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Khatu Shyam: वो योद्धा जो एक तीर से समाप्त कर सकता था पूरी महाभारत, लेकिन…

Khatu Shyam Katha: श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार बाबा खाटू श्याम की महीमा एकदम निराली है।मान्यता है कि जो भी खाटू श्याम के दर पर आता है, उसकी मुरादें कभी खाली नहीं जाती, इसीलिए बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है। राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम का भव्य मंदिर है जहां 12 महीने भक्तों का तातां लगा रहता है। यहां भक्तों की हर एक मुराद पूरी होती है। बताया जाता है खाटू बाबा की पूजा से गरीब भी धनवान बन जाता है। बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल (Khatu shyam Mahabharat) से है। ये इतने शक्तिशाली थे कि इनकी प्रतिमा से श्रीकृष्ण बेहद प्रसनन हुए थे लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि इन्हें अपना शीश काटना पड़ा। आइए जानते हैं बाबा खाटू श्याम की कथा।

महाभारत से है खाटू श्याम का संबंध

पौराणिक कथा के अनुसार दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया था लेकिन किसी तरह पांडव वहां से बचकर निकल गए और अपने प्राणों की रक्षा हेतु वन में रहने लगे। जंगल में हिडंब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। जब हिडिंबा ने भीम (Bheem) को देखा तो वो उस पर मोहित हो गई। वह भीम को पति के रूप में पाना चाहती थी। दोनों का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच (Ghatotkach) का जन्म लिया।

बर्बरीक के बाण से खत्म हो सकता था महाभारत युद्ध

घटोत्कच का पुत्र था बर्बरीक जो अपने पिता से भी बलशाली और मायावी था। बर्बरीक (Kahtu shyam Named Barbarik) देवी दुर्गा का परम भक्त था। देवी की कृपा से उसे तीन दिव्य बाण की प्राप्ति हुई जो अपने लक्ष्य को साधकर वापस लौट आते थे। महाभारत के युद्ध के समय भीम पौत्र बर्बरीक ने प्रण लिया कि इस युद्ध में जो हारेगा वह उनकी तरफ से लड़ेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर आ गया तो पांडवों की हार तय है।

बर्बरीक ने क्यों काटा अपना शीश

बर्बरीक को रोकने के लिए कृष्ण भेस बदकल उसके सामने उपस्थित हुए और उससे अपनी वीरता का नमूना दिखाने का आग्रह किया। बर्बरीक ने बाण चलाता तो एक पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। कृष्ण ने एक पत्ता पैर के नीचे छुपा लिया था यह सोचकर कि इसमें छेद नहीं होगा लेकिन तीर सीधे कृष्ण के पैर में जा लगा।

ऐसे बने बर्बरीक से भगवान खाटू श्याम

श्रीकृष्ण बर्बरीक की शक्ति से आश्चर्य चकित रह गए। ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने बर्बरीक से दान की आशा की। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक समझ गया की यह कोई साधारण इंसान नहीं पूछने पर कान्हा ने अपना वास्तविक परिचय दिया। इसके बाद बर्बरीक ने खुशी से अपना शीश दान कर दिया। कृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे। जो तुम्हारी भक्ति करेगा उसकी सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।

आईएन ब्यूरो

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