Saudi Arabia MBS: अमेरिका और सऊदी अरब के बीच इन दिनों तनाव चल रहा है। इसका फायदा ड्रैगन पूरी तरह उठाता नजर आ रहा है। इस वक्त चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सही मौके का फायदा उठाते हुए सऊदी अरब दौरे पर हैं। जिनपिंग ऐसे समय में रियाद पुहंचे हैं जब अमेरिका के एक जज ने MBS को जर्नलिस्ट जमाल खशोगी मामले में राहत दी है। यह राहत एमबीएस के लिए ग्रैंड कमबैक का मौका है। साल 2018 में जब सऊदी जर्नलिस्ट का मर्डर हुआ जिसके बाद MBS के दुनिया किनारे करने लगी। खशोगी की हत्या इस्तानबुल, तुर्की स्थित सऊदी दूतावास में हुई थी। इधर शी जिनपिंग का सऊदी दौरा क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
अमेरिका का MBS के खिलाफ जाना सही नहीं
अमेरिका का कहना है कि, एमबीएस के कहने पर खशोगी की हत्या हुई। जिसे एमबीएस हमेशा से इनकार करते आएगा हैं। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सार्वजनिक तौर पर सऊदी अरब को पायरिया तक कह चुके हैं। लेकिन, अब जब सऊदी अरब ने चाल चली तो पश्चिमी देश बैकफुट पर आ गये। सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि चीन से लेकर रूस तक को महसूस हो गया है कि, बिना एमबीएस के गाड़ी आगे बढ़ानी मुश्कील है। पिछले दिनों अमेरिका की एक कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर केस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह एक देश के मुखिया हैं और उन्हें सुरक्षा हासिल है। हालांकि जज ने यह माना कि एमबीएस पर खाशोगी की हत्या में शामिल होने के जो आरोप लगे हैं वो विश्वसनीय हैं। कोर्ट का कदम एमबीएस के लिए बड़ा फैसला था। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब खुद को एक ऐसे खिलाड़ी के तौर पर साबित कर सकते हैं, जिसकी जरूरत सभी को है। एमबीएस, चीन-अरब सम्मेलन के लिए जिनपिंग से लेकर मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका तक के नेताओं का स्वागत करने में लगे हैं। ऐसे में खाशोगी हत्याकांड की यादें भी कमजोर पड़ने लगी हैं।
चीन के लिए फायदेमंद होगा ये दौरा
जिनपिंग से मुलाकात के दौरान क्राउन प्रिंस के सामने तेल का मामला भी जरूर उठा होगा। बल्कि ये सबसे ऊपर रही होगी। चीन में बेरोजगारी में 20 फीसदी तक का इजाफा हो चुका है, अर्थव्यवस्था संकट में है, प्रॉपर्टी मार्केट डूब रहा है और ऐसे में जिनपिंग का दौरा काफी कुछ हासिल कर सकता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। इसकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए तेल की काफी जरूरत है। सऊदी अरब वह देश है जो चीन को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करता है। स्पष्ट है कि दोनों नेताओं के एजेंडे में तेल सबसे ऊपर है।
अमेरिका के लिए झटका
अमेरिका एक वक्त तक खाड़ी देशों को अपने मन मुताबकि हांकता था। अमेरिका अपने आगे किसी की सुनता नहीं उसकी यही गलती उसके लिए सबसे बड़ी टीस बनती जा रही है। चीन को भी ऐसे मौके का तलाश पहले से ही था ताकि खाड़ी देशों में वो अपना वर्चस्व कायम कर सके। अंदाजा इसी से लगा लें कि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का सऊदी में कैसा स्वागत हुआ था और शी जिनपिंग जब पहुंचे तो पूरा सऊदी झूम उठा। ऐसे में अब अमेरिका को फिर से सोचने की जरूरत है कि वो सऊदी के साथ कैसे रिश्ते मजबूत करे।
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