आज गुरु नानक जयंती है। गुरु पर्व को प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। गुरु नानक देव जी सिख समुदाय के संस्थापक और पहले गुरु हैं। गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के तट पर बसे एक गांव तलवंडी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। गुरुनानक जयंती पर लोग गुरुद्वारे जाते है और मत्था टेकते हैं। देशभर में गुरुद्वारे में इस दिन हजारों लोगों की भीड़ देखने को मिलती है। इस दिन लंगर भी खाने खूब आते हैं।
गुरुद्वारे में लंगर की एक खास महत्व है। लंगर खिलाने की प्रथा सालों से चलती आ रही हैं। खास बात है कि गुरुद्वारे सिर्फ खाना ही नहीं बल्कि जरूरतमंद लोगों के लिए रहने की व्यवस्था भी दी जाती है। देश और विदेश में कई ऐसे गुरुद्वारे हैं, जहां लंगर खिलाने से लेकर लोगों की मदद करने की प्रथा आज भी चलती आ रही है। चलिए आपको बताते है कि लंगर शुरू क्यों किया गया और इसके पीछे की कहानी क्या है?
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आपको बता दें कि लंगर शब्द एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब है 'गरीबों और जरूरतमंदों के लिए एक जगह'। सिख परंपराओं के अनुसार, यह एक सामुदायिक रसोई है। जहां जाति, वर्ग, धर्म को दरकिनार कर बिना किसी भेदभाव के लोगों को अतिथि के रूप में स्वागत किया जाता है। लंगर की अवधारणा लोगों को समानता और प्रेम की भावना सिखाती है। गुरुद्वारे में गुरु यानी गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन करने के बाद भक्त या मेहमान एक साथ फर्श पर बैठते हैं और फिर उन्हें लंगर परोसा जाता है। भोजन भले ही समान्य तरीके से खिलाया जाता हो, लेकिन दावत की तरह परोसा जाता है। इसका मकसद है कि गुरुद्वारे आने वाले लोग खाली पेट यहां से ना जा पाए।