<p id="content">जिन किसानों को खेत से पराली खाली न होने पर गेंहू बोआई में होने वाली देर की आशंका है, उनके लिए खुशखबरी है। बिना पराली जलाए और खेत की जोताई किए बिना ही किसान गेंहू की भरपूर फसल ले सकते हैं। ऐसा करने से किसान को न सिर्फ अधिक उपज मिलेगी बल्कि खेती में आने वाले खर्च में भी भारी कमी होगी। यह संभव होगा जीरो फर्टी सीड ड्रिल मशीन से।
इस मशीन में फाल की जगह दांते लगे होते हैं। बोआई के समय ये दांते मानक गहराई तक मिट्टी को चीरते हैं। मशीन के अलग-अलग चोंगे मे रखा खाद-बीज इसमें गिरता है। मशीन के प्रयोग के पूर्व कुछ सावधानियां अपेक्षित हैं। खेत से खर-पतवार व पुआल की सफाई कर लें। ऐसा न होने पर ये मशीन के दांतों में फंसते हैं। अगर खेत में नमी कम है, तो बोआई के पूर्व हल्का पटा लगा दें। बेहतर है कि कटाई के चंद दिन पूर्व धान के खेत की हल्की सिंचाई कर लें। बोआई के समय सिर्फ दानेदार उर्वरकों का ही प्रयोग करें।
सीआइएमएमवाईटी के कृषि वैज्ञानिक अजय कुमार के अनुसार, एक लीटर डीजल के उपभोग पर हवा में 2.6 किग्रा कार्बन डाइआक्साइड निकलता है। अनुमान के अनुसार साल भर में एक हेक्टेअर खेत की जोताई और सिंचाई में करीब 150 लीटर की खपत होती है। इस तरह हवा में करीब 450 किग्रा कार्बन डाइआक्साईड का उत्सर्जन होता है। न्यूनतम जोताई और सिंचाई की दक्ष विधाओं (स्प्रिंकलर एवं ड्रिप) का प्रयोग कर सिंचाई में लगने वाले पानी की मात्रा को काफी हद तक कम कर सकते हैं। इस तरह पर्यावरण संरक्षण, लोगों की और भूमि की सेहत के लिहाज से खासी उपयोगी है।
उन्होंने बताया कि प्रति हेक्टेयर बुआई की लागत परंपरागत विधा की तुलना में करीब दो-ढाई हजार रुपये कम होती है। कम बीज लगने के बावजूद उपज में करीब 10-30 फीसद वृद्धि होती है। खेत तैयार करने में लगने वाले श्रम-संसाधन और ऊर्जा की करीब 80 फीसद बचत होगी। कम जुते खेत में पानी कम लगने से सिंचाई में करीब 15 फीसद बचत संभव है। लाइन से बोआई के नाते फसल संरक्षा के उपाय आसान होंगे। गेहुंसा के प्रकोप में भी कमी होगी। फसल अवशेषों के कारण मृदा में कार्बन तत्व की वृद्धि होती है, जिससे मृदा संरचना में सुधार होगा।
कृषि विशेषज्ञ गिरीश पांडेय बताते हैं कि जीरो फर्टी सीड ड्रिल के प्रयोग से तेल, पानी, बीज और मजदूरी की बचत भी होगी। महंगी खाद का प्रयोग भी असरदार होगा। भरपूर नमी की दशा में बोआई के नाते बेहतर जमता (अंकुरण) और होनहार पौधे जमेंगे। इसमें बोआई एक विधा से आपको सारे लाभ मिलेंगे। इससे खेत में मौजूद नमी के सहारे बिना जोताई के भी गेहूं की बोआई संभव है।
धान और गेंहूं के फसलचक्र वाले क्षेत्र के लिए ये विधा खास उपयोगी हैं। चूंकि इसमें धान के खेत में नमी के सहारे ही बोआई की जाती है। इससे खेत की तैयारी में लगने वाला करीब दो हफ्ते का समय बचता है। समय से बुआई का लाभ बढ़ी उपज के रूप में मिलता है।
उन्होंने बताया कि पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं। यही नहीं, बाद में भूसे की भी किल्लत बढ़ जाती है। इसके अलावा सबसे बड़ी दिक्कत पराली जलने से होने वाला प्रदूषण भी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही किसानों का हित सर्वोपरि रहा है। प्रदेश में कई जगह बायोफ्यूल प्लांट लगवाकर वह पराली को किसानों के लिए खजाना बनाने की पहल कर चुके हैं। सरकार पराली को निस्तारित करने वाले की कृषि यंत्रों पर अनुदान भी दे रही है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि भूमि और पर्यावरण के खतरों के मद्देनजर पराली न जलाएं। साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह किसानों को जागरूक करें। दुर्व्यवहार कतई सहन नहीं होगा।</p>.
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