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तीन तलाक़ क़ानून से महिलाओं को फ़ायदा,सावधान होते मुस्लिम पुरुष

मोहम्मद अनस  

Triple Talaq: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित रूढ़िवादी मुस्लिम हलकों द्वारा संदेह व्यक्त किया गया है कि मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, जिसे तीन तलाक़ क़ानून के रूप में जाना जाता है, मुस्लिमों के विनाश का कारण बनेगा। इस क़ानून के लागू होने के चार साल बाद भी घर आधारहीन साबित हुए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से मिलती धारणाओं से पता चलता है कि ज़्यादातर मुस्लिम पुरुष अब इस क़ानून के तहत सजा से डरते हैं और तलाक़ के लिए केवल स्वीकृत मार्गों का ही सहारा लेते हैं।

तीन तलाक़ क़ानून को भारतीय संसद ने 30 जुलाई 2019 को मंज़ूरी दे दी थी।

<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>Success of Modi ji , <br><br>Now congress is also saying that , <br><br>Triple Talaq is criminal offence. <br><br>Muslim women’s is secure after the law on triple talaq . <br><br>Retweet it .<a href=”https://t.co/LBF3gx7M7N”>pic.twitter.com/LBF3gx7M7N</a></p>&mdash; Aquib Mir (@aquibmir71) <a href=”https://twitter.com/aquibmir71/status/1673714674377031680?ref_src=twsrc%5Etfw”>June 27, 2023</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>

हालांकि, कुछ मौलवी अब भी इस अधिनियम की अवहेलना कर रहे हैं और जोड़ों को सलाह दे रहे हैं कि शरिया-अनुपालक तत्काल तीन तलाक़ वैध रहेगा, क्योंकि इसे सभी चार प्रचलित इस्लामी विचारधाराओं- हनफ़ी, शाफ़ई, के फ़ुकाह (हदीस व्याख्याताओं) के बीच हनबली और मलिकी इज्मा की मंज़ूरी प्राप्त है।

2011 की जनगणना (अब भी नयी जनगणना होना बाक़ी है) के अनुसार, लगभग 8% भारतीय, मुख्य रूप से 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलायें तलाक़ की प्रथा से प्रभावित हैं। यद्यपि हिंदुओं की तुलना में मुस्लिमों में तलाक़ का चलन कम है, फिर भी एक बार में तीन तलाक़ देने की प्रथा तूल पकड़ती रही और इसमें सुधार के लगातार वादों के बावजूद, इस समुदाय के नेता विरोध न करते हुए भी इसे किसी न किसी तरह से टालते रहे।

तीन तलाक़ या तलाक़-ए-बिद्दत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रचलित है। दिलचस्प बात यह है कि कई मौलवियों ने इसे “इनोवेशन” (इस प्रकार बिद्दत) या “पाप” कहा है, लेकिन फिर भी उन्होंने इसे वैध माना। एक अन्य प्रथा, जिसे निकाह हलाला के रूप में जाना जाता है, जो कि एक रात के लिए एक ऐसी उद्देश्यपूर्ण शादी है ताकि तलाकशुदा महिला को पहले पति से दोबारा शादी करने में सक्षम बनाया जा सके, इसे भी इस मुद्दे से जोड़ा गया है।

तत्काल तीन तलाक़ से निपटने वाले कई अदालती मामले हाल के वर्षों में संबंधित पक्षों की दलीलों और बाद में न्यायाधीशों की टिप्पणियों के कारण मीडिया की सुर्खियां बने।

इस प्रथा की शिकार एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शायरा बानो ने बहुविवाह, निकाह-हलाला और तलाक-ए-बिद्दत सहित तीन प्रथाओं को असंवैधानिक मानने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लिखित याचिका दायर की थी, क्योंकि वे संविधान अनुच्छेद 14, 15, 21 और के 25 का उल्लंघन करती हैं।

Bebaak Collective and Bhartiya Muslim Mahila Andolan (BMMA)  जैसे महिला अधिकार समूहों ने बानो के समर्थन में रैली की और इस प्रथा को समाप्त करने का आह्वान किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2017 को तलाक़ की इस प्रक्रिया को यह कहते हुए अमान्य कर दिया कि तत्काल तीन तलाक़ संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

बाद में संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया। यह कानून निम्नलिखित प्रमुख प्रावधानों को निर्धारित करता है:

जो भी मुस्लिम पति अपनी पत्नी को तलाक़ की डिक्री देगा, उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल की सज़ा होगी।

न्यायपालिका द्वारा परिभाषित अपने पति से अपने और अपने बच्चों दोनों के लिए एक निश्चित राशि की मदद प्राप्त करने का अधिकार एक विवाहित मुस्लिम महिला की है, जिसे तलाक़ सुनाया गया है।

यदि उसका पति तलाक देता है, तो एक विवाहित मुस्लिम महिला को अपने नाबालिग़ बच्चों के संरक्षण पाने का अधिकार है, जैसा कि मजिस्ट्रेट द्वारा मूल्यांकन किया गया हो।

<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>“Pandit Nehru will be pleased that Narendra Modi could achieve what Panditji dreamed of. Opposition parties opposed the Triple Talaq Bill in Rajya Sabha under the influence of All India Muslim Personal Law Board”<br><br>~Arif Mohd Khan on <a href=”https://twitter.com/hashtag/TripleTalaqBill?src=hash&amp;ref_src=twsrc%5Etfw”>#TripleTalaqBill</a> <a href=”https://t.co/zlgliy00hh”>pic.twitter.com/zlgliy00hh</a></p>&mdash; Ajit kumar (@connectajitcpr) <a href=”https://twitter.com/connectajitcpr/status/1156169191822516224?ref_src=twsrc%5Etfw”>July 30, 2019</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>

चार साल बाद उपर्युक्त सज़ा के डर ने मुस्लिम पुरुषों को तत्काल मनःस्थिति में अपनी शादी को रद्द करने के लिए मनमाना सहारा लेने से रोक दिया है।

31 जुलाई, 2021 को तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने संसद को सूचित किया था कि इस प्रथा के ख़िलाफ़ कानून लागू होने के बाद तीन तलाक़ के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आयी है और देश भर में मुस्लिम महिलाओं ने इस क़ानून का ज़बरदस्त स्वागत किया है।

मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले उत्तर प्रदेश में तीन तलाक़ के क़रीब 80 फ़ीसदी मामले कम हुए हैं।

हालांकि, ऐसे मामलों में कितनी गिरावट आयी है, इस पर कोई स्वतंत्र अध्ययन नहीं हुआ है।

जब इस संवाददाता ने एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास से पूछा, जो तत्काल तीन तलाक़ मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक पक्ष थे और 2019 के क़ानून को मुस्लिम व्यक्तिगत क़ानूनों के चलन में हस्तक्षेप मानते हैं,  क्या बोर्ड ने इसका कोई रिकॉर्ड रखा है  ? पिछले चार साल में इस क़ानून से मुस्लिमों को नुकसान हुआ है, उन्होंने कहा कि बोर्ड के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।

लेकिन, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह क़ानून मुसलमानों के वैवाहिक जीवन में बाधा डाल रहा है। लेकिन, यह ऐसा कैसे कर रहा है ? उन्होंने कोई रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं किया, सिवाय यह कहने के कि बोर्ड जल्द ही अपना अध्ययन लेकर आयेगा।

इसी तरह, प्रमुख मदरसा जामिया अशरफ़िया, आज़मगढ़ के मुफ़्ती निज़ामुद्दीन ने कहा कि वह संसद द्वारा बनाये गये इस क़ानून पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन वह अब भी लोगों से कहते हैं कि एक बार में तीन तलाक़ फ़ुकाह (एक्सजेज़) की राय के अनुसार वैध है और लोगों को ऐसा करना ही चाहिए। उनके शरीयत के लिए अनिवार्य है।

हालांकि, जब इंडिया नैरेटिव ने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने अपने आस-पास तत्काल तीन तलाक के मामलों में गिरावट देखी है या नहीं, तो उन्होंने कहा, “लोग अब इस क़ानून से डरते हैं और कहते हैं कि उन्होंने तो केवल दो ही बार तलाक़ कहा है।”

आईएन ब्यूरो

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