हर साल माधव मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जानकी जयंती या सीता नवमी मनाई जाती है। यह उत्सव राम नवमी से लगभग एक महीने बाद आता है। वैशाख शुक्ल नवमी को मिथिलानरेश जनक जी के घर सीता जी का प्रकाट्य हुआ था, इसलिए इसे जानकी जयंती या सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है।
इस दुर्लभ संयोग पर देवी मां सीता के साथ भगवान राम का पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। जिस प्रकार राम नवमी को बहुत शुभ फलदायी पर्व के रूप में मनाया जाता है उसी प्रकार सीता नवमी भी बहुत शुभ फलदायी माना गया है। भगवान श्री राम को विष्णु तो माता सीता को लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है। इस सौभाग्यशाली दिन माता सीता की पूजा अर्चना प्रभु श्री राम के साथ करते हैं तो भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। आइए जानते हैं सीता नवमी की तिथि, पूजा मुहूर्त और पूजन विधि ।
सीता नवमी या जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त प्रातः 10: 57 मिनट से दोपहर 01:39 मिनट तक है। इस सीता नवमी को सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता सीता की पूजा करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मिथिला नरेश जनक जी अपने खेतों में हल चला रहे थे, तो उस समय उनको वहां से माता सीता पुत्री स्वरूप में प्राप्त हुई थीं।
सीता नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें। घर में रखे गंगा जल से भगवान श्री राम और सीता माता की मूर्ति को स्नान कराएं। इसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थल पर माता सीता और भगवान राम की विधिपूर्वक से पूजा करें। इसके बाद उन्हें भोग लगाएं। सीता माता के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करें। अब भगवान राम और माता सीता की आरती करें।
ऐसा प्रायः देखा गया है कि जो स्त्रियां सीता नवमी का व्रत-उपवास करती हैं उनका अखण्ड सौभाग्य रहता है। यहां तक देखा गया है, जिन स्त्रियों की जन्म पत्रिका में वैधव्य योग होता है वो भी सीता नवमी के व्रत से खत्म हो जाता है और जीवन सुखमय हो जाता है।