटल जी बोल रहे हैं, बॉस कुछ तो गड़बड़ है! ‘अमां प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल जी अपनी शैली कैसे बदल सकते हैं।’
यह बात सही है कि अटल जी का लाल किले की प्राचीर से दिया गया वो भाषण, उनके प्रशंसकों को निराश करने वाला था। मगर सच्चाई यह है कि वो बीजेपी के नहीं बल्कि गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के तौर पर देश को संबोधित कर रहे थे। दूसरी और अहम बात- उस सुबह अटल जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। बुखार से तपने के बावजूद उन्होंने लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित किया था। जफर को जब दूसरी वजह पता चली तो उसका ‘नैराश्य’ कुछ कम हुआ।
अटल जी के दीवानी मुस्लिम युवा पीढ़ी
जफर इरशाद के बहाने इस बात को समझा जा सकता है कि अटल की वाक पटुता और संवाद शैली की दीवानगी किस स्तर की थी। लोग कहते हैं कि गांधी जी को सुनने लिए भी लोग ऐसे ही जुटते थे। सरदार पटेल की कुछ पुरानी ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटोग्राफ्स में इतने सिर दिखाई देते हैं कि उन्हें गिनना मुश्किल हो जाए। इंदिरा गांधी की सभा-रैलियों में भी भीड़ को जुटते हुए देखा है, मगर आजकल कुछ नेताओं को अपवाद के तौर पर छोड़ दें तो निन्यानवे फीसदी नेताओं का भाषण सुनाने के लिए भीड़ जुटाई जाती है- भीड़ जुटती नहीं है।
रग-रग हिंदू मेरा परिचय
‘हिंदू तन-मन हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय’ ऐसी कविताएं लिखने और कहने वाले, संघी भाजपायी अटल बिहारी बाजपेई के प्रशंसक हिंदू ही नहीं मुसलमान भी थे। अटल जी को चाहने वालों के दो हिस्से किए जाएं तो हिंदू और मुसलमान दोनो बराबर संख्या में…! इसके बावजूद उस समय भाजपा को मुसलमानों के वोट ऋणात्मक संख्या में मिलते थे। फिर भी जफर इरशाद और उस जैसे अटल जी के दीवाने अपवाद थे, जो अटल जी के नाम पर अटल जी की जुबान पर भाजपा को वोट देते थे।
अटल जी की विचारधारा के ध्वज वाहक
अटल जी की 98वी जयंती है। जफर इरशाद लखनऊ में ही है। अटल जी को लेकर उसकी दीवानगी आज भी वैसी ही है। एक समाचार एजेंसी में सीनियर जर्निलिस्ट है। लखनऊ में रहने वाले देश के उन पत्रकारों में जफर का नाम शुमार है जिन्हे उंगलियों पर गिना जा सकता है। कुछ साल बाद रिटायर भी हो जाएगा, समाचार एजेंसी से, पत्रकारिता से नहीं। जफर इरशाद की तरह एक टीचर-जर्नलिस्ट डॉक्टर शफी अय्यूब भी हैं। वो दिल्ली में हैं और जेएनयू के आस-पास रहते हैं। जफर लखनऊ-बाराबंकी का है तो डॉक्टर शफी गोरखपुर-कुशीनगर से…। पूर्वांचल की सामाजिक पृष्ठ भूमिका का जिक्र करना यहां जरूरी नहीं, जरूरी यह बताना है कि निजी तौर पर ये दोनों एक दूसरे को बिल्कुल नहीं जानते लेकिन दोनों के विचार एक समान हैं।
सुन्नी डॉक्टर शफी अय्यूब, शिया मुल्क ईरान में शाही मेहमान
भारत में 800 से कुछ कम सांसद 140 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं तो इस लिहाज से जफर इरशाद और डॉक्टर शफी अय्यूह कितने बड़े समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, इसको आसानी से समझा जा सकता है। यानी जफर इरशाद और डॉक्टर शफी अय्यूब जैसे अटल जी की विचारधारा वाले ध्वज वाहकों की मुसलमानों की संख्या 17 करोड़ 50 लाख से ज्यादा हो सकती है। डॉक्टर शफी अय्यूब, उर्दू फारसी और अरबी भी जानते हैं। शफी सुन्नी हैं लेकिन जब वो शिया मुल्क ईरान पहुंचते हैं तो उनका इस्तकबाल शाही मेहमान के तौर पर होता है। मुस्लिम देशों में डॉक्टर शफी के शागिर्दों की लंबी फेहरिश्त है। डॉक्टर शफी इस तरह विदेशों में भारतीय विचारधारा के ध्वज वाहक मुसलमान माने जा सकते हैं।
रुकनुद्दीन और महबूब के बिना अटल जी के ध्वजवाहक मुसलमानों की लिस्ट अधूरी
अटल जी की जयंती पर अटल जी के वैचारिक ध्वजवाहक मुसलमानों का जिक्र डॉक्टर रुकनुद्दीन और डॉक्टर महबूब के नाम के बिना अधूरा है। दुनिया के तमाम मुस्लिम देशों की युवा पीढ़ी डॉक्टर रुकनुद्दीन और डॉक्टर महबूब की शक्ल में भारतीय मुसलमानों को पहचान बन रही है। अदनी-मदनी, ओवैसी-खुवैसी, तौकीर-फौकीर और बर्क-शर्क जैसे नेता निजी सियासी फायदे-नुकसान को देख कर कुछ भी कहते-बकते फिरें लेकिन दुनिया जान रही और मान रही है कि जहां, जफर इरशाद, डॉक्टर शफी अय्यूब, डॉक्टर रुकनुद्दीन और डॉक्टर महबूब जैसे ‘अटल ध्वज वाहक’ हैं तो भारत में-यूपी में मोदी की सरकार हो या योगी की, वहां मुसलमान खुश हैं और खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं। अटल जी की विचारधारा को विश्वव्यापी बना रहे हैं। सिर्फ मुसलमान ही नहीं दुनियाभर के लोग अटल जी के सपनों के भारत की ओर आशा और विश्वास भरी निगाहों से देख रहे हैं। शत-शत नमन!
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