Hindi News

indianarrative

Ukraine-Russia: पाक PM Imran Khan की राह पर यूक्रेन के राष्ट्रपति Zelensky, एक हाथ में समझौता वार्ता दूसरे हाथ में हथियार!

Zelensky जंग रोकने की कोशिश या जेलेंसकी की नई मिमिक्री

जंग की विभीषिका में झुलस रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी ने रूस से समझौता वार्ता के मामले में पाकिस्तान के पीएम इमरान खान जैसा रवैया अख्तियार कर लिया है। जेलेंसकी बार-बार कहते हैं कि वो पुतिन के साथ वार्ता के लिए तैयार हैं। लेकिन वार्ता की तैयारी शुरू होते ही कहने लगते हैं कि हम रूस की शर्तें नहीं मानेंगे। रूसी राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि जेलेंसकी न केवल सार्वजनिक तौर पर वचन दें बल्कि अपनी संसद में प्रस्ताव पास करें कि यूक्रेन नाटो का मेंबर नहीं बनेगा। रूसी हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा और पश्चिमी देशों के हथियार यूक्रेन में तैनात नहीं होंगे। पुतिन ने आजाद घोषित किए डोनाबास और क्रीमिया को भी मान्यता देने की शर्त रखी है।

सीएनएन के संवाददाता आरिफ जकारिया के साथ जेलेंसकी ने कहा है कि वो पुतिन के साथ समझौता वार्ता के लिए तैयार हैं। अगर जेलेंसकी वास्तव में सच बोल रहे हैं और उनकी नीयत में खोट नहीं हैं तो फिर रूस के साथ अब तक हुई समझौता वार्ता नाकाम क्यों रहीं? टर्की में विदेश मंत्री स्तर की समझौता वार्ता के समय ब्रेक थ्रू की संभावना थी। क्यों कि राष्ट्रपति की वार्ता से पहले यह सबसे हाई प्रोफाइल मीटिंग थी। ऐसा माना जाता है कि हेड ऑफ स्टेट की मीटिंग से पहले विदेश मंत्रियों की बैठक में सारे एजेंडा तय हो जाते हैं, हेड ऑफ स्टेट समझौते पर औपचारिक वार्ता करते हैं। एक दूसरे को समझौता पालन कराने का आश्वासन देते हैं और समझौता पेपर्स पर दस्तखत कर दुनिया के सामने समझौता रख देते हैं।

टर्की में हुई यूक्रेन और रूस के विदेश मंत्रियों की वार्ता के बाद भी ऐसा ही सोचा गया लेकिन ढाक के तीन पात। बैठक निरर्थक साबित हुई। इसके बावजूद एक बार फिर जेलेंसकी ने सीएनएन को इंटरव्यू दिया है कि वो पुतिन से समझौता करना चाहते हैं, लेकिन जेलेंसकी ने यह नहीं बताया कि क्या उन्होंने रूस की शर्तों पर अपनी संसद की स्वीकृति ले ली है। जेलेंसकी ने यह भी नहीं कहा कि वो नाटो में शामिल होने की मांग कभी दोबारा करेंगे या नहीं। अगर जेलेंसकी वास्तव में जंग रोकने और राख के मलवे में ढेर हो रहे यूक्रेन को बचाना चाहते हैं तो फिर यूरोपीय यूनियन और नाटो से सैन्य उपकरणों की सप्लाई न करने का आग्रह क्यों नहीं कर रहे? जेलेंसकी समझौते का प्रोपेगण्डा करने के बजाए नाटो सेनाओं को रूस की सीमावर्ती देशों से दूर जाने और वॉर ड्रिल रोकने की अपील क्यों नहीं करते? जेलेंसकी अपने लोगों और फौजियों को अनावश्यक शहादत से बचाना चाहते हैं तो बार-बार नाटो और यूरोपीय देशों से हथियार और लड़ाके भेजने की गुहार क्यों लगाते हैं? आखिरी बात, जेलेंसकी कुछ ऐसा क्यों नहीं करते जिससे रूस को भरोसा हो कि समझौता वार्ता की पेशकश जेलेंसकी का गंभीर प्रयास है।

 

एक तरफ जेलेंसकी विदेशी मीडिया में खुद को निर्दोष और शांति का मसीहा, अपने देश का हीरो बनना चाहते हैं तो दूसरी ओर पुतिन को युद्ध अपराधी, निरंकुश-क्रूर तानाशाह साबित कर रहे हैं। अगर जेलेंसकी को शांति स्थापित करनी है। यूक्रेन को  पुनर्स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें राष्ट्र के नाम संबोधनों में पुतिन और रूस के प्रति नरमी दिखानी होगी। अपने लिए न सही, बर्बाद होते यूक्रेन और कीव को बचाने के लिए तेवरों को ढीला करने पड़ेगा। सीएनएन और एनबीसी या एबीसी को इंटरव्यू देकर यूक्रेन या कीव को बचाना नामुमकिन है।

ध्यान देने वाली सबसे खास बात यह है कि जेलेंसकी ने अपने ही देश के विपक्षी पार्टियों और विपक्षी नेताओं पर पाबंदियां लगा दी हैं। मतलब यह कि जेलेंसकी के किसी फैसले का विरोध करने वाले को कड़ी सजा का सामना करने पड़ेगा। यूक्रेन का कोई भी शख्स अगर जेलेंसकी की नीति और नीतियों पर सवाल उठाता है तो उसे देशद्रोही साबित कर दिया जाएगा और बिना किसी सुनवाई के उनको मौत की सजा यानी गोली मारी जा सकती है। जेलेंसकी का यह रवैया दिखाता है कि वो समझौते का ड्रामा कर रहे हैं। जब उन्हें अपने ही लोगों की आलोचना पसंद नहीं तो वो पुतिन के कटु वचन कैसे सहेंगे, मतलब यह कि जेलेंसकी का समझौता प्रस्ताव महज एक ड्रामा है। वो पश्चिमी देशों के हाथ की कठपुतली हैं। यूक्रेन या कीव बर्बाद हो जाए तो हो जाए। हजारों निर्दोष यूक्रेनी उनके छद्म राष्ट्रवाद के झांसे में आकर अपनी जान कुर्बान होते रहें, उनपर कोई फर्क नहीं- क्यों कि जेलेंसकी के जिस्म पर तो जंग की एक खरोच भी नहीं आई है!

 

जावेद  बेगृ महासचिवस पीडीएफ