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Nav Durga: आत्मदान प्रदान करती है मां कात्यायनी, आज्ञाचक्र में होता है साधक का ध्यान

मां कात्यायनी

कात्यायनी नवदुर्गा के नौ रूपों में छठा स्वरूप हैं।'कात्यायनी' अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है। उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है।

 स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं, जिन्होंने देवी पार्वती ने वाहन के रूप में सिंह दिया जिस पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि स्वरूपा हैं। पाणिनि पर पतञ्जलि के महाभाष्य किया गया है। यह महाभाष्य ईसा मसीह के जन्म से दो सौ साल पहले लिखा गया है। मां कात्यायनी का

 वर्णन देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है। यह तो ईसा मसीह के जन्म से ५०० साल किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (१० वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।

परम्परागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि उत्सव के षष्ठी को उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

मां कात्यायनी का मंत्र है-

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

मां कात्यायनी पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥