हरितक्रांति के सूत्रपात के साथ भारत खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ और कृषि प्रौद्योगिकी का विकास जोर पकड़ा। मगर, कृषि के क्षेत्र में मशीन की ताकत का अहसास किसानों को कोरोना काल में ही हुआ। कोरोना ने सही मायने में किसानों को खेती-किसानी के काम में मशीन के इस्तेमाल करने की नई राह दिखाई। खेतों की जुताई, बुवाई और कटाई में तो पहले भी मशीन का इस्तेमाल होता था, लेकिन इस बार किसानों ने धान की रोपाई में भी मशीन का इस्तेमाल पहले से 25 फीसदी ज्यादा किया है।
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि खेतों की जुताई के लिए पशुओं के बदले मशीन यानी ट्रैक्टर का इस्तेमाल तो दशकों से हो रहा है, लेकिन फसलों की कटाई, बुवाई समेत अन्य कृषि कार्यों में मशीनरी का व्यापक स्तर पर उपयोग की जरूरत कोरोना काल में महसूस हुई, जब किसानों को खेतिहर मजदूरों का संकट खड़ा हुआ।
कोरोना महामारी के प्रकोप पर लगाम लगाने को लेकर जब मार्च के आखिर में देशव्यापी लॉकडाउन हुआ तो रबी फसलों की कटाई शुरू होने वाली थी, इसलिए मजूदरों के अभाव को लेकर किसानों की चिंता बढ़ गई थी। खासतौर से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में फसल की कटाई के लिए मजदूरों का अभाव हो गया था क्योंकि दूसरे प्रांतों से आने वाले मजदूर लॉकडाउन के कारण नहीं आ पा रहे थे और जो मजदूर इन राज्यों में मौजूद थे, वो भी जैसे-तैसे वापसी को उतारू थे। ऐसे समय में किसानों ने फसलों की कटाई के लिए मशीनों का सहारा लिया और पहले से कम समय में कटाई संपन्न हो गया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आइसीएआर) के तहत आने वाले भोपाल स्थित केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान के निदेशक डॉ. सी. आर. मेहता ने आईएएनएस से कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना काल में फसलों की कटाई, बुवाई, रोपाई समेत खेती के तमाम कार्यों में मशीन का उपयोग ज्यादा हुआ है।
उन्होंने कहा, "खेतों की जुताई] फसलों की बुवाई और कटाई के लिए मशीन का इस्तेमाल पहले भी किसान खूब करते थे, लेकिन इस बार धान की रोपाई जिसमें मजदूरों की ज्यादा जरूरत होती है वहां भी मशीन का उपयोग 25 फीसदी बढ़ गया है।
डॉ. मेहता ने कहा कि लॉकडाउन के बाद शुरूआत में गेहूं की कटाई को लेकर किसान जरूर चिंतित थे, लेकिन सरकार ने जब कृषि कार्य में मशीन के इस्तेमाल, आवागमन व खरीदए हायरिंग समेत आवश्यक छूट दे दी तो उनकी चिंता दूर हो गई और कम समय में कटाई का काम संपन्न हुआ।
आइसीएआर के तहत ही आने वाले भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के कार्यकारी निदेशक विजय यादव ने आईएएनएस को बताया कि मशीनीकरण से फसलों की कटाई, बुवाई समेत तमाम काम आसान हो जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में चारे की कटाई के लिए मजदूरों का अभाव हुआ तो व्यापक पैमान पर मशीन का उपयोग किया गया, जिससे काम आसान हो गया। उन्होंने कहा कि मशीन के इस्तेमाल से न सिर्फ काम आसान होता है बल्कि कम समय में पूरा हो जाता है।
अप्रैल 2014 में शुरू किए गए कृषि मशीनीकरण उप मिशन (एसएमएएम) के तहत खेती के काम में मशीन के उपयोग को बढ़ावा देने का काम निरंतर जारी है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसारए 2020-21 में इस योजना के लिए 1033 करोड़ रुपये का बजट प्रदान किया गया हैए जिसमें से राज्य सरकारों को 553 करोड़ जारी किए गए हैं।
वहीं ] पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण पर रोकथाम के मद्देनजर केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 में सीआरएम योजना (फसल अवशेष प्रबंधन)चलाई जिसके तहत किसानों को कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से फसल अवशेषों के तुरंत प्रबंधन के लिए मशीनरी उपलब्ध कराई जाती है। मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसारए वर्ष 2020-21 में इस योजना के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है जिसमें से अग्रिम के तौर राज्यों को 548.20 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना काल में किसानों के लिए ट्रैक्टरों, पावर ट्रिलर्स, कंबाइन हार्वेस्टर्स समेत तमाम कृषि मशीनरी की उपयोगिता बढ़ गई है। उधर, सरकार ने प्रवासी मजदूरों को कृषि मशनरी के संचालन की ट्रेनिंग देने के लिए एक विशेष अभियान चलाया है, जिसके तहत मध्य प्रदेश के बुदनी और हरियाणा के हिसार में फार्म मशीनरी प्रशिक्षण एंड परीक्षण संस्थानों (एफएमटीटीआई)में इन-हाउस कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।.
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