पाकिस्तान में पढ़ाई करने कौन जाता है?

चार दिन पहले 1 नवबंर को आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर आतंकवादी सैफुल्लाह को सुरक्षाबलों ने श्रीनगर में एक मुठभेड़ में मार डाला था। उसके बाद आतंकवादी संगठन ने कश्मीर के लिए आतंकवादी जुबैर वानी को नया कमांडर बनाया है। जम्मू और कश्मीर के पुलिस के मुताबिक जुबैर A++ कैटेगरी यानि बहुत खतरनाक आतंकवादी है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला जुबैर, 2018 में आतंकवादी संगठन मे शामिल हुआ था।

जुबैर का बायोडाटा काफी दिलचस्प है। कुछ साल पहले वह स्टूडेंट वीजा पर पाकिस्तान पढ़ाई करने गया था और समाजिक शास्त्र (Sociology) में एम. फिल की डिग्री हासिल की। जबकि हकीकत कुछ और है। उसने लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग सेंटर में आतंक की ट्रेनिंग ली और डिग्री लेकर वापस कश्मीर आकर आतंकवादी कार्रवाइयों में जुट गया। उस पर कश्मीर में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या और सुरक्षा बलों पर हमले करने का आरोप है। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक,"वो स्टूडेंट वीजा पर वाघा बार्डर पार कर पाकिस्तान पढ़ने गया लेकिन नियंत्रण रेखा (LOC) पार कर आतंकवादी बनकर भारत लौटा।"

पुलिस सूत्रों के मुताबिक जम्मू और कश्मीर में धारा 370 के खात्मे के बाद आंतकवादियों की संख्या कम होती जा रही है। क्योंकि उनके खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाइयां तेजी से बढ़ी हैं। पिछले साल अगस्त से लेकर अब तक हिजबुल का कोई बड़ा आतंकवादी 4-5 महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाया है। एक अनुमान के मुताबिक कश्मीर में मौजूद हिजबुल के आतंकवादियों की संख्या 50 के आस-पास है।

सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर को लेकर एक नई चाल चली है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन, कश्मीर के लोगों को ही अपने संगठनों में भर्ती कर उनसे जिहाद करवा रहे हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान पढ़ने जाने वाले कश्मीरी नौजवानों पर उनकी नजर रहती है। सूत्रों के मुताबिक कश्मीर में मौजूद करीब 120 आतंकवादी स्थानीय नौजवान हैं, जो हिजबुल, लश्कर,जैश और अल-बदर संगठनों से जुड़े हैं।

<img class="wp-image-16895" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/Kashmir-local-terrorists-1536×1024-1-1024×683.jpg" alt="Kashmir-local-terrorists-1536×1024" width="443" height="295" /> इस महीने की शुरुआत में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में एक ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाकर्मी (आईएएनएस)

इनमें से कई ऐसे नौजवान हैं जो स्टूडेंट वीजा पर पाकिस्तान गए थे, लेकिन वापस वे प्रोफेशनल आतंकवादी बनकर लौटे। इस साल सितंबर में भारत सरकार ने करोना की वजह से फंसे 354 कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान जाने की अनुमति दी थी। उन छात्रों ने सरकार से गुजारिश की थी कि अगर वो वापस नहीं गए, तो उनकी पढ़ाई अधूरी रह जाएगी। ये छात्र पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित संस्थानों में इंजीनियरिंग, मेडीकल और दूसरे विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। पाकिस्तान की तरफ से उन्हें स्कॉलरशिप भी दी गई है।

जबकि सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि पाकिस्तान से मिलने वाली इन डिग्रियों की भारत में कोई मान्यता नहीं है। पाकिस्तान की इंजीनियरिंग, डॉक्टरी या फिर बीए, एमए की डिग्रियों का कोई महत्व भारत में नहीं है। भारत में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने हाल ही में एक पब्लिक नोटिस जारी किया था कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में मेडिकल कॉलेजों द्वारा दी जाने वाली डिग्रियां भारत में मान्य नहीं होंगी। क्योंकि ये इलाके भारत के ही हिस्से हैं, फिर पाकिस्तान कैसे डिग्री दे सकता है।

फिर सवाल उठता है कि कश्मीर से ये छात्र पाकिस्तान क्यों पढ़ने जाते हैं? दरअसल यह सिलसिला काफी सालों से चल रहा है। पाकिस्तान के कॉलेजों में एडमिशन के लिए घाटी के छात्रों को कश्मीर के अलगावादी और उनसे जुड़े हुर्रियत जैसे संगठनों को घूस देना पड़ता है। तभी जाकर उन्हें सिफारिशी पत्र मिलता है। इन सिफारिशी पत्र को दिल्ली के पाकिस्तान के हाई कमीशन में जमा करना होता है। उसके बाद ही छात्रों को पाकिस्तान में दाखिला मिलता है। लेकिन वहां भी घूस देनी पड़ती है।

जांच एजेंसी एनआईए के मुताबिक आतंकी ग्रुप हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ सैयद सलाहुद्दीन के नेतृत्व वाले यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के अलावा सैय्यद अली शाह गिलानी और मौलवी उमर फ़ारूक़ के धड़े वाले दोनों ही हुर्रियत गुट के लोग कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान में एडमिशन के लिए अनुशंसा पत्र दिया करते थे। हुर्रियत के सात एग्ज़ीक्यूटिव मेंबर थे और सभी छात्रों को एडमिशन के लिए सिफारिशी पत्र दिया करते थे। इसके लिए छात्रों के परिवारों से मोटी रकम वसूल करते थे।

<img class="wp-image-16897" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/कश्मीर-में-सेना-1024×683.jpg" alt="A cordon and search operation underway at Lassipora village, in Jammu and Kashmir's Pulwama district (IANS)" width="442" height="295" /> जम्मू और कश्मीर के पुलवामा जिले के लस्सीपोरा गांव में एक तलाशी अभियान चल रहा है। (आईएएनएस)

दिलचस्प बात यह है सलाहुद्दीन, गिलानी, उमर फारुख जैसे किसी भी अलगाववादी ने अपने किसी बच्चे को पाकिस्तान पढ़ने के लिए नहीं भेजा। तमाम अलगाववादी नेताओं के बच्चे भारत में पढ़ रहे है या फिर यहा की डिग्री पर विदेशों में हैं। खुद हिजबुल चीफ के बच्चे भारत में पढ़कर यहां नौकरी कर रहे हैं। एक बेटा तो सरकारी वजीफे पर डॉक्टर भी बन गया है।

इस साल जनवरी में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के एक पैनल ने कश्मीरियों के लिए एक खास स्कीम की घोषणा की थी। पाकिस्तान वर्षों से कश्मीरी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है, लेकिन ये ज्यादातर बहुत ही छोटे पैमाने पर थे। इस बार इमरान खान की सरकार ने 1600 कश्मीरी छात्रों को स्कॉलरशिप देने का ऐलान किया था। लेकिन ऐन वक्त पर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने इस योजना को खारिज कर दिया। एजेंसियों के मुताबिक,"स्कॉलरशिप देना युवा कश्मीरियों को कट्टरपंथी बनाने की पाकिस्तान की चाल है। उन्हें बाद में ब्रेनवॉश करके भारत के खिलाफ भड़काया जाता है। पहले उनकी सहानुभूति लेते फिर बाद में उनका इस्तेमाल कश्मीर में आतंकी कार्रवाइयों के लिए करते हैं।"

ताज्जुब की बात है कि पाकिस्तान की ये सारी योजनाएं पाक अधिकृत कश्मीर के छात्रों के लिए नहीं हैं। इस बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने जम्मू और कश्मीर के छात्रों और उनके परिवार वालों को आगाह किया है कि वो पाकिस्तान और पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर के शैक्षिक संस्थानों से बचें। इनसे मिलने वाली डिग्रियों का भारत में कोई महत्व नहीं है। सुरक्षा एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि ऐसे छात्र अगर लश्कर या जैश की आतंक की पाठशाला में पढ़ कर वापस आते हैं, तो अंजाम भी सोच लें।.

डॉ. शफी अयूब खान

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