लगभग एक हफ्ते तक चली उहापोह के बाद आखिर तय हो ही गया कि जो बाईडेन अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे। इसी के साथ यह भी तय हो गया कि भारतीय मूल की कमला हैरिस वाइस प्रेसिडेंट होंगी। भारतीय मूल के अमेरीकियों ने इस बार ट्रंप के बजाए बाइडेन का समर्थन किया है, इसके पीछे कमला हैरिस एक बड़ा कारण है। ओबामा के कार्यकाल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैमिस्ट्री जितनी ओबामा से मैच करती थी उतनी ही जो बाईडेन से मैच करती थी। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से भारत पर प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
दीपावली के ऐन मौके पर अमेरिका में बदलाव भारत के लिए क्या खुशखबरी लाने वाला है यह आने वाले कुछ दिनों में दिखाई दे जाएगा। हालांकि, अमेरिकी प्रशासन अधिकारिक तौर 20 जनवरी 2021 ट्रंप के निर्देशों को ही मानने को विवश रहेगा, लेकिन ट्रंप की कार्यवाही और कार्रवाई पर उंगली उठाने का संवैधानिक अधिकार प्रेसिडेंट (इन वेटिंग) जो बाइडेन को मिल गया है। अमेरिका में सत्ता के स्थानांतरण के यह 72 दिन बाकी दुनिया के अलावा भारत के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं। क्योंकि एक तरफ एलएसी पर चीन के साथ संबंध बेहद तनाव भरे हैं और गिलगिट बालटिस्तान में पाकिस्तान चुनाव करवा रहा है। कश्मीर से लगी एलओसी के अलावा पंजाब-राजस्थान से लगती जमीनी सीमा के अलावा समुद्री सीमा पर पाकिस्तान का उपद्रव बढ़ने की आशंका है। इसके साथ ही अगर ईरान पर बाईडेन ने ओबामा की नीतियों का अनुसरण किया तो भारत के चाहबहार प्रोजेक्ट में प्रगति होगी। ईरान पर चीन के प्रभाव में भी कमी आ सकती है।
पूरी दुनिया इस समय एक संक्रमण काल से गुजर रही है। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक निर्णायक मोड़ देने वाला है। डोनल्ड के चुनाव हारने से जहां चीन, ईरान और नॉर्थ कोरिया को फौरी राहत और खुशी है। दुनिया भर में फैले उनके आलोचक हैं। अमेरिकी मीडिया भी खुश है लेकिन इन सब के बीच विचार करने वाली बात यह है कि क्या डोनल्ड की  'अमेरिका फर्स्ट' नीति को अमेरिका ने ही स्वीकार क्यूं नहीं किया। इस सवाल का जवाब अमेरिका के भीतर से ही आना चाहिए और अमेरिकी मीडिया को ही देना चाहिए।
पिछले चार सालों में हमेशा यह प्रतीत होता रहा कि अमेरिकी मीडिया की बाध्यता है कि वो ट्रम्प को राष्ट्रपति स्वीकार करे। अनेक विरोधाभासों के रहते हुए भी अमेरिकी मीडिया ट्रंप के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों को जो सम्मान देता रहा वो सम्मान ट्रंप को नहीं मिला। यह भी अमेरिका की अपनी समस्या है, लेकिन इस समस्या से भारत के हित भी प्रभावित हुए हैं। डोनल्ट ट्रंप के भारत के प्रति कथित लगाव के कारण अमेरिकी मीडिया ने भारत के बारे में अपुष्ट और अनाधिकृत  खबरों का प्रसारण और प्रकाशन किया। ऐसा पहले भी होता रहा लेकिन ओबामा के कार्यकाल में अमेरिकी मीडिया ने भारत के बारे में जिम्मेदारी दिखानी शुरू की थी वो ट्रंप के कार्यकाल में बिल्कुल खत्म हो गई। अमेरिकी मीडिया ने ट्रंप के साथ भारत को भी निशाना बनाया। शायद इसलिए कि ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तिगत रिश्ते ज्यादा मुखर रहे। मोदी के रिश्ते तो ओबामा के साथ भी मुखर थे, किंतु ओबामा के साथ अमेरिकी मीडिया सहज था इसलिए भारत के प्रति भी सहजता देखने को मिली। अमेरिकी मीडिया ट्रंप के साथ सहज नहीं रहा और उसकी कीमत भारत को भी उठानी पड़ी।
बहरहाल, 20 जनवरी 2021 से कैपिटल हिल एक बार फिर ब्लू वेब डूब जाएगा। भारत के संबंध किसी भी राष्ट्र से परस्पर हितों की रक्षा के आधार पर रहें हैं, इसलिए कैपिटल हिल ब्लू वेब में डूबी हो या रेड वेब में कोई फर्क नहीं पड़ता। अमेरिका के हित भारत के हितों को सरंक्षण करने में ही है। जो बाईडेन यह अच्छी तरह से जानते हैं कि इंडिया पैसिफिक रीजन से लेकर मध्य एशिया तक, आतंकवाद से लेकर व्यापारवाद तक भारत और अमेरिका के संबंधों में परस्पर हित जुड़े हुए हैं। इन चुनावों के दौरान ओबामा ने जिस तरह जो बाईडेन के प्रचार का जिम्मा थामा उससे लगता है कि बाईडेन के प्रशासन पर ओबामा की नीतियां प्रभावित रहेंगी। कश्मीर पर भारत के रुख को समर्थन देना भी अमेरिका की बाध्यता रहेगी, क्योंकि पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी प्रशासन में जो बदलाव आया वो ट्रंप के कार्यकाल की देन नहीं बल्कि ओबामा या उनके पूर्ववर्तियों की देन रही है। पाकिस्तान आतंकी चेहरा और अच्छी तरह से दुनिया ने देखा है। अमेरिकी और यूरोप के मीडिया ने भी देखा और समझा है।
कूटनय जगत में शंका पैदा हुई कि क्या जो बाइडेन भारत के प्रति वैसा ही रवैया रखेंगे जैसा ट्रम्प ने रखा था या नहीं। चीन और पाकिस्तान के साथ विवाद पर जो बाइडेन की क्या नीति रहेगी? क्या बाइडेन अमेरिका की भारत नीति में कोई परिवर्तन करेंगे? क्या क्वाड का भविष्य जो बाइडेन की नीतियों से प्रभावित होगा? ऐसे तमाम सवाल हैं जो भारतीयों के भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर उठे नाहक विवादों की गहराई में अगर जाकर बाइडेन ने सोचा तो भारत को कोई अमेरिका से कोई दिक्कत नहीं होगी।
पाकिस्तान और चीन के साथ नीतियों में भी बदलाव की संभावना कम ही है। एक बात यह भी है कि अमेरिका की नीतियों पर राष्ट्रपति का व्यक्तिगत प्रभाव तो होता है लेकिन नीतियों का आधार अमेरिकी थिंक टैंक ही तय करता है। उसी दायरे के भीतर किसी भी राष्ट्रपति को चलना होता है। चीन की विस्तारवादी और पड़ोसियों के साथ आक्रामक नीति का विरोध अमेरिकी थिंक टैंक ने किया है। कोरोना पर चीन का विरोध अकेले ट्रम्प की मनमानी नहीं है। ट्रम्प के विभिन्न व्यक्तिगत प्रोजेक्ट्स में चीनी बैंकों का पैसा लगा हुआ है। अगर ट्रम्प को व्यक्तिगत आधार पर चीन नीति बनानी होती तो शी जिनपिंग और ट्रम्प में कभी का समझौता हो गया होता। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से व्यक्तिगत रिश्तों के बावजूद रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध ट्रम्प ने लगाए। पाकिस्तान के बारे में अमेरिकी नीति में कोई परिवर्तन की संभावना नहीं है। बल्कि आतंकवाद को लेकर बाइडेन पाकिस्तान के लिए ज्यादा सख्त हो सकते हैं।
क्वाड का गठन (अमेरिकी, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन) प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को बनाए रखने और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किया गया है। कोई भी राष्ट्रपति इस नीति को आगे बढ़ाएगा। इसलिए यह कहना है कि बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से भारत के हितों को नुकसान होगा तो उसकी संभावना कम है। भारत, अमेरिका की जरूरत है। भारत को किसी भी तरह उपेक्षित करने से अमेरिकी हित प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
इन सबसे अलग भारत के सेकेंड लाइन डिप्लोमैट्स ने काफी पहले से ही बाइडेन खेमे से सम्पर्क बनाकर रखा है। उनकी जीत की संभावनाएं बढ़ते ही भारत की डिप्लोमैटिक गतिविधियां और तेज कर दी गईं। ऐसा बाताया जाता है कि ओबामा और हिलेरी क्लिंटन के साथ भारतीय प्रतिनिधियों का सतत सम्पर्क रहा है। जिनका लाभ 20 जनवरी के बाद भारत को मिलने की संभावना है। बाइडेन के राष्ट्रपति बनने और भारत की अमेरिकी नीति में कमला हैरिस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं और वो बाइडेन के शासन में उप राष्ट्रपति होंगी। भारत के दृष्टिकोण से कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति होना सकारात्मक संकेत हैं।
पश्चिम और मध्य एशिया में कुछ शक औऱ संशय की स्थिति हो सकती है। क्योंकि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान और ट्रम्प के दामाद जेड कुशनर के बीच खासी दोस्ती थी। इस दोस्ती से ट्रम्प के कई फैसले प्रभावित रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प का सऊदी अरब को पहले विदेशी दौरे को चुनने के पीछे जेड कुशनर और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के संबंध ही बताए गए थे। अरब देशों के साथ इजराइल के नए संबंधों के पीछे भी जेड कुशनर का दीमाग बताया गया। बाइडेन भी इजराइल और अरब देशों से अपने संबंधों को यथावत रखना चाहेंगे मगर बाइडेन के तरीकों में थोड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
 
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