दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (China) अब गहरे संकट में है। चीन का 40 साल का ग्रोथ मॉडल चरमरा गया है। यह बात अमेरिका के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ने अपनी खबर में कही है। वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजी) ने रविवार (20 अगस्त) की अपनी खबर में लिखा, अर्थशास्त्री अब मानते हैं कि चीन बहुत धीमी वृद्धि के युग में प्रवेश कर रहा है। अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ बढ़ती दूरियों से स्थिति और खराब हो गई है, जो विदेशी निवेश व व्यापार को भी खतरे में डाल रहा है। खबर में कहा गया कि यह केवल आर्थिक कमजोरी का दौर नहीं है बल्कि इसका असर लंबे समय तक दिख सकता है।
चीन (China) अभी भी पूरी दुनिया में वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग का हब बना हुआ है। लेकिन, चीन की पुरानी होती इंडस्ट्री और बूढे वर्कफोर्स ने भारत को एक एडवांटेज दे दिया है। भारत लगातार वैश्विक निर्माताओं को अपने देश में निवेश करने के लिए मना रहा है। इसके अलावा भारत के पास काफई बड़ी संख्या में कार्यबल भी है, जिसने अपने काम की बदौलत खुद को दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते देश के रूप में स्थापित किया है। इसमें चीन के बिगड़ते विदेशी संबंधों ने भी बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। अमेरिका के साथ चीन के व्यापार युद्ध ने पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। यहां तक कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सहयोगियों के साथ इसके संबंधों पर भी असर पड़ा है।
हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों ने संकेत दिया है कि चीन मंदी के एक लंबे चरण में प्रवेश कर रहा है। आशंका है कि चीन की यह मंदी दशकों नहीं तो वर्षों तक चल सकती है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बार मंदी सिर्फ आर्थिक कमजोरी का दौर नहीं है और यह सचमुच चीनी अर्थव्यवस्था को तोड़ सकती है। आशंका है कि इस मंदी के कारण चीन की अर्थव्यवस्था कम से कम 25 फीसदी तक सिकुड़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो इसे चीन के लिए बड़ी त्रासदी के तौर पर देखा जाएगा। मंदी आने से चीन को अपने तमाम विकास कार्यों को रोकना पड़ेगा, जिसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव भी शामिल है।
चीन(China) जिस जोखिम का सामना कर रहा है उसका एक हिस्सा उसके कर्ज में भारी वृद्धि से संबंधित है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 की पहली तिमाही में चीन का कुल डेब्ट टू जीडीपी अनुपात 279 प्रतिशत था। इसके अलावा, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार और राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर चीन का कुल कर्ज 2022 तक देश की जीडीपी का लगभग 300 प्रतिशत हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह उच्च ऋण वर्षों से बुनियादी ढांचे और संपत्ति बाजार में अत्यधिक निवेश के साथ-साथ घटती मांग और बढ़ती कीमतों का परिणाम है।
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