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India और China की अगर हो गई दोस्ती को अमेरिका के लिए मुसीबत!

India और China की संबंध अच्छे हुए तो अमेरिका के लिए मुसीबत!

India और China के बीच अगर संबंध अच्छी रही और दोनों मुल्कों के बीच दोस्ती हो गई तो दुनिया के राजनीतिक हल्के में बड़ा बदलाव हो जाएगा। ये संभावनाएं जताई है ब्रिटेन की साप्ताहिक मैगजीन ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपने आर्टिकल में। द इकोनॉमिस्ट में एक आर्टिकल में भारत और चीन की दोस्ती के बाद जो स्थिति बनेगी उसकों लेकर चर्चा की गई है। इस मैगजीन में छपी खबरों में संभावनाएं जताई गई है कि अगर दोनों देशों के बीच दोस्ती हो जाती है तो सीमा विवाद का हल भी आसानी से हो जाएगा,साथ ही भू-राजनीति में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

China और India  दो ऐसे देश हैं जिनके बीच अक्सर सीमा विवाद रहता है। साल 1962 में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की वजहों से युद्ध लड़ा जा चुका है। ऐसे में ब्रिटेन की वीकली नैगजीन द इकोनॉमिस्ट ने अपने एक संपादकीय में उन संभावनाओं का जिक्र किया है कि अगर दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे हो जाते हैं तो क्या होगा? इस संपादकीय के मुताबिक दोनों देशों के बीच द्रुत गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था  अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए मुसीबत बन सकती है। ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों का भी जिक्र किया है।

दोनों देशों की आर्थिक संबंध बढ़ती है तो अमेरिका के लिए मुसीबत

द इकोनॉमिस्ट में छपी संपादकीय जिसका शीर्षक है ‘क्या होगा अगर चीन और भारत दोस्त बनेगा?’ इस शीर्षक से छपी संपादकीय में लिखा हुआ है कि चीन के शासक अक्सर भारत को नीची निगाहों से देखते हैं। इस तरह की मानसिकता अशांत राजनीति,इसके चरमराते बुनियादी ढांचे औऱ इसकी गरीबी की वजह से इसका तिरस्कार करते आए हैं। लिहाजा भारत भी एक डर और ईर्ष्या के साथ उस पर नजर रखे हुए है।

LAC पर बढते तनाव के बावजूद आर्थिक संबंध बढ़े

वहीं, द इकोनॉमिस्ट उम्मीद भरी निगाहों से देखता है कि भारत के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाएगा। इस लेख की माने तो हिमालय के पार संबंधों की परिभाषा अब बदल रही है। हाल के दिनों में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर खूनखराबा भी बढ़ा है और यह दुश्‍मनी की तरफ इशारा करता है। लेकिन यह भी सही है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध एक अलग कहानी गढ़ रहे हैं,जो अमेरिका और उसके हितैशी देशों को परेशान कर सकती है।

मौजूदा परिस्थिति में बदल रही है स्थिति

इतना ही नहीं द इकोनॉमिस्ट ने अपने लेख में उन बातों का भी जिक्र किया है जिसमें अप्रैल 1924 में सम्मानिक कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा और उनको मिले नोबेल पुरस्कार मिला था। संपादकीय के मुताबिक उस समय चीनी बुद्धिजीवी प्रभावित नहीं हुए थे।साल 1947 में आजादी के समय भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी, चीन से ज्‍यादा थी। लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत तक चीन उस और बाकी कई उपायों पर आगे बढ़ चुका था। साल 2022 तक उनकी आबादी लगभग बराबर थी लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था तीन गुना से भी ज्‍यादा बड़ी थी।

दोनों देशों की करीबी अमेरिका के लिए ठीक नहीं

इस मैगजीन का कहना है कि दोनों देशों के बीच अक्सर होने वाली टकराव और आर्थिक मोर्चे पर चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के बाद भी चीन-भारत के संबंधों के बुनियादी सिद्धांत अब बदल रहे हैं। दोनों देशों के बीच की दोस्ती की संभावनाएं अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए सुखद नहीं हो सकती है।वहीं, एशियाई देशों के लिए दोनों देशों के बीच अगर दोस्ती के नए आयाम लिखे गए तो अमेरिका के साथ-साथ कई यूरोपियन कंट्री के लिए आने वाले दिनों में एक चुनौति होगा,वहीं,दोनों देशों के लाभप्रद रिश्ते की दिशा में अधिक यथार्थवादी रास्‍ता हो सकता है।

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