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Varuthini Ekadashi पीले फूल और तुलसी पत्र से ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा, दूर होंगे जीवन के सारे कष्ट

Varuthini Ekadashi

हर वर्ष के माधव यानी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि वरूथनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) होती है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रति व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है। पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम, वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ और भगवान विष्णु की आरती करना अत्यत्तम माना जाता है। इस व्रत से शारीरिक कष्ट एवं मानसिक दुख दूर होता है भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, ठीक उसी तरह जैसे वरूथनी एकादशी का व्रत करने से राजा मांधाता को पुण्य फल प्राप्त हुआ था। चलिए जानते हैं वरूथनी एकादशी तिथिमान, व्रत का मन और अन्य विधि-विधान। वरूथनी एकादशी

मध्यरात्रि 26 अप्रैल को01 बजे प्रारंभ हो चुकी है और 27 तारीख को रात्रि 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। आज त्रिपुष्कर योग निकल चुका है। अब 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 45 तक वरूथनी एकादशी का व्रत के विधिविधान के लिए उत्तम है। वरुथिनी एकादशी पूजा से पहले ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्रका 108 बार जप करें।

वरूथनी एकादशी के दिन स्नानादि के बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प करें हैं। उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना करें और उनकी पूजा करें। पूजा में पंचामृत, पीले फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत्, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, कपूर, चंदन, रोली आदि का उपयोग करें। इन वस्तुओं को अर्पित करते समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें। आज भगवान विष्णु को तुलसी की माला भी अर्पित करें।

विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। इसके बाद घी के दीपक या कपूर से भगवान विष्णु की आरती ओम जय जगदीश हरे…करें। व्रत कथा का पाठ करने से व्रत का पुण्य लाभ पता चलता है। व्रत कथा में राजा मांधाता की कहानी है, जिसमें वे किस प्रकार से कष्ट से मुक्ति प्राप्त करते हैं और विष्णु कृपा से स्वर्ग जाते हैं।

पूजा के बाद शाम को संध्या आरती और रात्रि के समय में भगवत जागरण करें। फिर अगली सुबह यानी बुधवार को स्नान के बाद पूजापाठ के बाद और दान इत्यादि करें। सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करें।