‘कुशी नगर के बाबर अली का कसूर सिर्फ इतना ही था कि उसने योगी आदित्यनाथ के लिए प्रचार किया था। बीजेपी की सरकार बनने पर खुशी जाहिर की थी। योगी फिर से एक बार मुख्यमंत्री बन रहे थे इसलिए उसने मिठाईयां बांटी थीं।’ बेकसूर मुसलमान बाबर ने इस्लाम की तौहीन नहीं की थी। बेकसूर मुसलमान बाबर ने कुरान की बेअदी नहीं की थी। बेकसूर मुसलमान बाबर ने पैगंबर मुहम्मद को अपशब्द भी नहीं कहे थे। फिर भी दरिदों ने उसकी मॉब लिंचिंग की…और सूडो सेक्युलर, ह्युमन राइट एक्टिविस्ट्स अंधे-गूंगे और बहरे बने हुए हैं।
बाबर के इसी कसूर के लिए उसकी लिंचिंग की गई। उसे पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। तब भी उसके प्राण न निकले तो घर की छत पर ले जाकर ऊपर से नीचे जमीन पर पटका गया। शरीर में जितनी हड्डियां होती हैं, शायद उससे ज्यादा फ्रैक्चर थे। फिर भी उसने कई दिनों तक मौत से संघर्ष किया। आखिर में मौत जीत गई। मौत नहीं, वो सूडो सैक्युलर जीत गए जो बाबर की मौत पर चेहरे पर हाथ रख कर खुशी मना रहे हैं।
फरीदाबाद, नोएडा की घटनाओं को लिंचिंग की घटनाओं से जोड़कर देश भर में ही नहीं पूरी दुनिया में शोर मचाने वाले मानवाधिकारी कहां चला गए हैं। क्या उन्हें नहीं मालूम कि कुशीनगर में बर्बर तरीके से मौत के घाट उतारा गया बाबर मुसलमान ही था। बाबर एक जीता-जागता इंसान था। उसके भी अपने अरमान थे। वो भी अभिव्यक्ति की आजादी का हकदार था। उसने बीजेपी की जीत पर मिठाईयां बांटी तो उसे मुगलों के जमाने की बर्बर सजा दी गई। उसकी हड्डी-हड्डी नहीं रग-रग तोड़ दी गई। उसे तिल-तिल कर मरने को मजबूर किया गया।
बल्लभगढ़ में ट्रेन में सीट पर बैठने को लेकर हुए विवाद को लिंचिंग से जोड़ा गया क्यों कि वो जुनैद था। झारखण्ड के बाइक चोर तबरेज अंसारी की मौत को मॉब लिंचिंग से जोड़ा गया क्यों कि वो मुसलमान था। दादरी के अखलाख की मॉब लिंचिंग खबर पर आसमान सिर पर उठाया गया था। ये और ऐसी तमाम घटनाएं हैं जिन्हें सूडो सेक्युलर्स, ह्युमनराइट एक्टिविस्ट्स के साथ राष्ट्रदोही तत्वों ने सरकार नहीं देश की छवि को दुनिया भर के सामने धूमिल किया। आधे सच को पूरा सच दिखाने के लिए धरना-प्रदर्शन जलसे और मशाल जलूस और कैंडल मार्च किए गए। 2014 के बाद भारत में ‘इनटॉलरेंस’की बढ़ने के आरोप लगाए गए। विभीषण, अम्भी और मीर जाफर सरीखे दोगलों ने यूएन तक को चिट्ठियां भेजीं। इंटरनेशनल हस्तक्षेप की मांग की। कुशीनगर के मुसलमान बाबर में ऐसे कौन से कांटे लगे हैं जो अभी तक किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है? कोई भी निर्दोष बाबर के हत्यारों को फांसी दिए जाने की मांग नहीं कर रहा?
भारत के हवा-पानी और भोजन पर निर्भर इन सूडो सेक्युलर्स, कथित ह्युमनराइट एक्टिविस्ट्स और अभिव्यक्ति की आजादी के तराने गाने वालों को क्या बाबर की हत्या में मानवाधिकारों की हत्या नहीं दिखाई दे रही।अजय देवगन की फिल्म की भाषा में कहें तो क्या इन सूडो सेक्युलर और कथित मानवाधिकारवादियों की जुबान-आंख और दीमाग पर ‘गंगाजल’का असर हो गया है? कुशीनगर के बाबर की बर्बर हत्या पर ये सेक्युलर, ह्युमन राइट एक्टिविस्ट्स गोरखपुर के गोलघर, लखनऊ के हजरतगंज, दिल्ली के इंडियागेट और जंतर-मंतर पर प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे हैं?
समाजवादी पार्टी के सासंद शफीकुर्रहमान वर्क, नफरती खान, हैदराबाद के ओवैसी भाईजान कहां दुम दबा कर बैठ गए हैं? शफीकुर्रहमानों, ओवैसियों और मेमनों जुबान खोलो! उम्मीद है तुम सब हट्टे-कट्टे हो, लक्वा नहीं मार गया है तुम्हें! थोड़ी सी भी शर्म है तो एक निर्दोष मुसलमान बाबर की बर्बर हत्या पर मुंह खोलो। बाबर की मॉब लिंचिंग नहीं बल्कि खूंखार दरिंदों की भीड़ ने उसे मुगलों के जमाने जैसी क्रूर सजा दी है, वो भी सिर्फ इसलिए कि उसने एक पार्टी विशेष की जीत पर जश्न मनाया था। उसने तबर्रा नहीं पढ़ा था। उसने कुरान की बेअदबी नहीं की थी। उसने इस्लाम की तौहीन नहीं की थी। फिर भी दरिंदे बने मुसलमानों की भीड़ ने लाठी-डंडों से पीटा और फिर घसीटते हुए छत पर ले गए और वहां से जमीन पर पटक दिया!