भारत में कोरोना संकट के आने के बाद से सभी उद्योगों और सेवा क्षेत्र का कारोबार औंधे मुंह गिर गया है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 24% (23.9) गिरा है और अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। परंतु सुखद आश्चर्य है कि इन सबके बीच कृषि क्षेत्र में बुवाई का रकबा 10% बढ़ा है और केवल यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसने कोरोना संकट के दौरान प्रगति की है।
गत वर्ष की अपेक्षा धान की रोपाई इस बार करीब 10 प्रतिशत, दालों की लगभग पांच प्रतिशत, मोटे अनाज की लगभग तीन प्रतिशत, तिलहनों की लगभग 13 प्रतिशत, कपास की लगभग तीन प्रतिशत बुवाई ज्यादा हुई है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार देशभर में खरीफ फसलों की बुवाई रिकॉर्ड 1,082.22 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। इससे पहले खरीफ़ सीज़न में रिकॉर्ड बुवाई वर्ष 2016 के दौरान 1075.71 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
उर्वरकों व कृषि मशीनरी की बढ़ी मांग और मानसून की फसलों की अधिक बुवाई इस बात के प्रमाण हैं कि वर्तमान संकट काल में केवल कृषि क्षेत्र में ही आर्थिक मंदी को दूर करने की क्षमता है। ये दोनों ग्रामीण गतिविधियों के प्रमुख संकेतक हैं, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में “उम्मीद की किरण” दिखायी दे रही है।
कोविड महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन के कठिन समय में भी मार्च-जून 2020 की अवधि में देश से 25552.7 करोड़ रुपये की कृषि वस्तुओं का निर्यात हुआ जो गत वर्ष यानि 2019 की इसी अवधि में हुए 20734.8 करोड़ रुपये के निर्यात की तुलना में  23.24 प्रतिशत अधिक है।
कृषि उत्पादन के मामले में अग्रणी होने के बावजूद कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में भारत बड़े कृषि उत्पाद निर्यातक देशों की सूची में अग्रणी स्थान नहीं पा सका है। उदाहरण के रूप में भारत दुनिया में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है, लेकिन निर्यात के मामले में यह 34वें स्थान पर है। इसी तरह सब्जियों के उत्पादन में विश्व में तीसरे स्थान पर होने के बावजूद निर्यात के मामले में यह 14 वें स्थान पर है। जहां तक फलों का मामला है, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन इस क्षेत्र में भी यह निर्यात के मामले में 23वें स्थान पर है। कृषि उत्पादों का बड़ा निर्यातक देश बनने के लिए उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के सक्रिय सकारात्मक वित्तीय, ढाँचागत एवं तकनीकी स्पष्ट हस्तक्षेपों की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से मौजूदा सरकार सहित सभी सरकारें आधे-अधूरे तात्कालिक उपाय करती हैं। एक समग्र, समेकित, दीर्घकालीन नीति का सदा अभाव रहा है।
उदाहरणार्थ वर्तमान में खाड़ी देशों में आयात की जाने वाली कृषि वस्‍तुओं में भारत की भागीदारी महज 10-12 प्रतिशत है। इन सहित कई अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में कृषि उत्पादों के विस्तारित बाजार की महती संभावनाएं हैं। जिनमें भारत के ताज़े फल, सब्ज़ी तथा औषधीय एवं सुगंधिदायक पौध उत्पादों का निर्यात किया जा सकता है। फलों और सब्जियों के विश्व स्तर पर होने वाले 208 अरब डॉलर के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी नहीं के बराबर है। हमारे इन उत्पादों के विविधता, स्वाद और गुणवत्ता पूरे विश्व में अनुपम है।
पूरे देश में 12 करोड़ किसान परिवार खेती पर निर्भर हैं और देश की जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी केवल 15-16 प्रतिशत के करीब है। देश की 60% आबादी खेती से आजीविका कमाती है। देश में अकुशल श्रमिकों के 45% को खेती रोज़गार देती है।
कोरोना के संकट के दौर में तीन चीजें प्रमुख रूप से उभर कर सामने आयी हैं। कृषि से इतर अन्य गतिविधियां जैसे-व्यापार, उद्योग, पर्यटन, परिवहन और सेवा क्षेत्र पूरी तरह ठप पड़ गये, लेकिन उसी दौर में रबी की फसलों की कटाई किसानों ने की और उत्पादन में वृद्धि देखी गयी। कोरोना काल में जहाँ सभी वस्तुओं का निर्यात प्रभावित हुआ वहीं कृषि का निर्यात करीब 24% बढ़ा है। देश के सकल निर्यात क्षेत्र में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14% है।
इससे साफ है कि अगर ध्यान दिया जाय तो कृषि क्षेत्र निर्यात में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि कृषि का महत्व केवल संकटकाल में ही लोगों को समझ में आता है। उनको लगता है कि सामान्य समय में कृषि पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं है। जबकि अगर साधारण समय में कृषि पर ध्यान दिया जाय तो देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत आधार पर खड़ी हो सकती है।
हर चीज के बगैर काम चल सकता है लेकिन अन्न और खेती के बगैर काम नहीं चल सकता है। देश अनाज को हथियार के रूप में भी उपयोग करते रहे हैं। अगर देश में अनाज की कमी हो जाय तो शत्रु देश को हथियार उठाने की जरूरत नहीं, बर्बादी स्वयं तय है। इसलिए अगर कृषि व्यवस्था चरमराती और देश में अन्न की कमी हुई होती तो इन 5 महीनों में क्या दुर्दशा होती सबको अंदाज़ लग गया होगा।
इसके अलावा कृषि का सीधा संबंध देश की सुरक्षा से भी है। देश के जवानों और निचले क्रम के अधिकारियों का करीब 90% हिस्सा ग्रामीण इलाकों से आता है। अगर देश के ग्रामीण हिस्सों में कृषि व्यवस्था कमजोर हुई तो सैनिकों और श्रमिकों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ेगा। इससे देश की उत्पादन व्यवस्था और सेना की रीढ़ भी चरमरा जाएगी।
कृषि का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की मांग का 45 वर्ष प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण इलाकों से आता है। अगर ग्रामीण इलाकों में क्रय शक्ति मजबूत नहीं होगी तो इस मांग में भी गिरावट आएगी। मांग में गिरावट आने से उद्योग व व्यापार का नुकसान होगा और वृद्धि होगी तो लाभ होगा।
इसके अलावा देश की बैंकिंग व्यवस्था को ग्रामीण इलाके बहुत ज्यादा मजबूत बनाते हैं। ग्रामीण इलाकों का क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो (सी.डी. रेशियो) 30:70 है। इसका साफ मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कम कमाई के बावजूद बचत करते हैं। वह पैसा बैंकों में जमा करते हैं, जिसका केवल 30% भाग गाँवों में ऋण के तौर पर दिया जाता है। शेष 70%  देश के औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्रों में कर्ज के रूप में संसाधन मुहैया कराता है।
इसलिए यह साफ है कि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के महत्व का मूल्यांकन जान-बूझकर कम दिखाया जा रहा है। इस कमी को दूर करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि कृषि उत्पादों के मूल्य अन्य कीमतों की अपेक्षा सदा पिछड़ते रहे हैं। इस बात को एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। सन् 1967 में गेहूं का पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य 76 रुपये प्रति क्विन्टल तय किया गया था। अगर इस मूल्य में आज के समय तक हुई मुद्रास्फीति की दर के हिसाब से वृद्धि की जाए तो यह कीमत आज की कीमत से लगभग ढाई-तीन गुणा ऊपर चली जाएगी। महंगाई को कम रखने के लिए जान-बूझकर कृषि उत्पादों की कीमतें कम तय की जाती हैं। इसके अलावा मुद्रास्फीति दर तय करने में खाद्य पदार्थों के बास्केट का वेटेज बहुत ज्यादा रखा गया है। इसमें भी तर्क-संगत सुधार करने की जरूरत है। गरीब जन को सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराना आवश्यक है, परंतु उसका भार गरीब किसान के कन्धों पर डालने का कोई औचित्य नहीं है। उसे सरकार और समाज के समृद्ध वर्ग वहन करें, जैसा कि सब विकसित देशों में होता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि कोरोना के समय में जिस तरह से उद्योग और सेवा क्षेत्र के लोग हतोत्साहित हुए और सब कुछ छोड़-छाड़ कर घर बैठ गए, वैसा किसानों ने नहीं किया। किसान ने खेतों में खड़ी अपनी फसल को काटने के लिए हर तरह का खतरा उठाया और देश के उत्पादन में वृद्धि करके दिखायी। किसानों ने दिखाया कि संकट-काल में भी अपनी कर्तव्य-निष्ठा को कायम रखा जा सकता है। यहां तक कि प्रशासन ने तो शुरू में किसानों को फसल की कटाई करने से रोकने की कोशिश की, लेकिन किसानों के रुख और उनके गुस्से को भांपकर फिर फसल कटाई के लिए नये नियम बनाये और उनको कटाई की अनुमति दी।
भारत में सबसे बड़ी समस्या यह है कि खेती की 86% जोतें बहुत छोटी है और वे आर्थिक रूप से ज्यादा लाभदायक नहीं हैं। इसके बावजूद किसानों ने देश को इतना सक्षम बनाया कि सरकार 5 महीने से लगातार सभी गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त राशन बांट रही है। इसके बाद भी उसके खाद्य भंडार लबालब भरे हैं।
सरकार को किसानों को अब राहत देने के लिए कुछ ठोस उपाय करने चाहिए। महंगाई का भार उठाने के लिए अब उद्योगपतियों और सरकार के साथ ही समृद्ध वर्ग को सामने आना होगा। गरीब वर्ग को सरकार सस्ता राशन जरूर दे, लेकिन कृषि उत्पादों की कीमतों को तर्कसंगत ढंग से तय करे। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो।
ऐसा नहीं है कि इस देश में कृषि क्षेत्र में अब संभावना पूरी तरह समाप्त हो गयी हैं और खेती अपने चरम शिखर पर पहुंच चुकी है। इसके विपरीत वास्तविकता तो यह है कि देश का 55 से 60 फ़ीसद कृषि क्षेत्र अभी भी असिंचित है और पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। अगर देश के इन असिंचित क्षेत्रों में ही सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था कर दी जाए तो देश का कृषि उत्पादन दोगुना हो जाएगा। हमारे वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा किये गये अध्ययन दर्शाते हैं कि केवल सिंचाई की व्यवस्था करने से ही कृषि उत्पादन में 235% की वृद्धि हो जाती है।
इसके अलावा सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने से भरपूर उत्पादन नहीं हो पाता। इसलिये आय की कमी और कुपोषण रहता है। देश के ग्रामीण गरीबों की 80 से 82% जनसंख्या असिंचिचित  क्षेत्रों में पायी जाती है। सिंचाई कृषि क्षेत्र में कितनी क्रांति कर सकती है और किस प्रकार गरीबी व कुपोषण की समस्या का प्रभावी निदान कर सकती है, इसका जीवंत उदाहरण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि सिंचित क्षेत्र हैं।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो पूरे विश्व के कुल कृषि क्षेत्रफल का 12% भारत के पास है। अमेरिका में भी कृषि क्षेत्रफल पूरी दुनिया का 12% है। अगर भौगोलिक क्षेत्रफल की तुलना करें तो भारत का कुल क्षेत्रफल पूरी दुनिया का केवल 2.4% है, जबकि अमेरिका का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का करीब 3 गुना है। चीन में पूरी दुनिया के कृषि क्षेत्रफल का 9% है और अब वहां कृषि के क्षेत्रफल के विस्तार की कोई गुंजाइश भी नहीं है। जबकि भारत में सिंचाई का प्रबंध करने से बंजर और बेकार पड़ी जमीन को सुधार करके अगर कृषि योग्य बनाया जाए तो आज के मौजूदा कृषि क्षेत्रफल में भी कम से कम 20% की वृद्धि आसानी से की जा सकती है। इसके अलावा भारत का कृषि के लिए अनुकूल मौसम और समृद्ध जैव विविधता इसे कृषि क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बना सकते हैं।
<strong>(लेखक भारत सरकार के कृषि मंत्री और किसान आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं।)</strong>.
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