पाकिस्तान (Pakistan) की आर्थिक हालत काफी समय से ठीक नहीं है। देश लगातार कंगाली की ओर बढ़ रहा है। जिस रफ्तार से यहां एक के बाद एक चीजों की कमी आती जा रही है और महंगाई बढ़ती जा रही है उसे देखकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान सरकार ने अगर को ठोस कदम नहीं उठाया तो बहुत जल्द ही यहां भी श्रीलंका वाली स्थिति देखने को मिल सकती है। पाकिस्तान को एक के बाद एक कई झटके लग रहे हैं। अभी देश में बिजली संकट की समस्या खत्म नहीं हुई थी कि अब व्यापार घाटा भी रिकॉर्ड हाई स्तर पर पहुंच गया है।
पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार में 6.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई है। इस बीच चीन ने भी वहां निवेश कम कर दिया है। राजनीतिक उथल-पुथल ने भी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। हालात यह है कि भारी महंगाई के बीच देश में नकदी संकट के साथ-साथ ऊर्जा संकट गहरा गया है। शहबाज शरीफ सरकार ने इसे देखते हुए ऊर्जा खपत में कटौती का ऐलान किया है। पाकिस्तान ने नागरिकों से बिजली कम खपत करने की अपील की है।
सरकार की नीतियों के चलते आया संकट
वहीं उत्तरी पश्चिमी इलाके यानी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में लोग गैस सिलेंडर के लिए तरस रहे हैं। वहां लोगों को एक सिलेंडर के लिए 10 हजार रूपये तक चुकाने पड़ रहे हैं। कई लोग को प्लास्टिक की थैली में गैस भराने को मजबूर हैं। इस बीच खबरें आ रही हैं कि लोगों ने ऊर्जा संकट को देखते हुए गैस सिलेंडरों को जमा करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा अब तो अनाज संकट भी गहराने लगा है। डॉन अखबार के मुताबिक देश के कई हिस्सों में गेहूं का संकट उठ खड़ा हुआ है। यानी पाकिस्तान में आने वाले दिनों में रोटी के भी लाले पड़ सकते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने भरोसा दिलाया है कि गेहूं का आयात किया जा रहा है।
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अखबार के मुताबिक, इस्लामाबाद में 40 आटा मिलों की दैनिक खपत 20 किलो गेहूं का 38,000 बैग है, लेकिन मिलों को पर्याप्त गेहूं उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और प्रति दिन 17,000 बैग की कमी देखी जा रही है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मंत्री तारिक बशीर चीमा ने गेहूं संकट के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि उनकी सरकार राज्यों को मांग के अनुसार गेहूं की सप्लाई करेगी। उन्होंने गेहूं की कालाबाजारी करने वालों को भी आड़े होथों लिया है। उन्होंने संकट के लिए पंजाब सरकार को दोषी ठहराया है।
बता दें कि पिछले साल पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी भारी महंगाई और चरमराई अर्थव्यवस्था के बीच भारी ऊर्जा संकट देखने को मिला था। बिजली कट और बुनियादी जरूरतों, खाने-पीने की रोजमर्रा के सामान और दवाइयों की कमी से जूझते लोग सड़कों पर उतर आए थे और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भवन को कब्जे में कर लिया था।
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