नया पाकिस्तान बनाने चले इमरान घरेलू मुश्किलों की पैंतरेबाजी में उलझे

14 अगस्त पाकस्तान अपनी 73वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ मनाने जा रहा है । दो साल पहले 18 अगस्त 2018 को क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान ने पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री की शपथ ली थी। पाकिस्तान के चुनाव में उनकी पार्टी और सहयोगी पार्टियों को मिलाकर काम चलाऊ बहुमत मिल गया था।

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान पाकिस्तानी आर्मी के को पोस्टर ब्याय थे। इमरान खान ने 2014 में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ मोर्चा खोला था। देश भर में पाकिस्तान मुस्लीम लीग के खिलाफ धार्मिक संगठनों के साथ खास कर <em>तहरीक</em>-<em>ए</em>-<em>लब्बैक </em>(‘TLP) से मिलकर इमरान खान ने नवाज शरीफ की पार्टी को गैर इस्लामिक ठहराया था।

2018 में चुनाव हुए और नवाज शरीफ की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। खुद पाकिस्तानी सेना के डायरेक्टर जनरल आईएसपीआर (Inter state public relation) मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्वीट कर के अल्लाह का शुक्रिया अदा किया<strong>..</strong><strong>”</strong><strong>ऐ खुदा तू जिसे खुश कर दे, तू जिसे चाहे त्याग दे</strong><strong>”</strong><strong>(</strong>You exalt whom You please, and abase whom You please)।

शपथ लेते ही अपनी जनता को संबोधित करते हुए इमरान खान ने कहा था, “<strong>आपने घबराना नहीं है..मैं बनाउंगा एक नया पाकिस्तान</strong><strong>”</strong><strong>।</strong>

पाकिस्तानियों को पता था चुनाव में कितनी धांधली हुई थी, यह बात किसी से छिपी नहीं थी। लेकिन इमरान खान बतौर क्रिकेट काफी पोपुलर रहे थे, उनकी छवि साफ सुथरी थी अपनी चुनावी रैलियों में पिछली सरकारों की धांधलियों का कच्चा चिटठा खोला था..जनता को लगा कि यह पठान कुछ काम करेगा।

प्रधानमंत्री बनते ही इमरान खान ने कहा कि पिछले 20 सालों से उनका सपना साकार हुआ है और अब नया पाकिस्तान बनाएगें। पाकिस्तानियों को लगा था कि इमरान, क्रिकेट की तरह अपनी गेंदवाजी से पाकिस्तान की मुश्किलों को आउट कर देंगे। लेकिन यह भरोसा साल भर में ही टूटने लगा और सियासती पिच पर इमरान, लोगों की हर उम्मीदों पर आउट होते गए।।

लोगों की मुश्किलें दूर होने के बजाय बढ़ती दिख रही हैं। इमरान के सत्ता संभालने के 2 साल में अर्थव्यवस्था को ठीक करने के उनके वादे हवा हवाई ही निकले हैं। अर्थव्यवस्था आगे तो नहीं बढ़ी बल्कि और भी पीछे पहुंच गई है।उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) का भ्रष्टाचार मिटाने और आर्थिक कर्ज खत्म करने का वादा उम्मीद से पहले ही धाराशायी हो गया।

<strong>पाकिस्तानी अखबार दी फ्राइडे टाइम्स के मुख्य संपादक नजम सेठी के मुताबिक, </strong><strong>“</strong><strong>आर्मी इमरान का इस्तेमाल डेमोक्रेसी और डेमोक्रेटिक लीडर्स के खिलाफ कर रही थी। वो नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को डिसक्रेडिट करना चाह रही थी। नवाज शरीफ की सरकार ने अच्छा काम किया था, लेकिन कुछ मसलों पर खास कर टेरिरिज्म के खिलाफ आपरेशन जब्र-ए-अज्ब </strong><strong>(Zabr-e-Azb)..</strong><strong>यह अमेरिका के दबाव में था लेकिन आर्मी को लगा नवाज शरीफ हिन्दुस्तान के साथ कुछ डील कर रहे हैं..आर्मी को तो बहाना चाहिए।।</strong><strong>”</strong>

पाकिस्तानी रुपये की कीमत लगातार कम होती गई। बाजार ने अपना भरोसा खो दिया, बिजली के बढ़ते दामों के साथ-साथ बढ़ती महंगाई ने आम लोगों की जेब ढीली कर दी और लोगों की आमदनी कम होने से उनके सामने और भी मुश्किलें आ रही हैं। इस आर्थिक मंदी की वजह से बेरोजगारी और गरीबी लगातार बढ़ती जा रही है।

समाचार पत्र दी एक्सप्रेस ट्रिब्यून  के मुताबिक पिछले पांच साल में नवाज शरीफ की सरकार ने जितना कर्ज लिया था,  उसका दो तिहाई कर्ज इमरान खान की सरकार महज एक साल में ले चुकी थी। रही सही कसर करोना ने पूरी कर दी। तमाम विशेषज्ञ उन्हें सलाह दे रहे थे कि लॉकडाउन के अलावा कोई चारा नहीं है, मगर वह नहीं माने।

उनकी दलील थी कि लॉकडाउन का असर कमज़ोर तबक़े पर बहुत ज़बर्दस्त पड़ेगा और वे बेमौत मारे जाएँगे। लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएँगे और बहुत सारे काम धंधे बंद हो जाएँगे जिसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। इमरान की इस ज़िद की वज़ह से कोरोना का संक्रमण फैलता  गया। दफ़्तर, बाज़ार, मसजिदें सब खुले रहे जिसकी वज़ह से कोरोना बड़ी तेज़ी से फैलने लगा।

इसके बावजूद इमरान ख़ान ने 22 मार्च को देश के अवाम को संबोधित करते हुए लॉकडाउन लगाने से इनकार कर दिया। लेकिन चौबीस घंटे के अंदर ही सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इख्तियार ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी और कमान अपने हाथों में ले ली।

कहा जाने लगा कि अब इमरान ख़ान चंद दिनों के मेहमान हैं। सेना कोरोना संकट से निपटने में इमरान ख़ान की नाक़ामी से ख़ासी ख़फ़ा है और उसने वहाँ तख्तापलट की तैयारी कर ली है। कहना मुश्किल है कि सच्चाई क्या है लेकिन पाकिस्तान ऐसा मुल्क है जहाँ तख्तापलट को लेकर अटकलबाज़ियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं। हुकूमत चाहे जनता के वोटों से चुनकर बनी हो या फिर किसी फ़ौजी ने तख्तापलट करके हथियाई हो, दोनों हमेशा ख़तरे में रहती हैं। उनका चलना एक ही बात पर निर्भर करता है और वो यह कि उन्हें अमेरिका, अल्ला और आर्मी तीनों का समर्थन व आशीर्वाद प्राप्त हो।

करोना के मामले में इमरान खान की ज़बर्दस्त किरकिरी हुई और पूरी दुनिया समझ गई कि पाकिस्तान की असली सत्ता अब सेना के हाथों में है। उधर , लॉकडाउन की घोषणा के बाद सेना ने उसे लागू करने के लिए भी कमर कस ली। तमाम बड़े शहरों में सेना को तैनात कर दिया गया। यही नहीं, उसने देश भर में सेना की तैनाती कर दी और खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी कोरोना से संक्रमित मरीज़ों का पता लगाने के लिए काम पर लगा दिया।

अब तो पाकिस्तानी सेना को जनरलों को भी बिश्वास हो गया कि इमरान खान दांव लगा कर उन्होंने गलती की है। इस बीच खुद इमरान खान की सरकार की मिलीजुली पार्टियों वाली सरकार में भी असंतोष  बढ़ने लगने लगा है। खुद उनकी पार्टी के मंत्री अवाद चौधरी ने वायस आफ अमेरिका को दिए गए इंटरव्यू में कहा  कि उनकी पार्टी में अंदरुनी झगड़े शुरु हो गए हैं। इमरान खान ने एसे लोगों को मंत्री बनाया जिन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। जो चुनाव जीत कर आए उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।।

इमरान खान से उनकी पार्टी के लोग ही नहीं , उनकी सहयोगी पार्टियां भी नाराजगी व्यक्त कर रही हैं। बलूचिस्तान नेशनल पार्टी के प्रमुख सरदार अख्तर मेंगल ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से हटने की घोषणा की है। उनका कहना है कि पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ और इमरान खान सहयोगियों के साथ हुए समझौते को लागू करने में विफल रहे है, और बलूचिस्तान के लोगों से किए गए वादों को पूरा नहीं किया गया है।

इमरान खान की गठबंधन सरकार के पास 184 सीटें थीं, लेकिन इस घोषणा के बाद वह घटकर 180 हो गई हैं। यह एक तरह से इमरान खान के लिए संकेत है कि उनकी गठबंधन सरकार भविष्य में खतरे में पड़ सकती है।

पिछले साल अक्टूबर में जब पकिस्तानी सेना के जनरल कमर जावेद वाजवा और इमरान चीन के दौरे पर थे और चीन ने जनरल वाजवा से शिकायत कि इमरान सरकार की वजह से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)  का काम बार-बार रुक रहा है और इनकी सरकार कुछ खास नहीं कर रही । जनरल वाजवा के लिए संदेश काफी था।

वो किसी की कीमत पर चीन की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे। इमरान खान की घटती लोकप्रियता के बीच पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल वाजवा ने एक दर्जन से अधिक मौजूदा और पूर्व सैन्य अधिकारियों को  इमरान खान की सरकार में अहम पदों पर नियुक्त कर दिया। सूचना और प्रसारण मामले में प्रधानमंत्री की विशेष सलाहकार डॉ. फिरदौस आशिक अवान को हटाकर उनकी जगह पर  सेना के पूर्व प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) असीम सलीम बाजवा को बिठा दिया।

ले. जनरल असीम सलीम बाजवा तत्कालीन सेना प्रमुख रहील शरीफ के कार्यकाल में सेना के मीडिया विंग, इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशन्स (ISPR)के महानिदेशक रह चुके हैं। लो जनरल वाजवा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा प्राधिकरण (CPEC) के अध्यक्ष भी हैं। कमाल की बात है ले. जनरल सलीम बाजवा सलाहकार तो प्रधानमंत्री के हैं, लोकिन रिपोर्ट वो सीनियर जनरल वाजवा को करते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का काम इमरान की सरकार नहीं बल्कि सेना कर रही है।

<strong>पत्रकार कामरान </strong><strong>तल्खी के साथ कहते हैं</strong><strong>, "</strong><strong>अब तो अल्लाह. और कायदे आजम </strong><strong>(</strong><strong>जिन्ना)</strong><strong> के बाद चीनी राष्ट्रपति शिनपिंग पाकिस्तान के सबसे बड़े मोहसिन </strong><strong>(benefactor) </strong><strong>हैं।"</strong>

यही नहीं, पाकिस्तान एयरलाइंस में फर्जी पायलेटों के पर्दाफास के बाद इमरान खान की सरकार पर देश-विदेश में सवाल उठ रहे थे। कई देशों ने तो पाकिस्तान एयरलाईंस पर बैन लगा दिया।  पाकिस्तानी सेना ने सरकारी विमानन कंपनी, बिजली नियामक और कोरोना महामारी से लड़ रहे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ जैसे विभाग भी अपने कब्जे में ले लिया।।

<strong>पाकिस्तानी पत्रकार मेहमाल सरफराज के मुताबिक </strong><strong> ''</strong><strong>सेना के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों की नियुक्ति से पाकिस्तान सरकार देश में नीति बनाने और उसे लागू करने में बचे-खुचे अधिकार को भी सेना के हवाले कर रही है। यह साफ संदेश है इमरान खान के लिए।।</strong><strong>''</strong>

पाकिस्तानी मीडिया का तेवर बदला था..इमरान की सरकार की विफलताओं की खबरें हेडलाईन में थीं। इमरान ने मीडिया पर भी अपना निशाना साधा। किसी पुराने मामले में पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप जंग और जियो टीवी के एडिटर  शकील-उर-ऱहमान को गिरफ्तार करवा दिया। वो पिछले 4 महीनों से जेल में बंद हैं ।

इमरान खान जब से सत्ता में आये हैं, उनकी सूई कश्मीर पर ही अटक गई है। वह हर मौके पर कश्मीर को मुद्दा बनाना चाहते हैं। इमरान खान की बौखलाहट का अंदाजा कई बातों से लगाया जा सकता है।

पिछले साल मोदी सरकार के जम्मू और कश्मीर में धारा 370 निरस्त के बाद, इमरान खान की सरकार ने सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को  कोशिश की लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। लिहाजा, इमरान खान ने ड्राईंग बोर्ड पर नया पाकिस्तान का नक्शा बनाया। जिसमें भारत के जम्मू और कश्मीर के साथ साथ गुजरात के जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया। पूरी दुनिया के साथ साथ खुद उनके अपने ही देश में उनका मजाक बना।

पिछले सप्ताह  उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने कश्मीर मुद्दे को लेकर सऊदी अरब के नेतृत्‍व वाले ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक कंट्रीज (OIC) को धमकी दी। उन्होंने कहा कि कि मैं ओआईसी से कहना चाहता हूं कि विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक हमारी अपेक्षा है। अगर आप इसे बुला नहीं सकते, तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह कहने के लिए बाध्‍य हो जाऊंगा कि वह ऐसे दूसरे इस्‍लामिक देशों की बैठक बुलाएं, जो कश्‍मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े हैं’।

दरअसल, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित करना चाहता है और इसके लिए बार-बार अनुरोध कर चुका है, लेकिन इस्लामी सहयोग संगठन इस तरह के किसी सम्मेलन के लिए तैयार नहीं है। अपनी इसी चाहत में वह सऊदी अरब को दुश्मन बना बैठे हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने बुधवार (अगस्त 05, 2020) को पाकिस्तान के कश्मीर प्रलाप के एक और प्रयास को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि यह विषय भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रूप से ही हल किया जाना चाहिए है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों में से चार – अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस – भारत का पक्ष मजबूती से रखते आ रहे हैं।

यूएन में <strong>भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने एक ट्वीट में कहा- “पाकिस्‍तान का एक और प्रयास विफल रहा। संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की आज की बैठक बंद कमरे में हुई थी</strong><strong>, </strong><strong>अनौपचारिक थी</strong><strong>, </strong><strong>इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया और इसका कोई परिणाम नहीं निकला। लगभग सभी देशों ने माना कि जम्‍मू-कश्‍मीर एक द्विपक्षीय मसला है और सुरक्षा परिषद के समय और ध्‍यान का हकदार नहीं है।”</strong>

पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद वाजवा  ने माना है कि पाकिस्तान इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में नाकाम रहा जबकि भारत ने इसका पूरा फायदा उठाया।

विश्लेषकों का मानना है कि कोरोना वायरस पर कुछ कारगर न कर पाना जनरलों की नजर में इमरान खान के लिए एक और नीतिगत विफलता है। इसके अलावा, 67 वर्षीय क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान कश्मीर के मुद्दे पर बार-बार विश्व समुदाय का ध्यान खींचने में नाकाम रहे हैं और अपने देश को आतंकी फंडिंग के लिए 'ग्रे लिस्ट' से निकालने में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) को समझाने असफल रहे हैं।

<strong>अखबार ‘द डॉन’ के पत्रकार जाहिद हुसैन</strong><strong> </strong><strong>केमुताबिक- </strong><strong>“</strong><strong>अब तो मुस्लिम देश भी साथ नहीं हैं। कश्मीर मसले पर सबसे बड़ी हैरानी दुनिया की चुप्पी है। आठ करोड़ लोगों की आवाज उठाने के लिए कोई तैयार नहीं है। हम मुस्लिम दुनिया का दम भरते हैं लेकिन कोई भी इस्लामिक देश हमारे साथ नहीं आया। मोदी की निंदा छोड़िए</strong><strong>, </strong><strong>यूएई ने तो </strong><strong>मोदी </strong><strong>को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान कर दिया।</strong><strong>“</strong>

<strong> </strong>अंदरूनी परेशानियों के जूझने के बावजूद इमरान खान भारत से उलझ रहे हैं। पिछले कई महीनों से पाकिस्तानी सेना द्वारा संघर्ष विराम का बार बार  उल्लंघन किया जा रहा है। 7 जून से, पाकिस्तान ने कई बार भारतीय गांवों और सैन्य चौकियों को निशाना बनाया है। रामपुर, केरन और तंगधार (Rampur, Keran,Tangdhar) सेक्टरों में उसकी तरफ से अकारण गोलीबारी हुई है। संघर्ष विराम उल्लंघन के इस पैटर्न से कहीं न कहीं यह साफ होता है कि पाकिस्तान भारत को उकसाने के लिए चीन जैसी चाल चल रहा है।

आने वाले दिन पाकिस्तान की सियासत के लिहाज से अहम साबित हो सकते हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से हटाने के इरादे से देश की तीन प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने हाथ मिला लिए हैं। हालांकि, इसकी औपचारिक घोषणा बाकी है। सोमवार को नवाज शरीफ की पार्टी (पीएमएल-एन) और बिलावल भुट्टो की पार्टी (पीपीपी) और तीसरी पार्टी मौलाना फजल-उर-रहमान की जमीयत-उल-इस्लामी की मीटिंग जारी हैं। कोशिश एक ऑल पार्टी अलायंस बनाने की है।

इमरान सरकार पीएमएल-एन और पीपीपी के सभी बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर केस चला रही है। नवाज और जरदारी को जेल भी भेजा जा चुका है। कुछ खबरों के मुताबिक, प्रांतीय स्तर के नेताओं को झूठे ड्रग स्मगलिंग के मामलों में फंसाया गया है। वैसे तीनों पार्टियां अलग-अलग विचाराधारा का दावा करती हैं। लेकिन, इमरान के खिलाफ एक हो गई हैं।

अगर तीनों पार्टियां साथ आ गईं तो सेना के लिए भी इमरान को बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। सबसे मजबूत सूबे पंजाब में नवाज तो सिंध में पीपीपी मजबूत है। इमरान सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा में ताकतवर हैं। आर्मी और सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के ज्यादातर मलाईदार पदों पर पंजाब के लोग ही काबिज हैं। लिहाजा, पंजाब और सिंध से आवाज उठी तो इमरान सरकार के लिए इसे दबाना बहुत मुश्किल होगा। दूसरी तरफ मौलाना भी हैं। उनका मजहबी उनके लाखों समर्थक हैं।.

अतुल तिवारी

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