24 मई, 1899 को बंगाली कवि, संगीतकार, उपन्यासकार और क्रांतिकारी काजी नजरुल इस्लाम का जन्म हुआ था। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा फ़ारसी कवि हाफ़िज़ और ख़ैयाम से भी उन्हें कवितायें लिखने की प्रेरणा मिली। उन्होंने सेना में एक सैनिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। 1920 में उनकी रेजिमेंट को भंग कर दिया गया। इस प्रकार उन्होंने सेना छोड़ दी। उसके बाद अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की।
उन्होंने हज़ारों कवितायें, गीत, उपन्यास और कहानियां लिखीं।इन रचनाओं ने बंगाल के लाखों युवाओं को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ क्रांतिकारियों की क़तार में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। विद्रोही आंदोलनों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके कई लेखों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
वे विद्रोही के कवि हैं। वे बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि भी हैं। उनकी 122वीं जयंती बांग्लादेश और भारत में बहुत धूमधाम से मनायी जाती है।
नज़रुल ने अपनी कविताओं के माध्यम से रहस्यवाद और आध्यात्मिकता का भी शोधन किया। उन्होंने अक्सर ग़रीबी पर रौशनी डाली। साहित्यिक अर्थों में उनकी ग़रीबी सिर्फ़ समृद्धि का अभाव नहीं थी, बल्कि जुनून, भावनाओं और सार्वभौमिक और व्यावहारिक रहस्यवाद की भी ग़रीबी थी।
अपनी एक कविता में वे कहते हैं, “आइये, आज यह भूल जायें कि कौन दोस्त या दुश्मन है और एक-दूसरे को प्यार से गले लगायें। अपने प्यार में मानवता लाने के लिए उसे अल्लाह की कृपा का चुंबक बनने दें।” नज़रूल का अल्लाह ‘पारंपरिक इस्लाम का अल्लाह नहीं है। यह रब्ब उल-मुस्लिमीन,यानी केवल मुसलमानों का भगवान नहीं है,बल्कि वह रब्बुल-आलमीन है,यानी ब्रह्मांड का भगवान है। वह कहते थे कि ईश्वर या ईश्वर मेरे लिए एक विचार है, एक सार्वभौमिक रहस्यवाद है। यही बात उन्हें सदी के सबसे व्यावहारिक कवियों में से एक बना देती है।
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