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कृषि विधेयक 'नफे' के लिए हैं तो किसान क्यों कर रहे विरोध? कारक और कारण- देखें रिपोर्ट

कृषि विधेयकों पर हो रहे विरोध को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ काफी दुविधा में हैं। कारण यह है कि कांग्रेस और सरकार विरोधी तत्वों ने किसानों में यह वहम फैलाना शुरू कर दिया है कि यह किसान विरोधी हैं। कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग के जरिए एमएनसी को फायदा पहुंचाना चाहती है कांग्रेस। जबकि इस विधेयक के नियमों के मुताबिक किसान अपनी फसल को अपने मन मुताबिक दाम पर, अपनी मन माफिक मण्डी या शहर या गांव में जाकर बेचने को आजाद होगा। कम जोत वाले किसानों के सामने कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग का विकल्प है।
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<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>''कम जोत वाले किसानों के सामने कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग एक विकल्प है बाध्यता नहीं''</strong></span></h3>
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विधेयक के मुताबिक कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग किसानों पर बाध्यकारी नहीं है लेकिन यह उन छोटे किसान समूहों के लिए है जो साल भर मेहनत तो करते हैं लेकिन कभी सूखा तो कभी बाढ़ या फिर किसी अन्य कारण से उपज खो बैठते हैं। साल के आखिर में फसल से इतने पैसे भी नहीं निकल पाते जितना उन्होंने खेत में लगा दिया। किसान की मेहनत तो वैसे भी बेगार में जाती है। कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग में फसल खराब होने या न होने का असर किसान पर नहीं पड़ेगा। उन्हें खेती पहले की तरह करनी होगी लेकिन कॉन्ट्रेक्टर की सलाह पर करनी होगी। खेत में बीज-पानी-खाद की व्यवस्था कॉन्ट्रेक्टर करेगा।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>"बीज से लेकर मार्केट तक की जिम्मेदारी कॉन्ट्रेक्टर की। किसान को एकमुश्त पैसा पहले ही''</strong></span></h3>
फसल को खेत से बाजार तक लेजाने बेचने की जिम्मेदारी कॉन्ट्रेक्टर की होगी। इतना ही नहीं किसान को उसकी जमीन के आकार के हिसाब से संभावित फसल का मूल्य समय से पहले ही मिल जायेगा। इसका मतलब यह कि वो किसान जिनकी जोत कम होने की वजह से हमेशा खेती हमेशा घाटे का सौदा होती थी वो नफे में तब्दील हो सकती है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि लगभग 85 फीसदी छोटे किसान हैं। छोटे किसान मतलब जिनके पास 2-3 एकड़ से ज्यादा खेतीहर जमीन नहीं है। अगर इन विधेयकों को सकारात्मक दृष्टि से देखें तो यह फायदे का सौदा है। तो फिर सवाल उठता है कि विरोध क्यों हो रहा है? इन कृषि विधेयकों के विरोध का पहला और मूलभूत कारण 'राजनीति'।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>''लाख टके का सवाल, किसानों के फायदे वाला विधेयक है तो फिर विरोध क्यों''</strong></span></h3>
दूसरा बड़ा कारण कृषि मंत्रालय के साथ उन सभी मंत्रालयों और विभागों की नाअहली मायने अयोग्यता और नाकारापन है। जिनके ऊपर जिम्मेदारी थी कि वो किसान और किसान प्रतिनिधियों को समझा सकें कि बिल उनके लाभ के लिए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और उनके सलाहकारों ने जिस मंशा से इन विधेयकों को तैयार करवाया वो लोग भी उसी मंशा और मेहनत से किसानों ही नहीं अपने साथियों को न समझा सके। इसीलिए कांग्रेस और योगेंद्र यादव जैसे लोग कह रहे हैं कि किसानों की जमीनें छीनी जा रहीं हैं। उनका हक मारा जा रहा है। दो-तीन एकड़ का किसान अपनी फसल मंडी में नहीं बेचपाता वो दूसरी जगह कैसे ले जा पाएगा। छोटा किसान कैसे इंटरनेट चलाएगा कैसे जानेगा कि उसकी फसल का सही दाम कितना है और किस शहर या गांव में मिल रहा है।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>"मोबाइल फोन और इंटरनेट को कार्पोरेट्स से ज्यादा बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं किसान''</strong></span></h3>
फसल को लाने-लेजाने की व्यवस्था क्या होगी। फसल लाने लेजाने में जो खर्च होगा उसकी भरपायी कैसे होगी। ये और इन जैसे तमाम खामख्याली के सवाल पैदा किए जा रहे हैं। वास्तविकता है कि आज के दिनों में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल अपने निजी हितों के लिए किसान-मजदर उतना ही कर रहे हैं जितना बड़े-कार्पोरेट घराने करते होंगे। अंतर सिर्फ आयाम का है। तो यह कहना कि किसान फसल के दाम कैसे जानेगा, इंटरनेट पर कैसे देखेगा, दूसरे शहर या प्रांत कैसे ले जाएगा..ये सब भ्रमित करने वाले सवाल हैं। इन सारे सवालों से पैदा हुई भ्रम की स्थिति को भी खत्म किया जा सकता था लेकिन मौजूदा परिस्थितियों से ऐसा आभास होता है कि सरकार-पार्टी के कुछ लोग, अफसर नेताओं ने भ्रम फैलाने में मदद की है।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>'' विधेयकों के बारे में भ्रम विपक्षी दलों की देन कम, सरकार में बैठे कुछ लोगों की ज्यादा''</strong></span></h3>
आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों का एक बड़ा वर्ग इस खामख्याली सवालों के जंजाल में फंसता नजर भी आ रहा है। केवल किसान ही नहीं अकाली दल जैसा एनडीए का सबसे पुराना घटक दल भी छिटकता नजर आ रहा है। हालांकि उनके विरोध का कारण पंजाब की राजनीति ज्यादा है।

इस पूरे प्रकरण में अगर सबसे ज्याद सही राय किसी की है तो वो जाने-माने एग्रो-इकोनॉमिस्ट देवेंद्र शर्मा की राय लगती है। वो कहते हैं कि यदि सरकार इन विधेयकों में सिर्फ इतना संशोधन भर कर दे कि कोई भी व्यापारी किसान की फसल को सरकार के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर नहीं खरीद सकेगा। मतलब यह कि किसान अपने घर-बाजार में फसल बेचे या कहीं दूसरी जगह लेजाकर बेचे उसे उस फसल का कम से कम न्यूनतम मूल्य जरूर मिलेगा।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>'' एग्रो इकोनॉमिस्ट देवेंद्र शर्मा की राय एमएसपी की बाध्यता- काबिल-ए-गौर है''</strong></span></h3>
देवेंद्र शर्मा के मुताबिक इस सलाह से छोटे-किसानों की सभी समस्याएं हल हो जाएंगी। यहां सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री और उनके सलाहकारों की नजर में इतनी छोटी सी बात आयी ही नहीं या ध्यान ही नहीं गया इस ओर। बहरहाल, जो भी हो, इस बिंदु पर चर्चा हो सकती है। देवेंद्र शर्मा की राय समस्या के समाधान की ओर इशारा करती है। उनके अलावा ज्यादातर जो भी लोग बोल रहे हैं सरकार को किसानों की दुश्मन की तरह पेश कर रहे हैं। सरकार में बैठे लोग इतना तो जरूर जानते ही हैं कि भारत में अब भी लगभग 84-85 प्रतिशत वोट गांव-किसान का है। 15-20 फीसदी बड़े किसानों को छोड़ दें 85 फीसदी छोटे किसान वोटर्स सरकार को बनाने और बिगाड़ने का खेल चुटकियों में कर सकते हैं।
<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #ff6600;"><strong>''85 % ग्रामीण वोटर्स सरकार को चुटकी में बना सकते हैं और चुटकी में गिरा सकते हैं''</strong></span></h3>
तो फिर सरकार जानबूझकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी? दरअसल, सरकार के खिलाफ कांग्रेस और सरकार विरोधी तत्वों को कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था। जो मुद्दे राजनीतिक दलों ने बनाए उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला, लेकिन खेत-खलिहान किसान का सबसे संवेदनशील पक्ष होता है और उसके बारे में भ्रम फैलाना आसान है। संभवतः प्रधानमंत्री मोदी ने समस्या की नब्ज को समझ लिया है और खुद फोरफ्रंट पर आ गये हैं और समस्या के हल के लिए कमान अपने हाथ में ले ली है।

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सतीश के. सिंह

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