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ज़हरीले साहित्य, ‘सभ्यताओं के टकराव’ के विचार के ख़िलाफ़ लड़ाई अब अनिवार्य: मुस्लिम वर्ल्ड लीग प्रमुख

डॉ. अल-इस्सा ने कहा कि भारतीय नेतृत्व के साथ मुलाक़ात के उनके अनुभवों ने उन्हें इस देश के मार्गदर्शक सिद्धांतों के प्रति समर्पित कर दिया है।

मोहम्मद अनस

शक्तिशाली मुस्लिम वर्ल्ड लीग (एमडब्ल्यूएल) के महासचिव डॉ. मुहम्मद अब्दुलकरीम अल-इस्सा ने कहा है कि दुनिया में देखे गये सभ्यताओं का संघर्ष उस साहित्य का परिणाम है जिसने अन्य सभ्यताओं के बारे में नकारात्मक विचारों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा है कि इसका समाधान केवल राजनीतिक नेतृत्व की पारंपरिक बैठकों के बजाय, धार्मिक नेताओं के बीच ज़ोरदार बातचीत से ऐसे विचारों का मुक़ाबला करने में ही निहित है।

उन्होंने कहा,“हमारे समय की विडंबना यही रही है कि धार्मिक हस्तियों को लगता है कि उनका कर्तव्य अपने कमरे की सीमा के भीतर उपदेश देकर समाप्त हो जाता है। अगर हमें दुनिया में वह बदलाव लाना है, जो हम देखना चाहते हैं, तो हमें इस सुस्ती को दूर करना होगा। धार्मिक नेताओं को अन्य धर्मों के दृष्टिकोण को देखना और सीखना होगा।”

डॉ. इस्सा बुधवार को ग्लोबल फ़ाउंडेशन फ़ॉर सिविलाइजेशनल हार्मनी (इंडिया) के सहयोग से आयोजित एक कार्यक्रम ‘धर्मों के बीच सद्भाव के लिए संवाद’ को संबोधित कर रहे थे।

“कुछ चरमपंथी साहित्य के ज़हरीलेपन पर अपने विचारों को विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि कुछ किताबें अन्य धर्मों और सभ्यताओं के लोगों के प्रति घृणा और दुर्भावना पैदा करने के विशिष्ट उद्देश्य से लिखी गयी थीं। दुर्भाग्य से युवा पीढ़ी ने अनफ़िल्टर्ड परवरिश के कारण इन नकारात्मक विचारों को अपना लिया है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ियों में बचपन से ही सही और समावेशी विचार विकसित हों।”

उन्होंने यह भी कहा कि “नकारात्मक विचारों वाली बुरी किताबें” दुर्भाग्य से लोकप्रिय हो गयीं, जबकि सह-अस्तित्व, आपसी समझ और सद्भाव जैसे विचारों के बारे में बात करने वाली किताबें लोगों से छुपी रहीं। उन्होंने कहा,“हमारे सामने एक प्रमुख चुनौती इस परिदृश्य को बदलना है। हमें अपनी वर्तमान पीढ़ी में पहले के युग के नकारात्मक विचारों के प्रवाह को रोकना होगा।”

उन्होंने स्कूलों, कॉलेजों, मदरसों और विश्वविद्यालयों में प्राप्त होने वाली “ज़हरीली सामग्री” वाली पुस्तकों द्वारा संप्रेषित विचारों का भी संकेत दिया।

उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों पर भी कटाक्ष करते हुए कहा, “ग़लतफ़हमियों, नफ़रत के सिद्धांतों और ग़लत धारणाओं ने कट्टरपंथ से आतंकवाद तक की राह को तेज़ कर दिया है। सत्ता पर कब्ज़ा जमाने के लिए कई नेताओं ने अपना नियंत्रण और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने की ख़ातिर नफ़रत भरी अवधारणाओं का इस्तेमाल किया है।”

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि “कुछ संगठन” “ग़लत संदेश” फैलाने में सक्रिय रहे हैं।

उन्होंने कहा कि दुनिया (उन्होंने शायद इस्लामी दुनिया का ज़िक़्र किया था) ने ग़लती की और शुरुआत में ही कट्टरपंथी विचारों के प्रसार को रोकने में विफल रही। उन्होंने कहा, “अब, हमें ऐसे ख़तरनाक़ विचारों के प्रसार को रोकने के लिए नैदानिक कार्रवाई करनी होगी और अंतर्धार्मिक संवाद स्थापित करने के लिए एक मिशन शुरू करना सबसे अच्छी दवा है।”

उन्होंने यह भी ज़ोर देकर स्पष्ट किया कि दुनिया के आस्थावान नेताओं के बीच कोई भी बातचीत केवल सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “तभी ऐसे संवाद फलीभूत होंगे, अन्यथा वे दिखावटी बनकर रह जायेंगे।”

भारत में अपने दो दिनों के दौरे के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह भारतीय नेतृत्व के धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को देखकर बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कहा,“हमने अक्सर लोगों को यह कहते सुना है कि हम विजेता रहे हैं और हमने दुनिया के इस हिस्से और दुनिया के उस हिस्से पर शासन किया है। मैंने भारतीय नेतृत्व को इस तरह की शेखी बघारते हुए नहीं सुना है…बल्कि, मैंने उन्हें अन्य सभ्यताओं के बारे में सम्मान के साथ बात करते हुए सुना है।”

उन्होंने उन राष्ट्रों को चेतावनी दी, जो अन्य राष्ट्रों पर सभ्यतागत श्रेष्ठता प्राप्त करने का दावा करते हैं या इच्छा रखते हैं कि यह कभी भी बल प्रयोग कर कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “उपनिवेशवादियों का मामला हमारे लिए सबसे अच्छा सबक़ है। वे उपनिवेशित संस्कृतियों और सभ्यताओं को अपने अधीन करने में विफल रहे। यदि कोई श्रेष्ठता हासिल की जा सकती है, तो यह केवल प्यार और सहयोग के माध्यम से ही हो सकती है।”

डॉ. अल-इस्सा ने भारतीय नेतृत्व से आगे आने और अंतर्धार्मिक पुल-निर्माण की प्रक्रिया को सफल बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारतीय नेतृत्व के साथ मुलाक़ात के अनुभवों ने उन्हें इस देश के मार्गदर्शक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध बनाया है। उन्होंने कहा, “मैं भारत के लोकतंत्र और उसके संविधान को तहे दिल से सलाम करता हूं। मुझे यक़ीन है कि सहिष्णुता और सद्भाव का भारतीय ज्ञान अपनी उपयोगिता साबित करेगा और हम भविष्य में इसके परिणाम देखेंगे।”

जैसे ही डॉ. अल-इस्सा ने अपना भाषण समाप्त किया, वीआईएफ के अध्यक्ष एस. गुरुमूर्ति ने उनके संबोधन की सराहना करते हुए इसे जीवन में अब तक सुना गया सबसे अच्छा भाषण बताया। गुरुमूर्ति ने कहा, “डॉ अल-इस्सा ने हमारे बच्चों को गुमराह करने के लिए तैयार किए गए ग़लत साहित्य के बारे में बात की और कहा कि दुनिया इस मोर्चे पर निवारक कार्रवाई करने में विफल रही है… उन्होंने यह भी सटीक रूप से कहा कि भारतीय विजय के बारे में बात नहीं करते हैं और यह देश सद्भाव का जन्मस्थान रहा है। मुझे यक़ीन है कि भारतीय और अरब सभ्यताओं का संगम और शांति के लिए उनकी संयुक्त तलाश की दुनिया में असामंजस्य से निपटने में महत्वपूर्ण होगी।”

 

डॉ. अल-इस्सा की यात्रा का प्रभाव

कुछ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते समय, जो भारत में इस्लाम के प्रचार के लिए विश्व मुस्लिम लीग द्वारा आवंटित धन के प्रमुख लाभार्थी रहे हैं, इस संवाददाता ने पाया कि इन सभी संगठनों को अब अनुदान की अंतिम मंज़ूरी पाने के लिए अपने आवेदनों की “ज़बरदस्त जांच” का सामना करना पड़ेगा। एक वरिष्ठ मौलवी ने नाम न छापने की सख़्त शर्त पर कहा, “कुछ वर्षों से अधिकांश मुस्लिम संगठन सऊदी नक़दी के कम प्रवाह का सामना कर रहे हैं। हमें अपनी सभी परियोजनाओं का विवरण प्रस्तुत करना होगा जैसे कि पूरे आधिकारिक मानचित्र, मस्जिद या मदरसे का निर्माण, पढ़ाए जाने वाला पाठ्यक्रम, इमामों के संप्रदाय और इसी तरह की चीज़ें। अब जैसा कि हमने डॉ. अल-इस्सा के क़रीबी लोगों से बातचीत की है, यह स्पष्ट लगता है कि अब अनुदान के आवेदन की कड़ी जांच-पड़ताल की जायेगी।”

अहले हदीस, जमीयत उलेमा ए हिंद, दारुल उलूम देवबंद, नदवातुल उलेमा और जमात ए इस्लामी जैसे मुस्लिम संगठनों और संस्थानों को एमडब्ल्यूएल फ़ंड के प्राप्तकर्ता कहा जाता है। हालांकि, इंडिया नैरेटिव इसकी पुष्टि नहीं करता है।

शियाओं और बरेलवी विचारधारा के अनुयायियों को सऊदी से कोई फ़ंडिंग नहीं मिलती है, सिवाय उन लोगों से, जो निजी तौर पर उन्हें कुछ पैसे भेजते हैं।

लेकिन इन सभी संप्रदायों के अनुयायी डॉ. अल-इस्सा को सुनने के लिए मौजूद थे।