रूस ने जब यूक्रेन पर सैन्य अभियान चला रहा है तो पश्चिमी देश पुतिन को आतंकी और इसे जंग कह रहे हैं। जबकि सीरीया, अफगानिस्तान, लीबिया के अलावा भी कई अन्य देश हैं जिनपर अमेरिका हमला कर वहां जमकर तबाही मचाई और दुनिया से कहा कि, यह लोगों के हीत में है। पश्चिमी देशों को गंवारा नहीं है कि उनके अलावा कोई दूसरा देश इस तरह का सैन्य ऑपरेशन करे। यही वजह है कि वो यूक्रेन को पूरी तरह से हथियार, गोला-बारूद, फाइटर जेट्स के साथ ही आर्थिक रूप से मदद कर रहे हैं और रूस पर कड़े से कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं। लेकिन, इन पश्चिमी देशों को ये नहीं पता था कि उनके द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध का असर उनपर ही उलटा पड़ेगा। रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का असर खुद पश्चिमी देश झेल रहे हैं और इस वक्त आलम यह है कि यूरोप में महंगाई चरम पर है। यहां तक कि अमेरिका कच्चे तेल की कमी से जूझ रहा है।
दरअसल, अमेरिका में आपातकालीन उपयोग के लिए संग्रहीत कच्चे तेल की मात्रा 35 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है क्योंकि देश में ईंधन की कमी को दूर करने के लिए जो बाइडेन प्रशासन ने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) से कच्चा तेल सप्लाई का फैसला किया था। अमेरिकी ऊर्जा विभाग से मिले आंकड़ों में यह बात सामने आई है। ऊर्जा विभाग की ओर से संग्रहीत तेल पर जारी हालिया आंकड़ों के अनुसार, एसपीआर में कच्चे तेल की मात्रा में इस सप्ताह के दौरान 13 मई तक 50 लाख बैरल की कमी आई है, इससे अब यह गिरकर 53.8 करोड़ बैरल तक पहुंच गई है। यह दिखाता है कि अमेरिका में आपातकालीन इस्तेमाल के लिए कच्चे तेल का भंडार वर्ष 1987 के बाद से सबसे निचले स्तर पर है।
बता दें कि, इस सप्ताह के दौरान 13 मई तक भंडार से निकाले गए 50 लाख बैरल में से कुछ 39 लाख बैरल निम्न स्तर का कच्चा तेल था जबकि बाकी 11 लाख बैरल उच्च स्तर का कच्चा तेल था। निम्न स्तर का कच्चा तेल मध्यम किस्म का तेल होता है जिसमें सल्फर की मात्रा अधिक होती है और यह उच्च स्तर के कच्चे तेल की तुलना में अधिक चिपचिपा होता है। यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियान के कारण मॉस्को पर अधिकांश पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से कच्चे तेल के निर्यात में भारी कमी आई है। इसके अलावा, कोरोना वायरस महामारी के दौरान कई रिफाइनरियों के बंद होने से भी अमेरिका की तेल शोधन क्षमता में कमी आई है, जिससे समस्या बढ़ गई है। आने वाले दिनों में अमेरिका में पेट्रोल-डीजल के साथ ही घरेलू गैस की कीमतों में भारी उछाल आते दिख सकता है।