मध्यप्रदेश में 3 नवंबर को होने जा रहे 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में अब नया कोण दिखाई देने लगा है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर अब इस पूरे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की भरपूर कोशिश की है। जानकारों का मानना है कि बसपा अपनी इस कोशिश में बहुत हद तक कामयाब भी हो सकती है। क्योंकि चंबल-ग्वालियर इलाके की उत्तर प्रदेश से लगी हुई कई सीटों पर बसपा की मजबूत पकड़ है और वह भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने में सक्षम भी है।
अब तक कांग्रेस ने भी 24 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है जबकि इस मामले में अभी तक भाजपा सबसे पीछे है। उसके उम्मीदवारों की घोषणा होना अभी बाकी है। राज्य की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होनेवाले हैं उस में से 16 सीटें चंबल-ग्वालियर इलाके में आती हैं। इस इलाके में बसपा का अपना जनाधार और एक ठोस वोट बैंक है। इस क्षेत्र की कई विधानसभा सीटों से बसपा के उम्मीदवार पहले भी जीत चुके हैं। इसके अलावा कई विधानसभा क्षेत्रों में बसपा को काफी अधिक वोट भी मिलते रहे हैं।
चंबल इलाके में दलित जातियों में राजनीतिक जागरूकता का अंदाजा सन् 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ भड़की हिंसा से उभर कर सामने आया था। बसपा का सबसे बड़ा रणनीतिक बदलाव यह है कि पहले कभी भी उपचुनाव में हिस्सेदारी नहीं करने वाली पार्टी ने इस बार पूरी ताकत से उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। क्योंकि कांग्रेस ने बसपा के कुछ नेताओं को अपने पक्ष में तोड़कर उसके जनाधार में घुसपैठ करने की कोशिश की है। कांग्रेस ने इस बार जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है उनमें से तो कई बसपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव भी लड़ चुके हैं।
बसपा के कार्यकर्ता और नेता कांग्रेस और भाजपा दोनों से नाराज हैं। कांग्रेस ने बसपा के नेताओं को तोड़ने की कोशिश की है और इसमें काफी हद तक सफल भी रही, जबकि भाजपा पर बहुजन समाज की उपेक्षा का आरोप बसपा नेता लगाते रहे हैं। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मध्य प्रदेश में बसपा जब भी मजबूत होती है, तो कहीं न कहीं से उसमें टूट हो जाती है और वह फिर कमजोर हो जाती है। इसलिए इस बार बसपा ने अपनी पूरी ताकत उपचुनाव में झोंक कर अपनी दमदार उपस्थिति का एहसास कराने का निर्णय कर लिया है।
(एजेंसी इनपुट के साथ).
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