संवत 2079 के श्रावण मास के श्रवण कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि और सोमवार का दिन है। शाम को त्रयोदशी तिथि लग जाएगी। आज श्रावण मास का पहला सोम प्रदोष व्रत है। श्रावण मास के सोम प्रदोष का बहुत महत्व बताया गया है। सोम प्रदोष को दिवासान यानी शाम के समय भगवान शंकर की पूजा विधान है। सोम प्रदोष के दिन राणणकृत शिव तांडव स्त्रोत का सस्वर उच्चारण करने से सभी शक्तियां शरीर रूपी पिण्ड में एकत्र होती हैं। नकारात्मकता नाश होता है और जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मकता का उदय होता है।
प्रायः त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर, यानी शाम के समय को प्रदोष काल कहते हैं। आज कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इस संयोग में भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। मनोवांछित फल पाने के लिए कैसे सोम प्रदोष व्रत और पूजा, आईए जानते हैः
सोम प्रदोष का मुहूर्त
प्रदोष काल का समय- सूर्यास्त से लगभग 45मिनट पहले शुरू होता है और 45मिनट बाद तक मान्य होता है।सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ- 25जुलाई शाम 04बजकर 15मिनट से
सावन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त- 26जुलाई शाम 06बजकर 04मिनट तक
पूजा का शुभ मुहूर्त- 25जुलाई की शाम 07बजकर 17मिनट से लेकर रात 09बजकर 21मिनट तकरहेगा।
प्रदोष व्रत
सोम प्रदोष व्रत के दिन स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शिव का पंचामृत यानी दूध,घी,गंगाजल,शहद और दही से अभिषेक करना चाहिए। उसके बाद संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी पुनः इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा आदि करता है और प्रदोष का व्रत रखता है, वह सभी कष्टों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि त्रयोदशी की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है, उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है।
सोम प्रदोष में सावधानी
झूठ न बोलें, किसी पर क्रोध न करें। किसी तरह की न हिंसा करें और न हिंसा मे सहयोगी बनें। तन-मन और मस्तिष्क से शुद्ध रहें। आचार-विचार सात्विक रखें। मतलब यह कि दिन के समय पूरी तरह उपवास रखें। शाम को रुद्राभिषेक और तांडव स्त्रोत से भगवान शंकर की पूजा के बाद ही अन्न ्ग्रहण करें। लहसुन-प्याज और हींग का सेवन न करें।