सनातन धर्म के चार सबसे बड़े धर्मगुरुओं में से एक शारदा और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati) 11 सितंबर को गोलोकवासी हो गए। हाल ही में उनका 99वां जन्मदिवस समारोह मनाया गया था। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati) ने मध्यप्रदेश को झोतेश्वर धाम में अंतिम स्वांस ली और ब्रह्मलीन हो गए।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati) कुछ ही दिन पहले बैंग्लौर से आश्रम लौटे थे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती आजादी की लड़ाई में अंग्रेज सरकार के खिलाफ जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।
शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी।
द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति!
— Narendra Modi (@narendramodi) September 11, 2022
जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी।
इस दौरान वो उत्तर प्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे, क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी।
घर छोड़ने के बाद उन्होंने भारत के प्रसिद्ध तीर्थों, स्थानों और संतों के दर्शन करते हुए वे काशी में कुछ दिनों के लिए डेरा डाला। स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे। 1981 में जगद गुरु शंकराचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया।
जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान हुआ तो स्वामी स्वरूपानंद भी आंदोलन में कूद पड़े। 19 साल की आयु में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्हें वाराणसी में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेलों में 6 महीने कैद रखा गया था।