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फ्रांस का फिर तालिबान के मुंह पर तमाचा, कहा- पहले अपने रवैये को सुधारे चरमपंथी संगठन

फ्रांस का फिर तालिबान के मुंह पर तमाचा

अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा करने के बाद से दुनियाभर से समर्थन करने के लिए कहा रहा है। तालिबान का कहना है कि वो अब पहले की तरह नहीं रहा अब वह लोगों की बेहतरी के लिए काम करेगा लेकिन तालिबान जरा भी नहीं बदला है। यहां तक कि तालिबान अफगानिस्तान में फिर से शरिया कानून लागू करने लगा है। इस बीच तालिबान के रवैये को देखते हुए फ्रांस ने कहा है कि वह चरमंथी सरकार को मान्यता नहीं देता है बल्कि देश को मान्यता देता है।

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भारत में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनिन ने कहा है कि उनका देश सरकार को मान्यता नहीं देता है, बल्कि वो देश को मान्यता देता है। फ्रांस तालिबान के रवैये के अनुसार उसे मान्यता देने पर विटार करेगा। अपने एक बयान में उन्होंने कहा कि, मेरे देश की एक स्थिति है। हम सरकार को कभी मान्यता नहीं देते हैं, बल्कि हम देश को मान्यता देते हैं। ऐसे में ये इस बात पर निर्भर करेगा की तालिबान हमारी मांगों को कैसे पूरा करता है, क्योंकि अभी तक तालिबान इस दिशा में नहीं बढ़ा है।

इससे पहले रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि, तालिबान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता फिलहाल मेज पर नहीं है। उन्होंने कहा कि, वर्तमान में तालिबान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता का सवाल मेज पर नहीं है। इसके आगे उन्होंने कहा कि, वे तालिबान के संपर्क हैं और ये अत्यंत महत्वपूर्ण है कि तालिबान अपने वादों को पूरा करे। पिछले हफ्ते लावरोव ने कहा था कि कोई भी देश अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा हाल ही में गठित कार्यवाहक सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता देने की जल्दी में नहीं है।

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फ्रांस और रूस के विदेश मंत्री के अलावा भारत में जर्मन राजदूत वाल्टर जे लिंडनर ने भी कहा है कि, हमारी एक शर्त ये है कि तालिबान को वहां पर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को बढ़ावा देने से रोकना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, आतंक को पाकिस्तान द्वारा बढ़ावा दिए जाने से भी रोका जाना चाहिए। हमारा ये संदेश अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों के लिए है। इसके साथ उन्होंने कहा कि, हम भारत के उस डर को साझा करते हैं कि तालिबान की इस जीत से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को बढ़ावा मिल सकता है और ऐसा नहीं होना चाहिए। इसलिए अभी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक ये है कि भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए। तालिबान से बात करने की एक शर्त ये भी है कि वहां पर आतंक को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए।