BRICS देशों को रूस की ओर से एक बड़ा ऑफर दिया गया है। रूस की स्पेस एजेंसी ने ब्रिक्स देशों के सदस्यों से कहा है कि सभी मिलकर स्पेस सेंटर बनाएं। रूस की स्पेस एजेंसी ने ब्रिक्स दशों को उसके अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया है।
ब्रिक्स देशों के सदस्य दक्षिण अफ्रिका और ब्राजिल के पास न तो स्पेस की ज्यादा टेक्नोलॉजी है और न ही उनके पास इसका कोई बजट है,ऐसे में मुख्य तौर पर रूस का यह न्योता भारत और चीन के लिए विशेष रूप से माना जा रहा है।
ऐसे में भारत के लिए अब सबसे बड़ा सवाल है कि भारत पुतिन का न्योता स्वीकार करे या फिर NASA के साथ अपने मिशन को आगे बढ़ाए।
रूस अभी अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन का सदस्य है। लेकिन अगले कुछ वर्षों में रूस इससे अलग होकर अपना स्पेस स्टेशन बनाना चाहता है। इस बीच रूस की स्पेस एजेंसी के प्रमुख ने ब्रिक्स देशों को उसके स्पेस प्रोग्राम में शामिल होने का ऑफर रखा है। ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका आते हैं। लेकिन रूस का यह ऑफर खास तौर पर भारत और चीन के लिए है।
ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हीं दोनों स्पेस एजेंसियों के पास स्पेस से जुड़ी टेक्नोलॉजी और बजट है। वहीं, चीन क्योंकि अपने स्पेस स्टेशन पर काम कर रहा है, ऐसे में रूस चाहता है कि भारत उसके साथ इसमें मिलकर काम करे। लेकिन भारत के पास नासा के स्पेस स्टेशन में भी जाने का विकल्प है।
हाल ही में जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे, तब भारत ने आर्टेमिस समझौता किया था, जिसके तहत इसरो और नासा 2024 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ISS में भेजने पर एकसाथ काम करेंगे। पिछले साल रूस ने फैसला किया था कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से खुद को अलग कर लेगा।
स्पेस स्टेशन रूस और अमेरिका के बीच आखिरी चैनलों में से एक है, जिस पर दोनों देश मिल कर काम करते हैं। अपने स्पेस स्टेशन का नाम रूस ने रूसी ऑर्बिटल सिस्टम (ROS) रखा है। रूसी अंतरिक्ष स्टेशन के प्रमुख डिजाइनर व्लादिमी कोजेवनिकोन ने फरवरी में कहा था कि 2027 में इसके पहले चरण के लॉन्च होने की उम्मीद है। 2028 और 2030 के बीच चार अन्य मॉड्यूल कक्षा में भेजे जाएंगे।
रूस की ओर से ब्रिक्स देशों को प्रस्ताव
ब्रिक्स सदस्य देशों को शामिल करने की पेशकश रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोर के महानिदेशक यूरी बोरिसोव ने की है। दक्षिण अफ्रीका में होने वाली एक बैठक में उन्होंने यह पेशकश की है। यहां उन्होंने कहा, ‘मैं प्रस्ताव देता हूं कि ब्रिक्स में हमारे सहयोगी इस परियोजना में भाग लें। स्पेस स्टेशन में अपने प्रयासों के माध्यम से एक पूर्ण मॉड्यूल बनाने के अवसर पर विचार करें।’
पहेल जाएंगे दो अंतरिक्ष यात्री
शुरुआत में आरओएस पर दो अंतरिक्ष यात्री जाएंगे। इसका मतलब है कि प्रत्येक क्रू मेंबर के पास ISS की तुलना में ज्यादा काम और जिम्मेदारी होगी। सोवियत संघ के तहत रूस ने कई स्वतंत्र अंतरिक्ष स्टेशनों का संचालन किया है। दुनिया का पहला स्पेस स्टेशन सैल्युट 1 भी सोवियत ने बनाया था। जो 1971 में पृथ्वी पर वापसी के दौरान जल गया था, जिसमें तीन चालक सदस्यों की मौत हो गई थी।
रूस के पास पहले भी रहा है स्पेस स्टेशन
बाद में सोवियत ने 1986 में मीर नाम का स्टेशन शुरू किया, जो 14 वर्षों तक पृथ्वी की कक्षा में रहा। इस दौरान अमेरिका समेत कई देशों के अंतरिक्ष यात्री इस पर गए। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पिछले 22 वर्षों से अंतरिक्ष में हैं। यह अमेरिका, रूस, जापान, कनाडा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सहयोग से बनाया गया था। नासा ने पिछले साल कहा था कि अब वह इस स्पेस स्टेशन को 2030 तक चलाएगा। इसके बाद उसे प्रशांत महासागर के किसी वीरान इलाके में क्रैश किया जाएगा।
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