एक चीज जिससे पूरी दुनिया परेशान है। जिसका हल हर कोई निकालना चाहता है, जो मुसलमानों के माथे पर काला तगमा सरीखा है, उसे भारत सरकार जड़ से मिटाने जा रही है। हालांकि कुछ कट्टरपंथियों को मिर्ची लग सकती है, संघ और एनडीए सरकार के प्रतिद्वंदी दल 'सबूत' मांग सकते हैं। बवाल भी खड़ा कर सकते हैं। इसके बावजूद अंग्रेजों से लेकर आजाद भारत की सरकारों ने जो नहीं किया वो काम अब भारत सरकार करने जा रही है।
आरएसएस, बीजेपी और मोदी जिन्हें मुसलमानों का कट्टर विरोधी कहा जाता है, वही तीनों मिल्र कर मुसलमानों के हित और हक में ऐसा करने जा रहे हैं। भारत सरकार ऐसा काम करने जा रही है जिससे इस्लामोफोबिया का जड़ से खात्मा हो जाएगा। यह काम चुपचाप लेकिन बहुत तेजी से हो रहा है। संघ, बीजेपी और <a href="https://indianarrative.com/india/pm-modi-at-amu-first-visit-by-a-prime-minister-in-aligarh-muslim-university-after-56-years-46101.html"><span style="color: #000080;"><strong>पीएम मोदी</strong> </span></a>ने इस काम के लिए बीजेपी के उन मुस्लिम नेताओं को लगाया है जो पढ़े-लिखे समझदार और तेज बुद्धि के माने जाते हैं। जो इस्लामोफोबिया को खत्म कर मुसलमानों की राष्ट्रीय छवि निखारना चाहते हैं।
भारत में इस्लामोफोबिया की जड़ें चंगेज, तैमूर, तुगलक, गौरी, बाबर और फिर औरंगजेब तक फैलीं। अंग्रेजों ने जो पढ़ाया सो पढ़ाया आजाद भारत की सरकारों ने जो पढ़ाया-सिखाया वो यही पढ़ाया-सिखाया कि शक और हूणों से लेकर अरबी फारसी और मंगोल-मुगल आक्रांताओं ने मारा-काटा हम पर राज किया। कुछ को डरा-धमका कर, कुछ को लालच से तो कुछ को बहला-फुसला कर मुसलमान बना दिया गया, जो नहीं माने उन्हें कत्ल कर दिया और कुछ जान बचाने में या भागने में कामयाब रहे।
इंडिया के स्कूलों में उन लोगों के बारे में नहीं के बराबर बताया गया है जो थे मुसलमान तो थे लेकिन भारतीय धर्मों की इज्जत करते थे। जिन्होंने अरबी-फारसी और अन्य भाषाओं में भारतीय धर्म ग्रंथों को लिखवाया। भारतीय धर्म की विशेषताओं से दुनिया को अवगत कराया। जो इस्लाम से पहले भारतीय धर्मों कों तवज्जोह देते थे। मुगलिया सल्तनत के ऐसे ही एक वारिस का नाम है दारा शिकोह। शाहजहां के बाद दारा शिकोह ही हिंदुस्तान के तख्त का उत्तराधिकारी था, लेकिन उसके छोटे भाई औरंगजेब ने धोखे से उसको गिरफ्तार कर कत्लकरवा दिया और गद्दी पर बैठ गया।
इसी औरंगजेब के कुकर्मों की कहानियां तो खूब पढ़ने को मिलती हैं। कहानियां भी ऐसी कि आज भी खून खौल उठता है…और वहीं से शुरू होती नफरत (इस्लामोफोबिया) की शुरुआत। अगर औरंगजेब के साथ-साथ दारा शिकोह के बारे में भी उतने ही विस्तार से सिखाया-पढ़ाया जाता तो शायद हिंदुस्तान की शक्ल-सूरत कुछ और ही होती।
मौजूदा सरकार ने इस्लामोफोबिया को खत्म करने के लिए सन् 1600 से लेकर अब तक के इतिहास में रिसर्च और संशोधन करने का काम शुरू किया है और 'दारा शिकोह को फिर से खोजने' का बीड़ा उठाया है। ऐसा बताया जाता है कि दारा शिकोह को खोजने का काम आरएसएस के पांच शीर्ष पदाधिकारियों में से एक डॉक्टर कृष्ण गोपाल के निर्देश पर हो रहा है। बीजेपी में इस काम की अहम जिम्मेदारी अन्य लोगों के अलावा जफरुल इस्लाम के कंधों पर है। डॉक्टर कृष्ण गोपाल अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के एलुमनाई हैं इसलिए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कई मुस्लिम स्कॉलर्स भी 'दारा शिकोह को ढूंढने' में जी-जान से जुटे हुए हैं। इस क्रम में सबसे पहले दारा शिकोह की कब्र को पहचाने की कोशिशें तेजी से हो रही हैं।
मोदी सरकार ने दारा शिकोह की क़ब्र को पहचानने के लिए पुरातत्वविदों की एक कमेटी बनाई है जो साहित्य, कला और वास्तुकला के आधार पर उनकी क़ब्र की पहचाने में लगी है। दारा शिकोह की कब्र की पहचान के लिए भारत सरकार संभवतः पाकिस्तान से भी मदद मांग सकती है। लेकिन वो किस स्तर से और किस चैनल से मांगी जाएगी, निश्चित नहीं है। अब तक कि खोजबीन के मुताबिक दारा शिकोह को हुमायुं के मकबरे में ही दफ्नाया गया था। दाराशिकोह की कब्र की एक फोटो पाकिस्तानी इतिहास शोधकर्ता अहमद नबी ने 1969 में अपने रिसर्च पेपर में प्रकाशित की थी।
बहरहाल, सरकार का दारा शिकोह के चरित्र को भारतीय मुसलमानों के आदर्श पुरुष के रूप में पेश करना चाहती है।
दारा शिकोह की क़ब्र की पहचान होने के बाद धार्मिक सद्भाव के उत्सव और कार्यक्रम शुरू किया जा सकते हैं। ठीक वैसे ही कुछ जैसे निजामुद्दीन दरगाह पर वसंत पंचमी का उत्सव होता है। दारा शिकोह की कब्र ढूंढ कर उसे सम्मान जनक स्थान पर स्थापित करने का मकसद मुसलमानों को गैर मुसलमानों (सभी हिंदु-सिखों) के नजदीक लाना और इस्लामोफोबिया को खत्म करना है। आगाज हुआ है, देखें अंजाम क्या होगा। क्या 390 साल पहले जिस इतिहास को दारा शिकोह के साथ जिन हिंदुस्तानी परंपरा-सस्कृति को दफ्न कर दिया गया था, क्या ये सरकार फिर से जिंदा करने के मकसद में कामयाब हो पाती है!.
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