West Bengal Assembly Election: बांग्लादेश से लौटे ‘मतुआ दलितों’ पर टिकी है TMC और BJP की नज़र

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<span style="background-color:#ffffe0;"><span style="font-family:times new roman,times,serif;"><strong>पश्चिम बंगाल को लेकर बीजेपी और टीएमसी के बीच करो या मरो की स्थिति है। BJP पश्चिम बंगाल में ‘खेला ना होबे विकास होबे’के मुद्दें के साथ स्थानिये मुद्दों पर काफी गंभीर है। TMC बांग्लाभाषी और बाहरी के मुद्दें पर ज्यादा जोर दे रही है। और यही कारण है कि BJPपश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय को लेकर काफी गंभीर है। माना ये भी जाता है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में मतुआ समुदाय पश्चिम बंगाल में हार जीत के आंकड़ों पर गहरा असर डालते हैं। क्या हैं ये समीकरण और क्यों है मतुआ समुदाय पर BJP और TMC आमने सामने पढ़िये।</strong></span></span></p>
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पश्चिम बंगाल में पहले चरण के चुनाव में बस एक हफ्ते का समय बचा है। । TMC और BJP दोनों ही पार्टियां अपने अपने वोट बैंक को रिझाने के लिए पूरी ताकत से रैलियां और प्रचार कर रही है। पश्चिम बंगाल में स्थानिये मुद्दों के साथ टीएमसी और बीजेपी की नज़र बंगाल के मतुआ समुदाय पर है।</p>
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मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि बंगाल के सियासी समीकरणों में  मतुआ वोटर्स का अहम रोल हैं। माना जाता है कि मतुआ वोट जिधर भी जाता है उसका पलड़ा भारी हो जाता है।</p>
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<strong>मतुआ समुदाय का सीटों पर असर</strong></p>
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नॉर्थ बंगाल में लगभग 70 विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय का सीधा असर है। सत्तारूढ़ TMC CONGRESS  और टीएमसी कांग्रेस को चुनौती दे रही BJP मतुआ समुदाय को साधने में जुटी है।</p>
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<img alt="" src="https://hindi.indianarrative.com/upload/news/Matua-3.jpg" /></p>
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भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद मतुआ Matua यानी मातृशूद्र समुदाय के एक बड़े हिस्से को नागरिकता की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है. इस समुदाय को वोट करने का अधिकार तो मिल गया, लेकिन नागरकिता का मुद्दा अभी शेष है। देश के विभाजन के बाद इस समुदाय के बहुत से लोग भारत आ गए थे। बाद में भी पूर्वी पाकिस्तान से लोग आते रहे। इस समुदाय का प्रभाव NORTH BENGAL में सबसे ज्यादा है। लगभग तीन करोड़ (30,000,000) लोग इस समुदाय से जुड़े हैं या उसके प्रभाव में आते हैं, ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए यह एक काफी मजबूत वोट बैंक है। </p>
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<strong>इन जिलों की सीटों पर रहता है खास प्रभाव</strong></p>
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ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की 40 सीटों मतुआ समुदाय की ही हैं। उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण परगना इनके सबसे ज्यादा प्रभाव वाले इलाके हैं। इसके अलावा 20 सीट हैं जहां मतुआ समुदाय की संख्या इतनी है उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा बंगाल की 10 और सीट ऐसी हैं जिन पर मतुआ समुदाय जीत और हार का अंतर कम या ज्यादा कर सकते हैं। ऐसे इलाके  हुगली जिले के अलावा उत्तर बंगाल के कूचविहार और आसपास हैं।</p>
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<strong>मतुआ समुदाय के लिए क्या है बड़ा मुद्दा</strong></p>
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मतुआ समुदाय के लिये नागरिकता बड़ा मुद्दा है। 2019 में लोकसभा चुनाव में BJP ने CAA यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम के वादों के चलते उसे इस समुदाय का समर्थन हासिल हुआ था। हालांकि ममता बनर्जी भी इस समुदाय के काफी करीब रही हैं और वह जमीन पर अधिकार देने की बात पश्चिम बंगाल में कर रही हैं।</p>
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<strong>BJP </strong><strong>ने CAA </strong><strong>से </strong><strong>बढ़ाई नजदीकी तो </strong><strong>TMC </strong><strong>ने दिखाया डर</strong></p>
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मतुआ समुदाय की परेशानियों को हल करने के लिए BJP ने CAA यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम में इस बात पर जोर दिया कि समुदाय को भारत की नागरिकता आसानी से मिल सके। जिसके बाद इस मतुआ समुदाय की नजदीकी BJP से बढ़ गयी। अब इस समुदाय के लोगों को नागरिकता का भरोसा बना है। वहीं ममता बनर्जी NRC-CAA  का मुद्दा उठाकर समुदाय को डराने की कोशिश कर रही हैं। ममता का कहना है कि अगर वह लागू हुआ, तो उन लोगों को बांग्लादेश वापस जाना होगा। हालांकि, बीजेपी ने जोर देकर ये कहा है कि CAA को लागू कर पार्टी उनको यहां की नागरिकता देगी। इस समुदाय में 99 फीसदी से ज्यादा लोग हिंदू समुदाय से आते हैं, इसलिए बीजेपी को समर्थन मिलने की काफी उम्मीद है। ममता बनर्जी भी बीजेपी के नागरिकता के मुद्दे की काट के लिए मतुआ लोगों को जमीन पर अधिकार देने का अभियान चला रही हैं। </p>
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<strong>बीजेपी और टीएमसी क्यों हैं मतुआ समुदाय पर आमने सामने</strong></p>
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2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी पूर्व में वामपंथी दलों को मतुआ समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। बाद में इस समुदाय को लगातार ममता बनर्जी रिझाती रही हैं। बीते लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समुदाय के प्रमुख ठाकुर परिवार की प्रमुख वीणापाणि देवी (बोरो मां) का आशीर्वाद लेकर ही चुनाव अभियान में उतरे थे। इस परिवार का मतुआ समुदाय पर काफी प्रभाव है। बाद में बीजेपी ने इसी परिवार के शांतनु ठाकुर को लोकसभा का टिकट दिया और वह जीते। इसके पहले तृणमूल कांग्रेस से इस परिवार से लोकसभा सदस्य रहा और राज्य में माकपा के कार्यकाल के दौरान विधायक भी इसी परिवार से रहे हैं। 1977 में इस समुदाय ने माकपा का समर्थन किया था, जिसकी लंबे समय तक सरकार रही।</p>
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अब टीएमसी की नजर इस समुदाय पर काफी करीब से है और ममता बनर्जी की ये कोशिश है कि इस समुदाय का भरोसा वो जीत ले जाए। बंगाल में लगभग  एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ मतदाता हैं। उत्तर 24 परगना का ठाकुर नगर इनका गढ़ है। इस वक्त TMC और BJPदोनों दलों की नजर मतुआ वोटर्स पर टिकी हैं और दोनों ही पार्टियां इन्हें लुभाने की भरसक कोशिश कर रही हैं। </p>

आईएन ब्यूरो

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