अजित डोभाल के एक दांव से चीन और पाकिस्तान दोनों चित हो गए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बावजूद डोभाल ने कहा कि काबुल भारत का महत्वपूर्ण साझीदार है, महत्वपूर्ण साझीदार था और महत्वपूर्ण साझीदार रहेगा। डोभाल के इस बयान से पाकिस्तान सरकार और आईएसआई के कानों से धुएँ निकल रहे हैं और चीन बिलबिला कर रह गया है। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में रीजन सिक्योरिटी डायलॉग के दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा कि भारत हमेशा से ही काबुल का एक महत्वपूर्ण साझेदार रहा है और भविष्य में भी रहेगा। डोभालने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में ‘अफगानिस्तान पर चौथे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद’ में कहा कि आतंकवाद और आतंकवादी समूह क्षेत्रीय सुरक्षा तथा शांति के लिए बड़ा खतरा हैं, इसलिए सभी देशों को इसका मुकाबला करने के लिए अफगानिस्तान की मदद करनी चाहिए।
डोभाल ने कहा, ‘अफगानिस्तान के लोगों के साथ सदियों से भारत के विशेष संबंध रहे हैं और कैसी भी परिस्थितियां हों, भारत का दृष्टिकोण अफगानिस्तान को लेकर नहीं बदल सकता।’ अफगानिस्तान पर चौथे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद की बैठक में ताजिकिस्तान, रूस, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान, किर्गिजस्तान और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने भी हिस्सा लिया। डोभाल समेत विभिन्न देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने तथा आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए रचनात्मक तरीके खोजने की जरूरत को रेखांकित किया।
डोभाल ने कहा, ‘आतंकवाद और आतंकवादी समूहों का मुकाबला करने के लिए अफगानिस्तान की क्षमता बढ़ाने में, क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में मौजूद सभी देशों के सहयोग की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा कि सबसे पहली प्राथमिकता अफगानिस्तान में सभी लोगों के जीवन के अधिकार की रक्षा और सम्मानजनक जीवन के साथ-साथ उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मानवीय सहायता सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत सभी दायित्वों का निर्वहन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।’
दुशांबे में डोभाल की स्पीच के बाद पाकिस्तान की शहबाज सरकार ने काबुल स्थित अपने दूतावास और आईएसआई से रिपोर्ट तलब की है। इस रिपोर्ट में काबुल और काबुल के अलावा अन्य शहरों में भारतीय ठिकानों की जानकारी मांगी गई है। ध्यान रहे, इस समय अफगानिस्तान में भारत का दूतावास नहीं है। भारत का कोई भी कांस्युलेट भी काम नहीं कर रहा है। इसके बावजूद भारत की सक्रिएता और तालिबान पर भारत प्रभाव के कारण जानने के लिए कहा गया है। पाकिस्तान सरकार ने यह भी जानने की कोशिश की है कि तालिबान के आने के बाद भी पाकिस्तान की अफगानिस्तान में कूटनीतिक पराजय क्यों हो रही है।