किसानों के कंधे पर बंदूक रख कर आंदोलन कर रहे नेताओं ने अब सीधे टकराव का मन बना लिया है। आंदोलनकारियों के नेता और किसानों के बीच 4 जनवरी को हुई वार्ता में तय हुआ था कि 8 जनवरी को फिर से बात करेंगे। इस बीच दोनों ओर के लोग फिर से विचार-विमर्श करेंगे। लेकिन पांच तारीख की शाम को ही आंदोलनकारियों के नेताओं 7 तारीख को ट्रैक्टर मार्च के जरिए शक्ति प्रदर्शन करने का फैसला किया है। आंदोलनकारियों के नेता इस शक्ति प्रदर्शन से क्या साबित करना चाहते हैं। क्या सरकार से टकराव ही आंदोलनकारियों का मकसद है। आंदोलनकारियों के नेता अभी तक किसानों में भ्रम फैला रहे थे कि पूंजीपति किसानों की जमीनों पर कब्जा कर लेंगे। किसान की जमीन को चोरी कर लिया जाएगा। एमएसपी खत्म कर दी जाएगी। मण्डी समितियां बंद दी जाएंगी। जब सरकार ने इन सभी बिंदुओं पर किसानों के सभी भ्रम दूर कर दिए तो अब आंदोलनकारियों के पास कोई मुद्दा नहीं बचा। मुद्दा विहीन आंदोलन को समाप्त करने का दबाव बढ़ने पर आंदोलनकारियों ने अब धमकी और चेतावनी देना शुरू कर दिया है।
<h4>मुंह दिखाने के लिए सरकार झुकाने की साजिश?</h4>
आंदोलनकारियों के एक नेता हन्नान मुल्ला ने तो 4 जनवरी की वार्ता के बाद बाहर आते ही कहा कि अगर हमने आंदोलन खत्म कर दिया तो वापस जाकर अपने कार्यकर्ताओं किसानों को क्या मुंह दिखाएंगे। मतलब साफ है कि आंदोलनकारियों के नेताओं के पास कोई मुद्दा नहीं है। उन्होंने सरकार को झुकाने के मुद्दे को ही अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। 4 जनवरी की वार्ता के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर साफ कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है। उनका अभिप्रायः था कि आंदोलनकारियों के नेताओं को हठ छोड़कर बीच का रास्ता अपनाना पड़ेगा। सरकार बीच का रास्ता अपनाने के लिए तैयार है। सरकार बाकी तीनों मांगों को जस का तस मानने को तैयार है। चौथी मांग पर सरकार का तर्क बाजिव लगता है कि कानूनों से किसानों के क्या अहित हो रहा है। यह बताया जाए। अगर कोई अहित हो भी रहा है तो कानून में संशोधन की गुंजाइश है, वो संशोधन करके किसानों के अहित को दूर किया जा सकता है। जब कानून वापस न करने के विकल्प मौजूद हैं तो कानून वापसी की जिद पर आंदोलनकारियों के नेता क्यों अड़े हुए हैं।
<h4>कहां गया ढाई कदम चलने का वादा</h4>
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन की शुरूआत में कहा था कि सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देदे हम वापस चले जाएंगे। लेकिन फिर वो सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर से चल रही राजनीति में शामिल हो गए। 30 दिसंबर की वार्ता से पहले राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार 2 कदम आगे बढ़ेगी तो किसानों को भी ढाई कदम चलना होगा। वार्ता से बाहर आकर उन्होंने कहा कि सरकार आगे बढ़ी है और 4 जनवरी को हल निकलने की संभावना है। 4 जनवरी को वार्ता हॉल में जाने से पहले तक राकेश टिकैत के रुख से लग रहा था कि समाधान हो जाएगा।
वार्ता हाल से बाहर आने पर राकेश टिकैत के रंग-ढंग बदले हुए थे। राकेश टिकैत कह रहे थे कि कानून वापस न हुआ तो हम भी घर वापस नहीं जाएंगे। हालांकि हन्नान मुल्ला और राकेश टिकैत की भाषा में काफी फर्क था। लेकिन दोनों की आखिरी बात यही कानून वापसी की शर्त पर ही आंदोलन वापस होगा।
<h4>8 जनवरी की वार्ता फेल करने की तैयारी</h4>
आंदोलनकारियों के नए नेताओं के रूप में उभरे योगेंद्र यादव ने पांच जनवरी की मीडिया ब्रीफिंग में जो तेवर दिखाएं हैं उनसे लग रहा है कि आंदोलनकारियों को किसानों के हित की नहीं बल्कि अपनी प्रतिष्ठा की चिंता है। आंदोलनकारि नेताओं को डर लग रहा है एक महीने से ज्यादा खिंच चुके आंदोलन का अंत सरकार को झुकाए बिना ही हो गया तो उनकी नेतागिरी खत्म हो जाएगी। इसलिए अब वो सीधे टकराव और शक्तिप्रदर्शन के रास्ते पर आ गए हैं। 7 तारीख को ट्रैक्टर मार्च करने और दोनों पेरिफेरियल वे को जाम करने के पीछे कहीं 8 जनवरी की वार्ता को बेनतीजा रखने की साजिश तो नहीं?.
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