Kal Bhairavashtami काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है, वे अजन्मे हैं। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही कालाष्टमी कहते हैं। यह विशेष दिन आज ही है। कालाष्टमी को भगवान भैरव की पूजा करते हैं, जो काल भैरव, बाबा भैरवनाथ, महाकाल आदि नामों से जाने जाते हैं। वे मां दुर्गा के सभी शक्तिपीठों और भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के रक्षक हैं। शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिगों के दर्शन तब तक अपूर्ण माने जाते हैं जब तक कि भैरव के दर्शन-पूजन और अर्चन न कर लिया जाए।
शनि देव के अधिपति देव काल भैरव हैं। काल भैरव की पूजा करने से शनि कीसाढ़ेसाती शनि की ढैय्या और अन्य शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। इनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
भैरव आराधना त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। कालाष्टमी के दिन काशी भले ही न जा पाएं तो अपने ही शहर के किसी भी काल भैरव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करें। पूजा से पहले‘ऊँ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि’ इस मंत्र को बोल कर बाबा काल भैरव से पूजा की अनुमति लें।
फिर बाब भैरवनाथ को फूल, अक्षत्, माला, पान, धूप, दीप आदि अर्पित करें। उनको इमरती, नारियल, दही वड़ा आदि का भोग लगाएं। उसके बाद बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करें। इस कवच के पाठ से शत्रुओं पर विजय, स्वयं की सुरक्षा, धन प्राप्ति, ग्रह दोष से मुक्ति आदि लाभ होता है। कवच पाठ के बाद काल भैरव की आरती करें।
काल भैरव के बहुत सारे स्वरूप हैं। सात्विक साधकों को बटुक भैरव की साधना आसान और त्वरितफलकारी है। काल भैरव, स्वर्णाकर्षण भैरव की पूजा का विधान अलग-अलग है।