Hindi News

indianarrative

मुसलमानों के दुश्मन Maulana Madani! चाहिए शरिया? सरदार पटेल की तरह कुछ करो PM Modi, कहीं ज्यादा देर न हो जाए

मुसलमानों के दुश्मनः अदालत-सरकार या हिंदू नहीं खुद मुसलमान हैं

यूपी के सहारनपुर जिले के देवबंद में चल रहे जमीयत के जलसे में फिर से पाकिस्तान की ‘भाषा’ बोली गई। इस जलसे में ऐसा महौल बनाया गया कि हिंदुस्तान में मुसलमानों का जीना दूभर कर दिया गया है। मुसलमानों की मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं। मुसलमानों की दाढियां काटी जा रही हैं। हिजाब पर बैन लगाया जा रहा है और अजान-नमाज पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जमीयत के जलसे में मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की गई। हालांकि, यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि जमीयत का यह जलसा खास तौर से देवबंदी फिरके के मुसलमानों का ही था। देवबंदियों की किसी भी बात या फतवे को बरेलवी मानने या फॉलो करने के लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन ‘मुसलमान’ के नाम पर दोनों फिरके अपने-अपने अलग तरीको से सरकार और अदालतों का विरोध शुरू करने लगते हैं। इस समय भी ऐसा ही हो रहा है। सतही तौर पर तो यही दिखाई देता है कि सभी मुसलमान एक-साथ सरकार और अदालत के खिलाफ खड़े हैं लेकिन भीतरी तौर पर झांकने पर पता चलता है कि सब अलग-अलग तरीकों से विरोध कर रहे हैं।

ध्यान रहे, वाराणसी के आदिदेश्वर महादेव मंदिर में ज्ञानवापी के नाम से कथित मस्जिद उस सुन्नी वक्फ बोर्ड के तहत आती है। सुन्नी मुसलमानों में कई फिरके हैं। देवबंदी और बरेलवी के अलावा हनफी, शाफई, मलिकी, हम्बली, सूफी, वहाबी, सलफी, अहले हदीस जैसे तमाम फिरके हैं। अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि जिस कथित ज्ञानवापी मस्जिद पर विवाद है उस पर हक कौन से फिरके का है। क्या उस कथित मस्जिद में सभी फिरकों के मुसलमान एक साथ नमाज पढ़ते रहे हैं? इतिहास ही नहीं वर्तमान इस बात का गवाह है कि हनफी मुसलमानों की मस्जिद में वहाबी, वहाबियों की मस्जिद में सलफी और सलफियों की मस्जिद में हम्बली मुसलमानों को नमाज पढ़ना तो दूर एक दूसरे फिरके की मस्जिदों में घुसने तक नहीं दिया जाता। ऐसा कहा जाता है कि मुसलमानों की आपसी जंग के बारे में हदीसों पहले ही लिख दिया गया है, इसके कुछ उदाहरण देखेः

1- "अबू हुरैरा ने कहा कि,रसूल ने कहा था कि यहूदी और ईसाई तो 72 फिरकों में बँट जायेंगे, लेकिन मेरी उम्मत 73 फिरकों में बँट जाएगी, और सब आपस में युद्ध करेंगे (अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4579)

2- "अबू अमीर हौजानी ने कहा कि ,रसूल ने मुआविया बिन अबू सुफ़यान के सामने कहा कि ,अहले किताब (यहूदी ,ईसाई ) के 72 फिरके हो जायेंगे ,और मेरी उम्मत के 73 फिरके हो जायेंगे। और उन में से 72 फिरके बर्बाद हो जायेंगे और जहन्नम में चले जायेंगे। सिर्फ एक ही फिरका बाकी रहेगा,जो जन्नत में जायेगा। (अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4580)

3- "अबू हुरैरा ने कहा कि,रसूल ने कहा कि,ईमान के 72 से अधिक टुकडे हो जायेंगे,और मुसलमानों में ऐसी फूट पड़ जाएगी कि वे एक दूसरे की हत्याएं करेंगे।"(अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4744)

4- "अरफजः ने कहा कि मैं ने रसूल से सुना है ,कि इस्लाम में इतना बिगाड़ हो जायेगा कि,मुसलमान एक दुसरे के दुश्मन बन जायेंगे,और तलवार लेकर एक दूसरे को क़त्ल करेंगे" (अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4153)

5-"सईदुल खुदरी और अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,पाहिले तो मुसलमान इकट्ठे हो जायेंगे ,लेकिन जल्द ही उनमें फूट पड़ जाएगी । जो इतनी उग्र हो जाएगी कि वे जानवरों से बदतर बन जायेगे। फिर केवल वही कौम सुख से जिन्दा रह सकेगी जो इनको इन को (नकली मुसलमानों) को क़त्ल कर देगी। फिर अनस ने रसूल से उस कौम की निशानी पूछी जो कामयाब होगी। तो रसुलने बताया कि,उस कौम के लोगों के सर मुंडे हुए होंगे। और वे पूरब से आयेंगे" (अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4747) लिंक नीचे देखें

इस्लाम का विभाजन

इन हदीसों का जिक्र इसलिए किया गया है ताकि मुसलमानों को वो सच्चाई बताई जाए जो उन्हें अभी तक बताई नहीं गई है या उनसे छिपा कर रखी गई हैं या आम मुसलमानों को बताने से इंकार कर दिया जाता है।

बहरहाल, इन्हीं हदीसों की रोशनी में यह कहना और लिखना जरूरी है कि जमीयत के दो दिनी जलसे के बाद जो प्रस्ताव पेश किए गए हैं वो मुसलमानों के हक में नहीं हैं। यूनीफाइड सिविल कोड यानी समान आचार संहिता या सीएए और एनसीआर शरिया के खिलाफ नहीं बल्कि उन उलेमा के खिलाफ हैं जो इस्लाम की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहे हैं।  भारत में मुसलमानों का दुश्मन न अदालतें हैं न सरकार है और न हिंदू हैं मुसलमानों के दुश्मन खुद मुसलमान है। क्यों कि रसूल ने कहा है कि कामयाब कौम वो होगी जिसके सिर मुंडे हुए होंगे और वो पूर्व से आएंगे। कुछ विद्वानों का कहना है कि पूर्व का मतलब यहां हिंदुस्तान से और सिर मुंडे हुए लोगों से मतलब सनातन संन्यासियों से है।

सनातन में किसी भी पंथ को मानने वाले संन्यासी को देख लें सबके सिर मुंडे हुए होते हैं। भारत के किसी भी कौने के संन्यासियों को देख लें सब शीश मुंडाकर रखते हैं। गोरखनाथ यानी नाथ पंथ के आदित्यनाथ योगी और सभी शंकराचार्य के शीश मुंडे हुए होते हैं। यहां अपनी ओर से कुछ कहने या साबित करने या थोपने की कोशिश नहीं है बल्कि हदीस को अपनी तरह से समझने की कोशिश की गई है।

वापस लौटकर जमीयत के दो दिनी जलसे की ओर आते हैं और मदनी सहित जितने भी मौलानाओं ने तकरीरें दी गई उनमें से ज्यादा ऐसी लग रहीं थीं कि वो भारत में बैठकर नहीं बल्कि पाकिस्तान में की जा रही हों। एक बात और बहुत खास है कि इस समय पाकिस्तान में मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन है। पाकिस्तान में मुसलमान ही मुसलमान का कत्ल कर  रहे हैं। बम धमाके हों या फिर लॉंग मार्च में होने वाली हिंसक घटनाओं में पाकिस्तानी मुसलमान एक दूसरे की जान ले रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इमरान खान देवबंदी फिरके को मानता है और शहबाज शऱीफ-नवाज शरीफ अहले हदीस को मानते हैं। इसलिए दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है। इसीलिए इमरान खान ने कुर्सी छिन जाते ही शहबाज शरीफ के खिलाफ जंग छेड़ दी।  

चलिए फिर से वापस देवबंद में जमीयत के दो दिनी जलसे की ओर लौटते हैं। इस जलसे में मौलाना मदनी ने मुसलमानों को यह नहीं बताया कि मंदिर ही नहीं किसी भी इमारत को तोड़कर जबरन बनाई गई मस्जिद को मस्जिद का दर्जा नहीं दिया जा सकता। उसमें नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसके बजाए उन्होंने यह कहा कि 1947 में हमें पाकिस्तान जाने का मौका मिला था हमने उसे रिजेक्ट किया। अगर तुम्हें हमारा धर्म पसंद नहीं तो तुम कहीं और चले जाओ। चूंकि मौलाना मदनी ने 1947 का जिक्र किया है तो यहां यह बताना जरूरी है कि पाकिस्तान का फैसला अकेले जिन्नाह का नहीं था। उस समय के 95 प्रतिशत मुसलमानों ने अलग पाकिस्तान के पक्ष में जनमत दिया था। इस पर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने एक सार्वजनिक भाषण में कहा था कि पाकिस्तान की मांग करने वाले किसी भी मुसलमान को हिंदुस्तान में रहने का हक नहीं। वो यहीं नहीं उन्होंने कहा कि रातों-रात ऐसा क्या हो गया कि तुम्हारा दिल बदल गया।

3 जनवरी 1948 को कलकत्ता में और 6 जनवरी 1948 को लखनऊ में मुसलमानों को सीधे-सीधे क्या कहा था सुनिए…

यही बात यहां मौलाना मदनी को बतानी चाहिए, उन्हें सुनानी चाहिए, कि मौलाना मदनी से सरदार पटेल का वही सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर यह मुल्क तुम्हारा है तो तुमने अलग पाकिस्तान बनाने के लिए जनमत क्यों दिया था? और जब तुम्हें यहीं पड़े रहने की इजाजत दी थी तो तुम्हें शरिया के हिसाब से नहीं हिंदुस्तान के संविधान और हिंदुस्तान के कानून के हिसाब से रहने की छूट दी थी। तुमने तो अपना मुल्क मांग लिया था। तुम्हें विकल्प नहीं दिया गया था मौलाना मदनी। तुम गांधी, नेहरू की दया पर यहां रह गए थे। 3-4 करोड़ से आज 30 करोड़ हो गए तो कहते हो हमारा मुल्क है। मौलाना मदनी दिन ज्यादा नहीं हुए हैं। सरदार पटेल भले ही न हों लेकिन उनके ‘बोल’ आज भी जिंदा हैं। मुसलमानों को भड़काओ मत। उन्हें समझाओ कि अगर हिंदुस्तान में रह गए हो तो हिंदुस्तान के संविधान को मानो, हिंदुस्तानियों की तरह रहो, औरंगजेब की औलाद मत बनो, यहां शरिया नहीं चलेगा। शरिया तो पाकिस्तान में ही चलता है। रही बात, ज्ञानवापी की तो मामला अदालत में है। अदालत से ऊपर न तो तुम हो और न शरिया।