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सुलग रहा है श्रीनगर, कश्मीर में पाकिस्तान का आतंकी एजेंडा चलाने वालों को फांसी दो

कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकी (चित्र सौजन्य- गूगल)

घाटी में आतंकवादियों को एक बार फिर समर्थन और आश्रय कौन दे रहा है? 1993 जैसी घटनाएं फिर से क्यों होने लगीं है? पहले कश्मीरी मजदूरों और फिर दूसरे प्रदेशों से आए लोगों की चुन-चुन कर हत्याएं क्यों होने लगी हैं? श्रीनगर से अब ये आवाज क्यों उठने लगी है,  कश्मीर में पाकिस्तान का आतंकी एजेंडा चलाने वालों को पालो मत, फांसी दो!

पाकिस्तानी आतंकियों को श्रीनगर में बैठे भेड़िये दिखा रहे रास्ता

ये इन जैसे तमाम सवाल हैं जो 5 अगस्त 2019 के बाद एक बार फिर कौंधने लगे हैं। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के हालात सुधर रहे थे। आतंकी वारदातों में कमी आ रही थी। कश्मीर देश के बाकी हिस्सों के साथ विकास की राह पर चलने लगा था। जेलों और हाउस अरेस्ट से बाहर आए महबूबा मुफ्ती सरीखे नेताओं ने आतंकियों और पाकिस्तान की भाषा बोलनी शुरू कर दी। यह माना जा सकता है कि कुछ सिरफिरों ने महबूबा मुफ्ती की तकरीरों से दुस्साहस करने की हिमाकत की होगी। यह भी माना जा सकता है कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से कुछ सिरफिरों को फिदाईन बनने का कीड़ा जागा होगा, लेकिन निर्दोष लोगों को चुन-चुन कर मारने की रणनीति बनाने वाले कोई और हैं। कश्मीर में 370 हटने के बाद बनी फिजा को बिगाड़ने की साजिश केवल पाकिस्तानी आतंकी नहीं कर सकते। ऐसा अहसास होता है कि पाकिस्तानी आतंकियों को न्यौता भेड़ की खाल पहन कर कश्मीर की प्रशासनिक मशीनरी कश्मीरी समाज में बैठे भेड़ियों ने दिया है। उन्हीं के इशारे और दिखाए रास्ते से आतंकी कश्मीर में घुस रहे हैं और निर्दोषो की हत्या कर रहे हैं।

प्रशासनिक तंत्र, स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी और सिविल सोसाइटी में आतंकियों के समर्थक

भेड़ की खाल में बैठे ये भेड़िये कौन हैं, कश्मीर की प्रशासनिक मशीनरी के अलावा ये भेड़िये इंटेलिजेंसिया, एकेडमिया और सिविल सोसाइटी में भी बैठे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार को इन भेड़ियों की जानकारी न हो या सरकार इन्हें पहचानती न हो। कश्मीरी पंडितों और कश्मीर के अमन पसंद वाशिंदों की भी यह आपत्ति है कि सरकार इन भेड़ियों को क्यों पाल रही है। इन भेड़ियों की संख्या 10-20 नहीं है। ये संख्या हजारों में है। ये भेड़िए भारत सरकार खजाने से तनख्वाह ले रहे हैं लेकिन मुलाजमत पाकिस्तान परस्त आतंकियों या आईएसआई की करते हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद ये लोग पर्दे के  पीछे चले गए थे। लेकिन धीरे-धीरे ये फिर सतह पर आने लगे हैं। राज्यपाल का सलाहकार और श्रीनगर का मण्डलायुक्त रहे बशीर अहमद खान उन संदिग्धों में से एक है, जिस पर आरोप है कि आतंकियों को हथियार सप्लाई में इनका हाथ हो सकता है। बशीर अहमद खान इसी महीने 5 अक्टूबर तक राज्यपाल का सलाहकार था। कश्मीर की विकास योजनाएं बनाना ही उसकी जिम्मेदारी थी।

हजारों चिन्हित संदिग्धो में से अभी तक सिर्फ 11 पर कार्रवाई- बड़ा सवाल

हुर्रियत नेता मरहूम सैयद अली शाह गिलानी का एक बेटा शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है। उस पर आतंकियों और अलगाववादियों को मदद करने का आरोप है। गिलानी का पोता अनीस उल इस्लाम पर तो आतंकियों को मदद के आरोप सीधे-सीधे साबित भी हो चुके लेकिन सरकार बमुश्किल तमाम उसे गिरफ्तार कर पाई। कश्मीर की केंद्र शासित सरकार अभी तक सिर्फ उन 11 संदिग्धों को गिरफ्तार कर पाई है जो खुले आम अलगाववाद और आतंकवाद को पाल-पोष रहे हैं।

आतंकी सरगना सलाउद्दीन का कुनबा खाता भारत की है और राग पाकिस्तानी गाता है

सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि सैयद सलाउद्दीन जैसे आतंकी सरगनाओं का परिवार भारत में रह रहा है। यहां वो आजाद रह कर सलाउद्दीन के एजेंडे को आगे बढा रहे हैं। दुनिया के पर्दे पर भारत के अलावा शायद ही कोई ऐसी सरकार होगी जो आतंकी सरगनाओं के परिवारों को पाल रही हों। शायद इस उम्मीद में कि उनको अक्ल आ जाए और वो आतंक का रास्ता छोड़कर देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाएं। हालांकि, भारत सरकार को अभी तक इन आतंकी सरगनाओं के परिवारीजनों ने जख्मों के अलावा कुछ नहीं दिया है। एनआईए ने अभी कुछ दिन पहले ही सलाउद्दीन के बेटों को आतंक फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया है।

सिर्फ औपचारिकता न बन जाए समीक्षा और स्क्रीनिंग कमेटी

कश्मीर में अमन-चैन के लिए कुर्बानी देने वाले कश्मीरियों में रोष इस बात का है सरकार उन लोगों को इंसाफ के कटघरे में क्यों नहीं खड़ा कर रही जो प्रशासनिक मशीनरी में भी हैं और आतंकियों की मदद भी कर रहे हैं। कश्मीरियों के इसी रोष को देखते हुए उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों सहित स्कूल-कॉलेजों-यूनिवर्सिटीज में एकेडेमिक-नॉन एकेडेमिक स्टाफ की स्क्रीनिंग के लिए कमेटी का गठन किया है। ये कमेटी उन लोगों की पहचान कर कार्रवाई करेगी जो आतंक और अलगाववाद का किसी भी रूप में समर्थन करते हैं।  

जम्मू-कश्मीर की केंद्र शासित सरकार जो भी कर रही है वो अपनी योजना के अनुसार कर रही होगी, मगर सच यह है कि इस योजना में खामियां हैं। हाल ही में हुई हत्याओं ने इन खामियों को उजागर भी किया है।