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Waqf Board- ठोक दे आपकी जमीन पर दावा तो आप क्या करेंगे

Waqf Board: आप बरसों से अपने घर में रह रहे हैं और इसी घर में आपके पूर्वज भी रहे हैं। आपके पास जो जमीन है उसपर आपके अलावा आपके पूर्वजों ने भी खेती की होगी। लेकिन, एक दिन अचानक आपके पास नोटिस आता है कि ये जमीन आपकी नहीं बल्कि, वक्फ बोर्ड (Waqf Board) की है। आप कोर्ट भी नहीं पहुंच पाते हैं क्योंकि, आपको वक्फ बोर्ड को ही साबित करना होगा कि ये जमीन आपकी है। वक्फ बोर्ड को कुछ नहीं करना होगा… जो कुछ भी करना होगा आपको करना होगा।

27 साल पहले तक ऐसा कुछ भी नहीं था। वक्फ बोर्ड तो क्या आपकी जमीन पर कोई भी अनाधिकृत कब्जा नहीं कर सकता था। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक एक्ट बनाया और वक्फ बोर्ड को अधिकार दे दिया कि भारत की किसी भी संपत्ति के बारे में वक्फ बोर्ड को अंदेशा होता है कि अमुक जमीन-मकान संपत्ति मुगलों या मुसलमानों की थी तो वो भू राजस्व पंजीकरण विभाग में आपत्ति दाखिल कर देगा। वक्फ बोर्ड की सिर्फ इतनी सी कार्यवाही से उस संपत्ति का मालिकाना हक वक्फ बोर्ड का हो जाएगा। इस एक्ट सबसे खतरनाक पहलू यह है कि वक्फ बोर्ड बिना नोटिस दिए ही जमीन-मकान का मालिकाना दावा ठोंक सकता है।

ये सुनकर आपको अटपटा जरूर लगा होगा। बल्कि, अगर आपके साथ ऐसा वाकया हुआ तो आपका ब्लड प्रेशर हाई हो सकता है। ये कहानी है कि, वक्फ बोर्ड (Waqf Board) की… जिसने अगर किसी जमीन पर दावा ठोक दिया तो उसे किसी दस्तावेज या सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होगी बल्कि सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक इसका दावेदार रहा है। आजकल वक्फ बोर्ड (Waqf Board) इसी तरह का फायदा उठाने को लेकर चर्चा में है। ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि, हिंदुओं की जमीन को हड़पकर वक्फ बोर्ड इस्लाम का और ज्यादा विस्तार करना चाहता है। अब वो समय आ गया है जब वक्फ बोर्ड को लेकर सरकार कोई बड़ा फैसला ले और ऐसा कानून बनाए जिसका बोल्ड फायदा न उठा सके।

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कहानी शुरू होती है तमिलनाडु के एक हिंदू बहुल गांव से जहां की करीब 90 प्रतिशत जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया है। सबसे मजे की बात ये है कि, इसमें 1500 साल पुराना एक मंदिर भी है। यानी की इस्माल की उत्पत्ति से पहले से ही ये हिंदुओं का गांव है। यही नहीं, वक्फ बोर्ड ने इस मंदिर पर भी अपनी मिल्कियत का दावा कर दिया। बीते 13 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। सभी जानते हैं कि, जमीन का विस्तार तो नहीं होता है। तो फिर वक्फ बोर्ड के हिस्से जमीन का इतना बड़ा हिस्सा, इतनी तेजी से कैसे जा रहा है। इन सबके पीछे वक्फ बोर्ड अपने कानूनों का इस्तेमाल करता है। कई मामले ऊपर आते हैं तो कई दब जाते हैं। आईए जानते हैं वक्फ बोर्ड से जुड़ी हर एक बातें…

सिर्फ इतने वर्षों में दोगुनी हो गई वक्फ बोर्ड की जमीन
आगे बढ़ने से पहले आपको जानकारी होनी चाहिए कि देश में सिर्फ तीन लोगों के पास सबसे ज्यादी जमीन है। पहली भारतीय सेना के पास (करीब 18 लाख एकड़ जमीन पर सेना की संपत्तियां) है। दूसरी रेलवे के पास जो चल-अचल संपत्तियां करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं। सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे ज्यादा जमीन है। यानी वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं जो 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। लेकिन, सबसे बड़ा चौंका देने वाला आंकड़ा तो ये है कि, साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां 4 लाख एकड़ जमीन पर फैली थी। यानी बीते सिर्फ 13 वर्षों में वक्फ होर्ड की संपत्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई। यानी की तमिलनाडु का मामला पहला नहीं है, वक्फ बोर्ड के पास 13 वर्षों में दोगुनी से भी ज्यादा जो संपत्तियां हुई हैं वो जरूर इसी तरह से हड़पी गई होंगी। क्योंकि साफ है कि, जमीन का विस्तार नहीं होता तो ऐसे में वक्फ बोर्ड के हिस्से जमीन का इतना बड़ा हिस्सा, इतनी तेजी से कैसे जा रहा है।

असली खेल ऐसा होता है
वक्फ बोर्ड का खेल इस तरह समझिए कि, देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की ये घेराबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों को भी बाढ़ सी आ रही है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है।…. 1995 का वक्फ एक्ट को जानने के बाद आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी… दरअसल, ये कानून कहता है कि, अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। यानी सिर्फ लगने मात्र से आपके बर्सों की कमाई पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है और इसे साबित करने के लिए उलटा आपको ही पापड़ बेलना होगा। इसके साथ ही, अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है।

वक्फ बोर्ड ऐसे लोगों को खोजता है कि, जिन परिवारों के पास जमीन का पुख्ता कागज नहीं होता है। बस इसी पर वो दावा ठोक देता है। यहां तक कि, उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना होता है। मात्र कह देने से सारी संपत्ति उसकी हो जाती है।

पूरी दुनिया में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं तो भारत में क्यो?
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद जो मुसलमानों पाकिस्तान चले गए उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। एक रिपोर्ट की माने तो वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि, 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि, विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे। पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया। लेकिन, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि यहां से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा। जो मालिकों द्वारा साथ ले जाने, बेच दिए जाने के बाद जो संपत्तियां बच गई हैं, उन्हें वक्फ की सपत्ति घोषित कर दिया गया। एनिमी प्रॉपर्टी अपवाद थी, उस पर सरकार का अधिकार हुआ। 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ। यहीं से भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा शुरू हुआ। दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है। यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है। जब बाकी इस्लामी देशों में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है तो फिर भारत में ये क्यों उपजा। क्या इसी लिए कि हिंदुओं की जमीनों को वक्फ बोर्ड हड़प कर इस्लाम का विस्तार करे।

कांग्रेस सरकार में मिली वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां
साल 1995 का था और इस दौरान कांग्रेस की सरकार थी, पीवी नरसिम्हा राव प्राधानंत्री थे। उन्होंने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन करते हुए नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ। यहां तक कि, अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट भी नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।

जिसे वक्फ बोर्ड अपनी जमीन मान ले उसके खिलाफ कोर्ट तक नहीं जा सकते
वक्फ बोर्ड की ऐसी ही विवादित गतिविधियों और उसे मिले विशेषाधिकारों को गैर-संवैधानिक बताते हुए वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वो कहते हैं कि, स्टेट वक्फ बोर्ड्स में सभी सात सदस्य मुसलमान ही होते हैं। इसमें एक वकील, एक विधायक, एक सांसद, एक टाउन प्लानर, एक आईएस ऑफिसर, एक स्कॉलर, एक मुतवल्ली होते हैं। वक्फ एक्ट कहता है कि ये सभी मुस्लिम होंगे। उपाध्याय कहते हैं, ‘बोर्ड किसी भी जमीन पर कह दे कि यह जमीन वक्फ की है तो उसके नोटिस के खिलाफ कोर्ट नहीं, वक्फ ट्राइब्यूनल से गुहार लगानी होगी। सोचिए, जिस वक्फ बोर्ड ने गलत दावा किया, उसके खिलाफ शिकायत की सुनवाई भी उसी का एक्सटेंडेड इंस्टिट्यूशन करेगा। वो पूछते हैं कि अगर किसी को लगता है कि ट्राइब्यूनल पर तो संदेह नहीं किया जा सकता है तो फिर इसी तरह का कानून, इसी तरह का ट्राइब्यूनल गैर-मुस्लिमों के लिए क्यों नहीं है?

उनका कहना है कि, वक्फ बोर्ड किस जमीन पर नोटिस जारी करेगा, इसकी कोई सीमा नहीं है। उसकी जहां मर्जी, उस जमीन को वक्फ की संपत्ति बात दे और जिसकी जमीन है, उसे बेवजह परेशानी झेलनी पड़ती है। उन्होंने आरोप लगाया है कि, वक्फ इसका फायदा उठाकर वसूली कर रहा है, उसे जिससे उगाही करनी होती है, उसे धमकाता है कि उसकी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी जाएगी। डर के चलते व्यक्ति वक्फ अधिकारियों की जी-हजूरी करने लगता है और फिर मनमाने शर्त मानने को मजबूत हो जाता है।

आरोप
– उपाध्याय का आरोप है कि वक्फ बोर्ड अपने असीमित अधिकारों के दुरुपयोग से गरीबों का धर्मांतरण करवा रहा है।
– वह आदिवासी इलाकों में लोगों की जमीन पर नोटिस देता है और जब व्यक्ति परेशान होता है तो उसे कहा जाता है कि अगर वह इस्लाम अपना ले तो जमीन बच जाएगी।
– उनका दावा है कि छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के पिछड़े इलाकों में जहां लोग पर्याप्त शिक्षित नहीं है, वहां वक्फ एक्ट धर्मांतरण का औजार बन गया है।

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क्या है तमिलनाडु का मामला
तमिलनाडु का जो ताजा मामला है वो प्रदेश के त्रिची जिले का है, जहां एक हिंदू बहुल गांव तिरुचेंथुरई को वक्फ बोर्ड ने अपनी मिल्कियत घोषित कर दी है। बोर्ड ने कहा है कि, इस गांव की पूरी जमीन वक्प की है जबकि इस गांव में सिर्फ 22 मुस्लिम परिवार हैं और हिंदू आबादी 95 प्रतिशत है। इससे बड़ी बात यह है कि, वहां के मंदिर पर भी वक्फ की संपत्ति घोषित कर दी गई है। जिसे लेकर बताया जा रहा है कि, ये मंदिर 15 सौ वर्ष पुरानी है, यानी दुनिया में इस्लाम के आने से पहले से ही ये मंदिर यहां पर है। तमिलनाडु का यह मामला वक्फ बोर्ड को मिली असीमित शक्तियों और उसके दुरुपयोग का एक सबसे बड़ा उदाहरण है।

Vivek Yadav

Writer

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