अंतर्राष्ट्रीय

Tawang में बर्बर हथियारों से लैस थे 300 चीनी सैनिक- सिर्फ 50 भारतीय सैनिक पड़े भारी

PLA Weapons Rod With Nails in Tawang: जून 2020 के बाद चीन ने एक बार फिर से भारत की सीमा में आने की हिमाकत की है। इस बार उसने पूर्वी सेक्टर स्थित अरुणाचल प्रदेश के तवांग (India-China In Tawang) में दाखिल होने की कोशिशें की है। चीन यहां पूरी तैयारी के साथ आया था। अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर पर चीन के करीब 300 सैनिकों ने पूरी तैयारी के साथ खतरनाक हथियार (Pla Weapons Rod With Nails in Tawang) लेकर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। लेकिन, जाबांज भारतीय सैनिकों ने एलएसी पर ही उनका रास्ता रोक दिया। इस दौरान हिंसक झड़प हुई जिसमें दोनों तरफ के सैनिक घायल हुए हैं। चीन की ये एक सोची समझी साजिश थी। चीनी सैनिकों के पास खतरनाक हथियार थे और वे पूरी तैयारी के साथ आये थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी सैनिकों के पास कीलों वाले डंडे (Pla Weapons Rod With Nails in Tawang) से लेकर अन्य कई घातक हथियार थे जिससे गहरी चोट दिया जा सकता है।

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घातक हथियार लेकर आये थे चीनी सैनिक
चीन में इस वक्थ उथल-कूद मची हुई है, जनता सड़कों पर है। ऐसे में ये चीन की चाल है कि वो सीमा पर उलझा कर जनता का ध्यान इधर खींचना चाहती है। द प्रिंट की खबर के मुताबिक, चीनी सैनिकों के पास कीलों वाले डंडे के साथ ही मंकी फिस्ट और टेजर गन जैसे हथियार भी थे। इन हथियारों से किसी की जान तो नहीं जा सकती लेकिन गहरी चोट पहुंचाने के लिए ये काफी हैं। सूत्रों के मुताबकि, अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में एलएसी के पास भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। करीब 300 चीनी सैनिकों को 50 भारतीय सैनिकों ने आगे बढ़ने से रोक दिया था। आधे घंटे के भीतर भारत की बैकअप टीम मौके पर पहुंच गई जिसके बाद यह झड़प हुई।

मंकी फिस्ट से लेकर किलों वाले डंडे लेकर आये थे चीनी सैनिक
भारत-चीन के बीच एक शांति समझौता 1996 में हुआ था, जिसके अनुसार दोनों देश सीमा पर एक-दूसरे पर गोलीबारी नहीं कर सकते हैं। साथ ही LAC से दो कीलोमीटर के अंदर किसी भी तरह की बंदूय या रसायनिक हथियार की भी अनुमित नहीं है। जिसके चलते चीनी सैनिक गहरी चोट पहुंचाने के लिए इस तरह के हथियार लेकर आये था। साथ ही उनके पास मध्यकाली हथियार और दर्द देने वाला कीलों वावा डंडा भी था। जून 2020 में जब गलावन घाटी में हिंसक झड़प हुई तो उस दौरान भी PLA इन्हीं हथियारों को लेकर आई थी। PLA सैनिकों के पास जो मंकी फिस्ट नाम का घातक हथियार था वो लोहे की गेंद या पत्थर से बना होता है जिसे कलाई पर पहना जाता है। साथ ही टेजर गन एक इलेक्ट्रोशॉक हथिया है। इससे निकलने वाला बिजली का झटका सामने वालो को कुछ देर के लिए बेहोस या सुन्न कर देता है। इतने हथियारों के साथ लैस चीनी सेना पहले से ही पूरी प्लानिंग कर के आई थी। लेकिन, भारत के जवानों के आगे नाक रगड़ कर वापस चली गई।

इस लिए करना चाहता है कब्जा
यह घटना तवांग के पास यांगत्से में हुई है। यांगत्से, 17 हजार फीट की ऊंचाई पर तवांग का वह हिस्सा है जिस पर सन् 1962 की जंग के बाद से ही चीन की बुरी नजर है। वह युद्ध के समय से ही तवांग के यांगत्से पर कब्जे के सपने देख रहा है। सेना के सूत्रों की माने तो, यांगत्से को पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) की हमेशा से निशाना बनाने की फिराक में रहती थी। ये वो जगह है जहां से चीन पूरे तिब्बत पर नजर रख सकता है। साथ ही इस हिस्से के जाने के मतलब नॉर्थ ईस्ट पर पकड़ कमजोर होना। यही वजह है कि, चीन हमेशा से इसपर अपनी बुरी नजर गड़ाये बैठा है।

चीन की जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं जिनपिंग
साल 2020 में चीन को गलवान घाटी हिंसा में बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी। चीन ने सोचा नहीं था कि, उसे भारत इतनी बुरी चोट देगा। इस जख्म को लिये चीन अब भी घुम रहा है। इस हिंसा के बाद ही जिनपिंग ने PLA को भारत के साथ युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए कहा था। उन्होंने जवानों से सारा दिमाग और ऊर्जा युद्ध की तैयारी में निवेश करने के लिए कहा था। हाल ही में हुई राष्‍ट्रीय कांग्रेस के दौरान भी जिनपिंग ने युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक चीन की अर्थव्‍यवस्‍था इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है। जीरो कोविड नीति के सख्‍त नियमों के तहत जनता पहले ही जिनपिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी है। जिनपिंग जो अपनी सत्‍ता की हनक बरकरार रखना चाहते हैं, वह देश की मुश्किलों से ध्‍यान हटाने की कोशिशों में लगे हैं। ऐसे में एलएसी पर भारत कको उलझाने के अलावा कोई और बेहतर विकल्‍प उन्‍हें नहीं मिल सकता है।

सत्ता जाने का सता रहा जिनपिंग को डर
शी जिनपिंग इस वक्त डरे हुए हैं। जिस तरह से चीन की जनता जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ भारी विरोध कर रही है उनको उम्मीद नहीं थी। डीरो कोविड नीति के खिलाफ चीन के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है। इन प्रदर्शनों में छात्रों की संख्या हैरान करने वाली थी। छात्र, जिनपिंग से राष्ट्रपति के पद की छोड़ने की मांग कर रहे थे जो आजीवन शासन का सपना पाल रखे हैं। चीन मामलों के जितने भी विशेषत्र थे, वो यकीन नहीं कर पा रहे थे कि प्रदर्शन इस हद तक ऐतिहासिक हो रहे हैं कि ये तियानमेन स्क्वॉयर की याद दिला रहे हैं। इसी के बीच शी जिनपिंग ने जीरो कोविड नीति के तहत लागू सख्त नियमों में ढील देने का फैसला किया। विशेषज्ञों की मानें तो कोविड नीति में ढील के फैसले को राहत के तौर पर तो देखना ही चाहिए। साथ ही साथ इन्‍हें जिनपिंग की एक कमजोरी के तौर पर भी देखा जाना चाहिए।

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हीरो बनना चाहते हैं जिनपिंग
प्रदर्शनों के चलते शी जिनपिंग पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कम्‍युनिस्‍ट पार्टी में सीनियर रैंक्‍स पर मौजूद दूसरे नेता भी उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते थे। विशेषज्ञों की मानें तो कोविड नीति में ढील को जिनपिंग की कमजोर नस के तौर पर देखा जाएगा। न सिर्फ उनकी पार्टी के नेता बल्कि अब देश और विदेश में मौजूद चीनी नागरिक भी उन्‍हें कमजोर नेता के तौर पर देखेंगे। उनका कहना है कि जिनपिंग को जीरो कोविड नीति का मास्‍टरमाइंड माना जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक जिनपिंग जानते हैं कि राष्‍ट्रवाद की भावना को फिर से देशवासियों में जगा कर वह खुद को मजबूत कर सकते हैं। भारत के साथ जंग या जंग की कोशिश या फिर ऐसी कोई भी कोशिश उन्‍हें जनता का हीरो बना देगी।

आईएन ब्यूरो

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