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India-China को एक साथ लाने का मतलब साफ, एशिया में नहीं चलेगी US लॉबिंग

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रूस की लड़ाई यूक्रेन से नहीं बल्कि अमेरिका संग पश्चिमी देशों से है। रूस में भारत और चीन समेत कई देशों का सैन्याभ्यास चल रहा है। माना जा रहा है कि, रूस इस अभ्यास के जरिए एशिया में अमेरिका के अकेले पड़ने का संकेत देना चाहता है। 1 सितंबर से शुरू हुआ यह अभ्यास 7 तारीख तक चलने वाला है, जिसमें 50 हजार सैनिक और 5,000 बड़े हथियार शामिल होंगे। इसके साथ ही 140 एयरक्राफ्ट्स और 60 जंगी जहाज भी इसमें हिस्सा ले रही हैं। रूस के इस सैन्याभ्यास को यूक्रेन से छिड़ी जंग के बीच दुनिया की बड़ी ताकतों को अपने पाले में लाने की सफल कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। खासतौर पर इस मिलिट्री ड्रिल में भारत और चीन का एक साथ शामिल होना उसके लिए बड़ी कामयाबी है। जंग के बीच रूस का भारत और चीन को लाना किसी बड़ी रणनीति से कम नहीं है। ये पुतिन की ताकत और सोच को दिखाती है कि वो कैसे अमेरिका को बिना कुछ बोले ये कह दिए हैं कि रूस अकेला नहीं है। रूस के साथ भारत की काफी समय से गहरी दोस्ती चलती आ रही है। इधर चीन के साथ भी रूस की अच्छी दोस्ती है। यहां तक कि यूक्रेन मसले पर न तो भारत और न ही चीन ने रूस के खिलाफ आलोचना की। अब रूस इन दोनों देशों को एक साथ लाकर अमेरिका को सीधे तौर पर चेतावनी देना चाहता है कि, एशिया देशों में उसकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं है जितनी मास्को की।

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खासतौर पर भारत की चुप्पी को लेकर तो अमेरिका और यूरोपीय देशों ने सवाल उठाया था और लोकतंत्र की दुहाई देते हुए समर्थन की मांग की थी। वोस्टोक-2022 वॉर गेम्स के नाम से होने वाली मिलिट्री ड्रिल ने अमेरिका की चिंताओं में इजाफा भी कर दिया है। पिछले दिनों ही अमेरिका ने कहा था कि रूस के साथ किसी भी देश का सैन्याभ्यास में शामिल होना चिंता की बात है। इस मिलिट्री ड्रिल में शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन और रूस के नेतृत्व वाले संगठन एसटीओ में शामिल देश हिस्सा ले रहे हैं। अमेरिका ने बीते कुछ सालों में भारत के साथ अपनी रक्षा साझेदारी बढ़ाई है, लेकिन उसके बाद भी भारतीय सेना का रूस जाना उसके लिए चिंता का सबब हो सकता है। भारत के नजरिए से बात करें तो यहां पाकिस्तान और चीन दोनों टेंशन हैं, सीमा पर दोनों के साथ विवाद है। ऐसे में रूस की हथियारों की सप्लायर के तौर पर अहम भूमिका है। रूस के साथ भारत एस-400 मिसाइल डील को पूरा किया है और एक बार फिर से 30 फाइटर जेट्स की खरीद करने जा रहा है।

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उधर, चीन का कहना है कि उसने अपनी थल, वायु और नौसेना को ड्रिल के लिए भेजा है। चीन ने कहा कि यह ड्रिल खासतौर पर पैसिफिक महासागर में अमेरिकी खतरे से निपटने पर फोकस करेगी। बता दें कि यूक्रेन पर रूसी हमले की एक बार भी चीन ने निंदा नहीं की है। इसके अलावा रूस ने भी ताइवान के मसले पर चीन का ही समर्थन किया है। इस तरह व्लादिमीर पुतिन ने मिलिट्री ड्रिल के बहाने एशिया में एक बड़ी लॉबिंग करने में सफलता पाई है। खासतौर पर भारत और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों को एक साथ लाना व्लादिमीर पुतिन की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।