ये भारत ही है जो हर धर्म के लोगों को रहने और बोलने की आजादी देता है। चाहे हिंदू हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई, फारसी या अन्य कोई जाती का हो जितना उसे हर एक चीज में अधिकार यहां प्राप्त है उतना कहीं भी नहीं। खुद पाकिस्तान और चीन को ले लें जहां पर सरकार के खिलाफ बोलते ही गायब कर दिया जाता है। लेकिन, भारत में बैठे कुछ कट्टरपंथी सिर्फ बोलते नहीं बल्कि ऐसी हिंसा फैलाते हैं कि इसका नुकसान देश को उठाना पड़ता है। भारत में नूपुर शर्मा को लेकर पाकिस्तान के साथ अन्य इस्लामिक देशों ने जमकर बगावत किया। लेकिन, जब हिंदूओं पर अत्याचार की बाते सामने आई तो इनके गले सुख गए। यहां इनको अपमान नहीं दिखा। पाकिस्तान में तो आजादी के बाद जितने हिंदू परिवार थे अब वो बेहद ही कम बचे हैं। या तो उन्हें मार दिया गया या फिर धर्म परिवर्तन करवा दिया गया। लेकिन, इसपर किसी ने कभी कुछ नहीं बोला। भारत में मुसलमानों की जो बात करते हैं उन्हें बता दें कि, यहां के मुस्लिमों की संख्या कई देशों की जनसंख्या के बराबार। यहां भेदभाव कोई करता नहीं है बल्कि कुछ कट्टरपंथी मुसलमान अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये सब करते हैं। नूपुर शर्मा वाले बयान के आग में अफगानिस्तान तक कूद पड़ था। ये अफगानिस्तान भूल गया कि जब दुनिया ने इसे भूखा छोड़ दिया तो भारत ने इसे कई मीट्रिक टन गेहूं दिया, कोविड रोधी टीके दिए, दवाएं भेजी अन्य खाद्य पदार्थ दिया। अब अफगानिस्तान में सिखों को निशाना बनाया जा रहा है, यहां तो सिर्फ 20 परिवार ही बचे हैं। इसपर इस्लामिक देशों को अब कुछ नहीं कहना है।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक गुरुद्वारे पर शनिवार तड़के भीषण आतंकी हमला हुआ। आतंकवादी बाहर से गोलियां चलाते हुए गुरुद्वारे के भीतर दाखिल हुए और सिखों के घरों को भी निशाना बनाया। हमलावरों ने सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी और ग्रेनेड के साथ अंदर घुसे। हमले के सूचना पास की चौकियों पर मौजूद तालिबान सदस्यों को मिलते ही वे मौके पर पहुंचे। इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। बीबीसी से बात करते हुए कुलजीत सिंह खालसा ने बताया, मेरा घर गुरुद्वारे के ठीक सामने है। जैसे ही मैंने गोलीबारी की आवाज सुनी खिड़की से बाहर देखा, लोग कह रहे थे कि हमलावर भीतर हैं। अफरा-तफरी के बीच अचानक एक ब्लास्ट हुआ। बम एक तालिबान चेकपोस्ट के बगल में खड़ी एक कार के अंदर छिपा हुआ था। धमाके में यूनिट कमांडर की मौत हो गई और आसपास की दुकानें और घर क्षतिग्रस्त हो गए। हमले में एक सिख सहित दो लोगों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए।
एक वक्त पर अफगानिस्तान हजारों हिंदुओं और सिखों का घर हुआ करता था। लेकिन दशकों के संघर्ष के बाद अब यहां सिर्फ गिनती के हिंदू और सिख बचे हैं। हाल के वर्षों में बचे हुए सिखों को लगातार आईएस की लोकल ब्रांच निशाना बना रही है। सिख समुदाय के नेताओं का अनुमान है कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में सिर्फ 140 सिख बचे हैं, जिनमें से ज्यादातर पूर्वी शहर जलालाबाद और राजधानी काबुल में हैं। बीबीसी से बात करते हुए हमले में घायल हुए एक शख्स के रिश्तेदार ने कहा कि अफगानिस्तान में सिर्फ 20 सिख परिवार बचे हैं। उन्होंने कहा कि बचे हुए परिवार भी जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं लेकिन भारत सरकार की ओर से उन्हें वीजा नहीं दिया जा रहा है जिस कारण वे यहां फंसे हुए हैं। रिश्तेदार ने कहा, अगर हमें वीजा मिले तो हम तुरंत चले जाएंगे।