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चीन की जाल में फंस रहे खाड़ी देश! Saudi Arabia में जिनपिंग- America के लिए खतरा

Xi Jinping Grand Welcome In Saudi Arabia

China Saudi Arabia Relations: चीन के चक्कर में जो भी फंसा है वो बरबाद ही हुआ है। जितने भी चीन के दोस्त देश हैं हर कोई उससे परेशान हैं। चीन की मंसा ही रहती है कि, पहले दोस्ती करो और फिर वहां पर अपनी नीतियां थोप कर उनकी चीजों पर अपना कब्जा जमा लो। पिछले कई सालों चीन छोटे देशों में यही कर रहा है। अब एक और दोश चीन की जाल में फंसता नजर आ रहा है। जो दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद मायने रखता है। ये कोई और नहीं बल्कि सऊदी अरब (China Saudi Arabia Relations) है जिसके रिश्ते इन दिनों चीन के साथ सातवें आसमान पर हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का सऊदी अरब (China Saudi Arabia Relations) में इतना भव्य स्वागत हुआ है कि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी देखते रह गये। जब जिनपिंग का जहाज रियाद हवाई अड्डे पर उतरा तो सऊदी अरब के लड़ाकू विमानों ने फ्लाई-पास्ट किया। ऐसा स्वागत चंद महीने पहले सऊदी दौरे पर पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का भी नहीं हुआ था। अमेरिका को चिढ़ाना तो फिर भी ठीक है लेकिन, चीन संग गहरा रिश्ता जोड़ना सऊदी अरब के लिए ठीक नहीं है।

अमेरिका की जगह लेना चाहता है चीन
शी जिनपिंग का रियाद एयरपोर्ट पर स्वागत वहां के गवर्नर प्रिंस फैसल बिन बांदर बिन अब्दुलअजीज ने किया। शाही स्वागत के बाद जिनपिंग को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया। उनका सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस का साथ केमेस्ट्री भी काफी अच्छी दिखी। शी जिनपिंग ने सऊदी अरब में चीन-अरब स्टेट समिट और चाइना-गल्फ कोऑपरेशन समिट में हिस्सेदारी की। इसका प्रमुख उद्देश्य सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी के देशों के साथ चीन के संबंध को मजबूत करना था। अब ऐसा लग रहा है कि, चीन खाड़ी देशों में अमेरिका की जगह लेना चाहता है। दरअसल, खाड़ी देशों में अब तक अमेरिका का दबदबा रहा है। सभी खाड़ी देश अमेरिका के इशारे पर चलते थे। लेकिन, पिछले कुछ सालों से अमेरिका की विदेश नीति में खाड़ी देश उपेक्षित महसूस कर रहे थे। ऐसे में चीन को सही मौके की पहले से ही तलाश थी। जैसे ही उसे अंदर घुसने का मौका मिला वो अमेरिका की जगह हड़पने की कोशिश शुरू कर दिया। माना जा रहा है कि, शी जिनपिंग का सऊदी दौरा उसी कोशिश की एक कड़ी है।


सब जो बायडन का करा धरा है
बाइडेन-प्रिंस सलमान के बीच दुश्मनी पुरानी है। अमेरिका को ये सोचना चाहिए कि किस देश के साथ उसका क्या रिश्ता है। क्योंकि, जो बाइडन तो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ही सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी। उन्होंने कई चुनावी रैलियों में सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के लिए प्रिंस सलमान को जिम्मेदार ठहराने की बात की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि तत्कालीन ट्रंप सरकार प्रिंस सलमान का समर्थन कर गलत विदेश नीति को चला रही है। यहां तक कि, राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन ने प्रिंस सलमान से बात करने से भी इनकार कर दिया था। उनके प्रशासन ने सऊदी अरब को दी जाने वाली सैन्य सहायता भी कम कर दी थी। इतना ही नहीं, यमन में जारी हिंसा के लिए सऊदी अरब की आलोचना भी की थी। बस यहीं से खटपट शुरू हो गई और दुनिया के आर्थव्यवस्था में मायने रखने वाला सऊदी अरब को जब इस तरह की चीजों का सामना करना पड़ेगा तो वो जरूर दूसरा ऑप्शन तलाश करेगा। ये सारा कराया धराया अमेरिका का ही है।

अमेरिका के दुश्मनों से हाथ मिला रहा सऊदी अरब
शी जिनपिंग की इस यात्रा के दौरान चीन और सऊदी अरब के बीच कई क्षेत्रों में संबंधों को मजबूत करने की बात भी हुई। इसमें खाद्यान उत्पादन, साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग, पेट्रोलियम उत्पादों का व्यापार और पर्यटन के क्षेत्र में चर्चा की गई। सिर्फ चीन संग ही नहीं बल्कि अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन रूस संग भी सऊदी अरब रिश्ते मजबूत कर रहा है। कुछ समय पहले ही सऊदी अरब ने ओपेक प्लस की बैठक में रूस का समर्थन करते हुए तेल उत्पादन को न बढ़ाने का फैसला किया था। इस फैसले को अमेरिका के खिलाफ देखा गया था।

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