विचार

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग (Dwadash Jyotirling) के दिव्य दर्शन।

द्वादश ज्योतिर्लिंग (Dwadash Jyotirling) : सावन का महीना भगवान शिव शंकर भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना है। इस महीने में भगवान शिव की आराधना से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से शिवशंकर भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं। साथ ही कहा जाता है कि इस धरा पर द्वादश यानी कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं। और इसके पाठ करने से ईश्वर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

हिन्दु मान्यताओं के मुताबिक भगवान सावन के महीने में शिव की उपासना का विशेष महत्व है। भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं। और उसमें भी अगर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की उपासना की जाय तो साधक को पुण्य की प्राप्ति होती है।

हिन्दू सनातन धर्म में शिव शंकर भोलेनाथ की उपासना सृष्टि के संहारक के रूप में की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्टों का नाश हो जाता है ।

ज्योतिर्लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ है ज्योति का मतलब प्रकाश और लिंग यानी प्रतीक। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान शिव के इन सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों की उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आज जानेंगे भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में और बताएंगे उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

Dwadash Jyotirling में से पहला स्थान सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

द्वादश ज्योतिर्लिंग में पहला स्थान आता है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का

गुजरात के सौराष्ट्र में भगवान सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से आता है। सभी ज्योतिर्लिंगों में इसका प्रथम स्थान है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि आती है।

Dwadash Jyotirling में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का द्वितीय स्थान है

दूसरा स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का आता है।

आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्री शैल पर्वत पर स्थित है। इस पवित्र धार्मिक स्थल पर माता पार्वती के साथ महादेव के ज्योति रूप के दर्शन होते हैं। यहां दर्शन मात्र से ही साधक को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

Dwadash Jytirling में उज्जैन का महाकाल ज्योतिर्लिंग

तीसरा स्थान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का है।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान महाकाल के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के रोग,भय एवं पाप से मुक्ति मिल जाती है।

Dwadash Jyotirling में ओंकारेश्वर धाम का विशेष महत्व है।

ओम्कारेश्वर धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर है।

मध्य प्रदेश के ही खंडवा जिले में ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। नर्मदा नदी के बीचोबीच शिवपुरी द्वीप पर ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। काफी ऊंचाई से देखने पर यह स्थान ‘ॐ’ के आकार का दिखता है। यहां शिव की उपासक करने से सभी दुखों से पार लग जाता है।

Dwadash Jyotirling में एक स्वरूप केदारनाथ धाम की।

अब चर्चा केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का

उत्तराखंड स्थित हिमालय की गोद में बसे बाबा केदारनाथ मंदिर हिन्दू लनातन धर्म के लिए विशेष स्थान रखता है। केदारनाथ धाम का महाभारत काल से ही संबंध है। सनातन धर्म के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में शिव शंकर भोलेनाथ ने पांडवों को इसी स्थान पर बसहा यानी नंदी रूप में दर्शन दिया था। कहते हैं साक्षात भगवान विश्वकर्मा की कृपा से आदि गुरु शंकराचार्य ने कराया था।

Dwadash Jyotirling में भीमाशंकरम का स्वरूप

डाकिन्यां भीमाशंकरं

महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित सह्याद्रि पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग है।भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मोटेश्वर महादेव के नाम भी ख्याति प्राप्त हैं। मान्यता है कि भगवान शिव शंकर भोलेनाथ इसी स्थान पर भीम नामक दैत्य का वध किया था।यहां शिवभक्तों को भयऔर पाप से मुक्ति मिलता है।

Dwadash Jyotirling में काशी विश्वनाथ का स्वरूप

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी अर्थात बनारस में द्वादश ज्योतिर्लिंग के सातवें स्थान बाबा विश्वनाथ का मंदिर है,जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान शिव शंकर भोलेनाथ के दर्शन हेतु स्वर्ग से स्वयं देवी देवता पृथ्वी लोक पर उतरते हैं। यहां जिस किसी की भी मृत्यु होती है,मान्यता है कि उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Dwadash Jytirling में त्रयंबकेश्वर का स्वरूप

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

महाराष्ट्र के ही नासिक जिले में स्थित त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान द्वादश ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर आता है। त्रयम्बकेश्वर का मंदिर ब्रह्मागिरी पर्वत पर अवस्थित है,यहीं से गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है। मान्यता है कि इसी स्थान पर गौतम ऋषि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था।

Dwadash Jyotirling में बाबा वैद्यनाथ का स्वरूप

बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

झारखंड के देवघर जिले में बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग का भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि बाबा वैद्यनाथ धाम महा विद्वान रावण द्वारा स्थापित किया गया था। यहां लोग वैसे तो सालों भर लेकिन सावन में कांवर लेकर बाबा वैद्यनाथ धाम में जलार्पण करते हैं। ख़ास कर श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर बाबा को जल चढ़ाने आते हैं। बिहार के भागलपुर में उत्तरवाहिनी गंगा से कांवड़िए जल भरते हैं और 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और बाबा वैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं।

Dwadash Jyotirling में बाबा नागेश्वर का स्वरूप

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

गुजरात के द्वारका स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दसवें स्थान पर आता है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है।

Dwadash Jyotirling में रामेश्वरम का स्वरूप

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

तमिलनाडु के रामनाथपुरम में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। रामायण में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है।मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने समुद्र के तट पर बालू से शिवलिंग का निर्माण कर उसकी पूजी अर्चना की थी। श्री राम द्वारा निर्मित शिवलिंग के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को रामेश्वरम कहा जाता है।

Dwadash Jyotirling में घृष्णेश्वर बाबा का स्वरूप

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग अर्थात घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के वेरुल नामक गांव में स्थित है। शिव पुराण में भी भगवान शिव के इस अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है।यहां पूजा अर्चना करने से शिवभक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

यह भी पढ़ें-कुमारिल भट्ट: सनातन की स्थापना से गुरुद्रोह के प्रायश्चित तक

Brajendra Nath Jha

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