नेपालः चुनाव आयोग से चीन समर्थक ‘प्रचंड’ को झटका, पीएम ओली की बल्ले-बल्ले

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<span style="font-size:16px;">नेपाल में बीते करीब एक महीने से जारी राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ पुष्प कमल दहल प्रचंड वाले गुट ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पार्टी से बाहर किए जाने का ऐलान किया तो वहीं देश के चुनाव आयोग ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि वह दोनों धड़ों को ही नहीं मानता। नेपाल चुनाव आयोग ने कहा है कि दोनों खेमे राजनीतिक पार्टी कानून 2017 और पार्टी के संविधान का पालन नहीं कर रहे हैं इसलिए फिलहाल पार्टी में यथास्थिति बरकरार रहेगी।</span></p>
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<span style="font-size: 16px;">नेपाल चुनाव आयोग के प्रवक्ता राज कुमार श्रेष्ठ ने कहा, 'दोनो धड़ों ने जो फैसले लिए हैं वे पार्टी के संविधान के अनुरूप नहीं है, इसलिए हम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की डीटेल्स को बदल नहीं सकते। हमने केपी ओली और पुष्प कमल दहल दोनों को यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आयोग पार्टी की मौजूदा डीटेल्स को ही मानेगा।'</span></p>
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<span style="font-size: 16px;">इससे पहले नेपाल के विरोधी गुट ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पार्टी से बाहर किए जाने का ऐलान किया था। पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की अगुआई वाले गुट की केंद्रीय समिति की रविवार को हुई बैठक में ओली को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। विरोधी गुट के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है। पिछले साल 22 दिसंबर को ओली को कम्युनिस्ट पार्टी में सह अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।</span></p>
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<span style="font-size: 16px;">शुक्रवार को विरोधी गुट के नेताओं ने ओली की सदस्यता रद्द करने की धमकी दी थी। विरोधी गुट के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने महीने में दूसरी बार सड़कों पर उतकर ओली के खिलाफ प्रदर्शन किया। वे ओली की ओर से पिछले साल 20 दिसंबर को संसद को भंग किए जाने के फैसले से नाराज हैं। ओली ने संसद को भंग करते हुए इस साल अप्रैल मई में चुनाव कराने की घोषणा की है। ओली के इस फैसले पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मुहर लगाई थी।</span></p>
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<span style="font-size: 16px;">नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म ओली के सीपीएन-यूएमएल और दहल की पार्टी सीपीएल (माओवादी) के विलय से हुआ था। चूंकि, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग थी, इसलिए शुरुआत से ही यह आशंका थी कि यह एका अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकेगा। दो साल के भीतर ही एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी का दो टुकड़ों में बंटना अब लगभग तय हो गया है।</span></p>
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आईएन ब्यूरो

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