अफगानिस्तान (Afghanistan) में जब तालिबान सरकार की वापसी हुई तो वहां के लोगों में ये डर सताने लगा कि उसके आते ही क्रूर कानूनों की भी वापसी होगी और हुआ भी वही। तालिबान ने शुरूआत में आते ही जमकर आतंक मचाया। एक ओर वो दुनिया के सामने ये कहता रहता कि वो पहले जैसा नहीं है बदल चुका है। तो वहीं, दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कई सारे वीडियो सामने आए जो तालिबान का पोल खोले। तालिबान महिलाओं को लेकर 20 साल पहले भी सख्त था और अब भी। अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता में आने से पहले उसने वादा किया था कि वो महिलाओं के अधिकार को नहीं छीनेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। महिलाओं को बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया, घर से बाहर पुरुष के साथ ही निकल सकती है, सरकारी कार्यलयों में काम सीमीत कर दिया। यहां तक कि अब अफगानिस्तान (Afghanistan) में लड़कियां सिर्फ कक्षा 7 तक ही पढ़ सकती हैं। इसके आगे उन्हें इजाजत नहीं है। ऐसे में अब अपनी जान जोखिम में डाल कर लड़कियां सीक्रेट स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं।
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अफगानिस्तान में महिलाओं पर हद से ज्यादा प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसमें उनके काम करने और स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई। हालांकि इस मुश्किल घड़ी में कुछ लड़किया ऐसी भी हैं, जो अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। अफगानिस्तान में तालिबान शासन द्वारा कक्षा 7 और उससे ऊपर की लड़कियों के लिए स्कूल को बंद करने के ऐलान के बाद यहां पढ़ाई का जुनून कम नहीं हुआ। राजधानी काबुल में कई ऐसे ‘सीक्रेट स्कूल’ हैं, जहां लड़कियां और महिलाएं पढ़ने के लिए आती हैं। यहां एक 26 लोगों की क्लास में अलग-अलग उम्र की महिलाएं हैं, जिनमें तीस साल की एक महिला भी शामिल है। इन्हें 1996 से 2001 तक पहले तालिबान शासन के दौरान अपनी चौथी कक्षा में स्कूल छोड़ना पड़ा था और उनकी बेटी को इस साल कक्षा आठ में जाना था, लेकिन मार्च के बाद से ही स्कूल बंद हैं।
महिला का कहना है कि, वो उसके बाद कभी स्कूल नहीं जा सकी। वो यहां इसलिए आई है क्योंकि वो फिर से पढ़ाई-लिखाई करना चाहती है। महिला कहना है कि, मैं कुछ योग करने में सक्षम हूं, ताकि मैं अपने बच्चों को पढ़ा सकूं। उनकी बेटी कहती है कि उसे कक्षा बहुत बुनियादी लगती है, लेकिन उन्होंने अपने स्कूल में जो सीखा है उसे वह भूलना नहीं चाहती। मुझे यहां अन्य लड़कियों से भी मिलने का मौका मिलता है, जैसे मैं स्कूल में हुआ करती थी। घर में रहने से ज्यादा यहां मजा आता है। उसने बताया कि वह बड़ी होकर एक टीचर बनना चाहती है। यह स्कूल हर दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक एक दाई के पहली मंजिल के घर में आयोजित किया जाता है, जिसके पास शिक्षा में स्नातक की डिग्री है। यहां लड़कियों के लिए बैठने की जगह बनाने के लिए फ्रिज को साइड कर दिया गया है और वहां कालीन बिठा दी गई है।
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वहीं, अध्यापिका का कहना है कि, जब वो पहली बार शुरुआत की तो कुछ ही लड़कियां थी लेकिन, ये बात फैल गई और ऐसा लग रहा है कि उन्हें यहां पर जल्द ही लड़कियां और महिलाएं की संख्या 40 हो जाएगी। जिसकी बाद उन्हें एक और क्लास शुरू करने की जरूरत हो सकती है।
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