मोहम्मद अनस
India’s Soft Power: जैसे-जैसे भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति के रूप में लगातार आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे प्रतीत होता जा रहा है कि नई दिल्ली को वैश्विक मामलों में अपने मानवीय दृष्टिकोण को मज़बूत करने के लिए एक कमी को पूरा करना होगा और यह है- विदेश नीति के एक साधन के रूप में परोपकार, या चैरिटी की स्थापना और उसका उपयोग। कई अग्रणी और विकासशील देश दुनिया भर में कई मोर्चों पर काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी और कल्याण फाउंडेशनों की मदद करते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र से जुड़े संगठनों के अलावा, कुछ उल्लेखनीय अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी या परोपकार गतिविधियों से संगठन आज सक्रिय हैं, उनमें हैं-मेलिंडा और बिल गेट्स फ़ाउंडेशन, क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव्स, मेडिसिन्स सेन्स फ्रंटियर्स, द साल्वेशन आर्मी, द हंगर प्रोजेक्ट, व्हाइट हेलमेट्स, मुस्लिम वर्ल्ड लीग, तुर्की सहयोग और समन्वय एजेंसी (टीआईकेए) आदि ।
Scenes from our teams' response to artillery shelling by regime forces that targeted the town of Ahsim in Jabal Al-Zawiya, south of #Idlib, on Tuesday morning, August 22, resulting in the injury of 3 civilians, including a child, and a car fire.#Syria #WhiteHelmets pic.twitter.com/zQLPmBOZPI
— The White Helmets (@SyriaCivilDef) August 22, 2023
माना जाता है कि चैरिटी संगठन विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि अब समय आ गया है कि भारत बड़े दिल के साथ ख़ुद को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित करे। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के टिप्पणीकार और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के सलाहकार रहीस सिंह ने कहा, “चैरिटी दिये जाने का एक सिद्धांत होता है और यह देशों की छवि को बढ़ाने और यहां तक कि संघर्षों को कम करने में भूमिका निभाने में मदद करने के लिए काम करता है। यदि भारत इस उद्देश्य के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन खड़ा करता है, तो यह निश्चित रूप से एक उभरती हुई भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी भूमिका का यह संगठन पूरक बनेगा।”
सिंह ने कहा कि अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन और इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) जैसी निजी भारतीय चैरिटी संगठन पहले से ही भारत और विदेश दोनों में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं उनके काम की प्रकृति और पैमाने को ठीक से नहीं जानता, लेकिन कोई भी कल्याणकारी कार्य चैरिटी देने या मदद करने वाले देश के लिए बहुत सद्भावना लाता है।”
इसी तरह, अंकारा विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के एक भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर ने इंडिया नैरेटिव को बताया कि इससे भारत को कई विदेश नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी, लेकिन उन्हें यह भी लगता है कि भारत को भी भारत में इसी तरह के संगठनों को मान्यता देने और काम करने की अनुमति देकर इसका जवाब देना होगा।
उनका कहना है, “अगर भारत अपनी स्वयं की चैरिटी को बढ़ावा देने और विस्तार करने के लिए उद्यम करता है, तो यह उन चैरिटी पर अंकुश को कम कर देगा, जिन्हें भारत में अपने कामकाज पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ा है। तुर्की के TIKA और सऊदी अरब के इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक को भारत में काम करने की अनुमति नहीं है। इसलिए, इस तरह के प्रयास को शुरू करने से पहले, भारत को पहले दुनिया के साथ मित्रता स्थापित करनी होगी।”
उन्होंने कहा कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करने और पिछले कई वर्षों से तुर्की में पढ़ाने के अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने वैश्विक संबंधों में भारत की सॉफ़्ट पॉवर के लिए बढ़ती गर्मजोशी देखी है और विश्व स्तरीय दान उस दिशा में एक उचित क़दम होगा।
जेएनयू के प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह विश्व राजनीति में सकारात्मक भूमिका निभाने वाली चैरिटी के विचार से सहमत हैं, लेकिन उनका कहना है कि भारतीय चैरिटी द्वारा वैश्विक भूमिका निभाने को लेकर टिप्पणी करना बहुत अपरिपक्व होगा। उन्होंने इंडिया नैरेटिव को बताय, “यह अभी एक मात्र परिकल्पना है। पहले इसे ठोस रूप से अंकुरित होने दें।”
विश्व स्तरीय भारतीय ब्रांड ऑफ़ चैरिटी का मुद्दा नीति निर्माताओं और थिंक टैंक विदेश नीति के दिग्गजों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत ने मानवीय सहायता और गंभीर संकट वाले देशों के लिए ऋण योजनायें लाकर कई संकटों और संघर्षों को कम करने में लगातार मदद की है।
इंडियन काउंसिल फ़ॉर वर्ल्ड अफ़ेयर्स (आईसीडब्ल्यूए) के एक विद्वान बताते हैं, “भारत G-20 जैसे समूह की अध्यक्षता कर रहा है। यह ब्रिक्स का एक प्रमुख पक्ष है। इसके प्रधानमंत्री को सबसे लोकप्रिय और शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्षों में से एक माना जाता है। गंभीर चुनौतियों के बावजूद इसकी अर्थव्यवस्था समृद्ध हो रही है। यह ज़रूरतमंद देशों की मदद कर रहा है। तो, भारत में एक ऐसा संगठन क्यों नहीं होना चाहिए, जिसे अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी के रूप में जाना जाता हो ? यह ज़रूरी नहीं कि यह एक सरकारी अंग हो। इसे बड़े व्यावसायिक घरानों और निजी दानदाताओं की चैरिटी से चलाया जा सकता है।”
ISKCON (Hare Krishna community) members are speaking and organizing workshops on Bhakti Yoga practices and other topics at the Parliament of World Religions in Chicago, USA.@InterfaithWorld pic.twitter.com/6e6VVLrfkB
— ISKCON (@iskcon) August 17, 2023
नीति के रूप में परोपकार
पिछले हफ़्ते एक नवोदित कल्याण फाउंडेशन,एमिरेट्स रेड क्रिसेंट ने ऐलान किया कि वह सीरिया युद्ध पीड़ितों के एक वर्ग के लिए घर बनायेगी। पहले से ही कुछ ईरानी कल्याण संगठन भी ऐसा ही कर रहे हैं। इसी तरह, व्हाइट हेलमेट्स, जिसकी कहानी नेटफ्लिक्स द्वारा प्रलेखित की गयी है, युद्धग्रस्त देश में लंबे समय से काम कर रही है। संघर्षों में इसकी धर्मार्थ भूमिका को सीरियाई सरकार, ईरानी सरकार, रूसी सरकार और यहां तक कि चीनी मीडिया द्वारा संदिग्ध क़रार दिया गया है। हालांकि, यह दर्शाता है कि जब प्रत्यक्ष कूटनीति संभव नहीं हो, तो चैरिटी मिशन कुछ विदेश नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने में कैसे सहज भूमिका निभाते हैं।
ऐसे चैरिटी संगठनों की भूमिका देशों द्वारा घोषित और वितरित मानवीय सहायता के समानांतर चलती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध के एक जानकार के अनुसार, जैसा कि ऊपर उद्धृत विशेषज्ञों की टिप्पणियों में भी उजागर किया गया है, वैश्विक राजनीति में चैरिटी की भूमिका गहरी है और यह देशों के बीच संबंधों में मदद या बाधा भी डालती है।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जेरेमी यूडे ने “अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में परोपकार की भूमिका” विषय पर अपने पेपर में लिखा है, “परोपकारी संगठनों के पास वैश्विक राजनीतिक एजेंडे को आकार देने और बदलने की शक्ति होती है – और वे अन्य प्रकार के ग़ैर-सरकारी घटकों से अलग तरीक़ों से ऐसा कर सकते हैं। वर्तमान युग में वैश्विक शासन की गतिशीलता की पूरी तरह से सराहना करने और भविष्य में वैश्विक शासन की गतिशीलता को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में परोपकार को और विश्लेषण के लिए प्रासंगिक घटकों के रूप में परोपकारी संगठनों को शामिल करें। इसका मतलब यह नहीं है कि परोपकारी संगठन राज्यों की जगह ले रहे हैं; बल्कि, परोपकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अमल को बढ़ाते हैं।”