Maldives Elections India Vs China: चीन की हालत इस वक्त बेहद खराब है। कोरोना महामारी एक बार फिर से चीन में कोहराम मचा रही है। चारों तरफ सिर्फ कोरोना के मरीजों का हाहाकार मचा हुआ है। श्मशानों में लंबी कतारें हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है। देश की आर्थिक स्थिति गिरती जा रही है। लेकिन, चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। अब भारत और चीन मालदीव (Maldives Elections India Vs China) में होने जा रहे चुनाव को लेकर आमने-सामने हैं। हिंद महासागर में बसे भारत के पड़ोसी देश मालदीव में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं। दोनों में वर्चस्व की जंग छिड़ गई है। अगर चीन के मुताबिक यहां का नेता जितता है तो वो वहां पर अपने पैर पसारेगा और ये भारत के लिए खतरा है। इसलिए भारत को हर हाल में सही सरकार के गठन का समर्थन करना पड़ रहा है। चीन मालदीव (Maldives Elections India Vs China) में अपना सैन्य बेस भी बनाना चाहता। कुल मिलाकर अगर चीन के मुताबिक मालदीव में सरकार बनी तो उसका भी वही हाल होगा जो श्रीलंका का हुआ है। ऐसे में भारत आने वाले इस तूफान को रोकने में लगा हुआ है।
मालदीव के चुनाव में चीन और भारत आमने-सामने
इस चुनावी माहौल में मालदीव में भारत और चीन (Maldives Elections India Vs China) के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा लगातार तेज होती जा रही है। भारत और चीन दोनों ही इस कोशिश में लग गए हैं कि मालदीव की अगली सरकार पर उनका प्रभाव हो। मालदीव में वर्तमान सोलिह सरकार जहां भारत समर्थक है और नई दिल्ली ने कर्ज से लेकर कोरोना संकट से निपटने में उसकी खुलकर मदद की है, वहीं अब्दुल्ला यामीन की विपक्षी पार्टी चीन के इशारे पर नाच रही है। वर्ष 2018 के चुनाव में राष्ट्रपति सोलिह की मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी ने अब्दुल्ला यामीन को पार्टी को सत्ता से बेदखल करते हुए शपत ग्रहण किया। यामीन की सरकार चीन के सामने पूरी तरह झूकी हुई थी और उसने जमकर कर्ज लिया। जिसकी कीमत अब सोलिह सरकार को चुकानी पड़ रही है।
चीन के कर्ज जाल से मालदीव को बचाने में लगा है भारत
दरअसल, भारत चाहता है कि उसकी नेबरहूड पॉलिसी और सागर लक्ष्य के तहत मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में हिंद-प्रशांत रणनीतिक फ्रेमवर्क में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। वहीं चीन भारत को घेरने के लिए बनाई गई अपनी रणनीति ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ के तहत मालदीव को अपने साथ लाना चाहता है। इसकी वजह यह है कि मालदीव रणनीतिक रूप से बेहद अहम स्थान पर है। इससे भारत और चीन के बीच मालदीव में एक वर्चस्व की जंग शुरू हो गई है। एबीपी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सोलिह सरकार को ‘असाधारण समर्थन’ मुहैया करा रहा है। यही नहीं भारत ने चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट को पूरा किया है।
भ्रष्टाचार और धूसखोर का सपोर्ट कर रहा चीन
चीन भी सक्रिय हो गया है। चीन विपक्षी दलों की जमकर मदद कर रहा है। चीन प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव और अब्दुल्ला यामीन की पीपुल्स नैशनल कांग्रेस के गठबंधन पर दांव लगा रहा है। अब्दुल्ला यामीन भ्रष्टाचार और घूस के गंभीर आरोपों का सामना भी कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों की माने तो, चीन मालदीव में एक नौसैनिक बेस बनाना चाहता है। इसके अलावा चीन अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना (BRI) के तहत कई इंफ्रा प्रोजेक्ट को मालदीव में लाना चाहता है। यानी कुल मिलाकर देखा जाय तो चीन मालदीव को कर्ज देकर उसके अर्थव्यवस्था की चाभी ठीक श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे अपने हाथों लेना चाहता है। चीन का मंसा है कि, BRI के तहत छोटे देशों को कर्ज तले दबा कर उनके पोर्टों पर कब्जा कर लो। यहीं चीन अब मालदीव में करना चाहता है।
मालदीव में बड़े पैमाने पर ‘इंडिया आउट कैंपेन’ चला रहा ड्रैगन
मालदीव को लेकर चीन ने जो प्लानिंग की है वो बेहद ही खतरनाक है। इसका खामियाजा मालदीव के लोगों को ही भुगतना होगा। ऐसे में सरकार तय करने से पहले मालदीव के लोगों को सोचना होगा कि वो चीनी समर्थक यामीन को गद्दी पर बैठा कर देश को बर्बाद कर दें या फिर सोलिह सरकार के हाथों में फिर से सत्ता देकर देश को बचा लें। क्योंकि, चीन बहुत बड़े पैमाने पर अपने सामानों को मालदीव के बाजार में डंप कर रहा है। चीन एक पुल का भी निर्माण कर रहा है जिसपर काम काफी तेजी से चल रहा है। चीन की ओर से फंड किया गया हुलहुमाले अस्पताल फिर से खुल सकता है। चीनी डॉक्टर्स और नर्स एक बार फिर से मालदीव लौट रहे हैं। इसके साथ ही चीन बड़े पैमाने पर विरोधियों की मदद से ‘इंडिया आउट कैंपेन’ चला रहा है। इस उकसावे के बाद भी भारत केवल विकास परियोजनाओं पर ही फोकस बनाए हुए है। मालदीव की वर्तमान सरकार का आना भारत के लिए बेहद जरूरी है। क्योंकि, वर्तमान सरकार ने इंडिया को आश्वासन दिया है कि, वो न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि सैन्य तरीके से भी मदद करेगी। ऐसे में चीन अपने चाल में कामयाब होता है तो ये भारत के लिए झटका तो होगा ही लेकिन, साथ में मालदीव के लोगों की जिंदगी नर्क से बदतर हो जाएगी। ऐसे में जनता को अपने नेता के बारे में ठीक से विचार करना जरूरी है।
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