China Vs India: दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले समूह जी-20 की अध्यक्षता इस साल भारत के पास है। भारत के पास जी-20 की कमान तब आई है, जब दुनिया यूक्रेन में रूस के हमले के कारण बुरी तरह से बँटी हुई है। ऐसे में भारत को जी-20 की किसी भी बैठक में सहमति से कोई बयान या प्रस्ताव पास कराने में नाकामी हाथ लग रही है। पिछले हफ़्ते गोवा में जी-20 देशों के बैठक में ऐसा ही हुआ। सऊदी अरब ने जीवाश्म ईंधन के सीमित इस्तेमाल को लेकर बैठक में आम सहमति नहीं बनने दी। सऊदी अरब को इसमें रूस का भी साथ मिला। ऐसा तब है जब रूस और सऊदी अरब भारत के बड़े तेल आपूर्तिकर्ता देश हैं।
दूसरी ओर चीन (China) से लेकर अमेरिका तक तेजी से बदलता मौसम दुनिया के सामने जलवायु संकट को सामने लाकर रख रहा है। लेकिन इसके बाद भी इस मीटिंग का बिना किसी नतीजे पर पहुंचे खत्म हो जाना, चिंता को दोगुना कर देता है।
जिन देशों की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई है उनके नाम सामने नहीं आए हैं। लेकिन माना जा रहा है कि इसमें सऊदी अरब, चीन, रूस और इंडोनेशिया शामिल हो सकते हैं। ये देश हमेशा से ही रिन्यूबल एनर्जी का विरोध करते आए हैं। G20 के सदस्य देश वैश्विक उत्सर्जन और सकल घरेलू उत्पाद में तीन-चौथाई से ज्यादा का योगदान करते हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में संगठन की तरफ से डीकार्बोनाइजिंग के संयुक्त प्रयासों को सराहा भी गया है। मीटिंग में साल 2030 तक रिन्यूबल एनर्जी की क्षमताओं को तीन गुना करना का एक प्रस्ताव रखा गया था। असहमति की वजह से अधिकारियों को संयुक्त विज्ञप्ति की जगह बस एक समरी जारी करनी पड़ी।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह समरी डॉक्यूमेंट फॉसिल फ्यूल को चरणबद्ध तरीके से लागू करने वाली भाषा को शामिल करने में विफल रहा है। जो समरी जारी की गई वह भी अस्पष्ट थी। जबकि कुछ जी20 सदस्यों ने परिस्थितियों के अनुरूप फॉसिल फ्यूल को कम करने की दिशा में प्रयास करने के महत्व पर जोर दिया। जबकि कुछ का मानना था कि कमी और उत्सर्जन की टेक्नोलॉजी इन चिंताओं का समाधान होना जरूरी है। संयुक्त विज्ञप्ति तभी जारी हो पाती है जब सदस्य देशों के बीच सभी मुद्दों पर पूर्ण सहमति हो। भारत के ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने बताया कि 29 में से 22 पैराग्राफों पर हमारी पूरी सहमति थी। जबकि सात पैराग्राफ सिर्फ सारांश का गठन करते हैं।
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